बंधन-गृहलक्ष्मी की कविता
Bandhan

Hindi Poem: बंधन मुझे भला लगता है स्वतंत्रता की चाह नहीं साथ चलूं या थोड़ा पीछे ,इसकी अब परवाह नहीं ।
भीड़ भरी सड़कों पर जब ,तुम मेरा हाथ पकड़ते हो मुझे बचाने को सबसे, जब मेरे साथ अकड़ते हो मुझ पर पड़ने देते हो तुम ,कोई गलत निगाह नहीं।
साथ चलूं या थोड़ा पीछे ,इसकी अब पर वह नहीं सुनी है बातें सदियों से, नारी पर अत्याचार की
पर क्यों लोग हैं नहीं समझते, कीमत एक परिवार की
जो तुम तक लेकर ना जाए, ऐसी कोई राह
नहीं ।
साथ चलूं या थोड़ा पीछे ,इसकी अब परवाह नहीं।
क्या हो गया जो तुमने टोका, मुझको मेरी गलती पर
जितनी फिक्र तुम्हें है मेरी ,किसी को नहीं धरती पर
जब से जुड़ी हूं साथ तुम्हारे ,उड़ी कोई अफवाह नहीं साथ चलूं या थोड़ा पीछे, इसकी अब परवाह नहीं चलो नहीं हो तुम परमेश्वर ,सबसे है अलग
तुम हो
लेकिन सच्ची बात है यह भी कि मेरे रक्षक
तुम हो
कितना कुछ पाया है तुमसे उसकी कोई चाह
नहीं।
साथ चलूं या थोड़ा पीछे इसकी अब परवाह नहीं
चूड़ी बिछिया पायल मेहंदी मुझे बहुत अच्छे लगते जाने कौन वह लोग हैं जो इन चिन्हों को बेड़ी कहते
सजती जब इन चीजों से तो कौन है कहता वाह नहीं
साथ चलो या थोड़ा पीछे ,इसकी अब परवाह नहीं
कौन श्रेष्ठ है कौन तुच्छ है ,इस पर कौन विवाद करें ।
सात जन्म के रिश्ते को ,हम व्यर्थ ही क्यों बर्बाद करें।
शिव भी शक्ति बिना अधूरे क्या तुम इस से आगाह नहीं साथ चलूं या थोड़ा पीछे किसकी अब परवाह नहीं।

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