Hindi Poem: स्वेटर बुनती स्त्रियाँ, खाली स्वेटर ही तो नहीं बुनती।
वो बुनती है प्रेम के तार, उन के धागों से।
कभी बनाती हैं, छोटे-छोटे टोपे और मोजे।
घर में आने वाली नई पीढ़ी के लिए।
जब वह बनती है दादी नानी,
तब उनका आशीर्वाद ही तो होता है यह।
घर में बड़े बूढ़ों के लिए भी स्वेटर बनती स्त्रियों का
समर्पण भाव झलकता है, मान सम्मान झलकता है।
आत्मा भी तृप्त हो जाती है वृद्ध पीढ़ी की,
स्वेटर की गर्माहट शरीर में महसूस करके।
उठते हैं उनके हाथ सिर्फ आशीर्वाद देने के लिए।
अपने प्रेम को भी तो प्रदर्शित करती हैं स्वेटर बुनती स्त्रियाँ।
जब उनके स्वेटर की गर्माहट महसूस होती है, उनके प्रेम को।
तब वह स्त्रियाँ खुद को धन्य मान लेती हैं।
लेकिन बढ़ते हुए आधुनिकरण और मॉडर्न सोसाइटी के प्रभाव के चलते जब बढ़ते हुए बच्चे मुंह बिचकाते है।
यह स्वेटर चुभते हैं कहकर।
तब उनकी प्रेम की सिलाईयों में उन्हें चुभन महसूस होने लगती है।
फिर नहीं बुनती वह कोई स्वेटर।
पड़ोस वाली बिटिया के बालक होने की खबर सुनती हैं,
तो फिर निकल लाती हैं अपनी सिलाइयां।
बना देती है फिर कुछ छोटा-मोटा सा।
नन्हा बालक पहन लेगा, ठंड से बचा रहेगा।
मेरा क्या है?
थोड़ा और काम कर लूंगी तो क्या घिस जाएगा यह सोचकर अपनी धुन में मगन भूल जाती है सब बातों को।
फिर बुनती है प्रेम के तार, ऊन के धागों से।
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