braahman hone ka gaurav
braahman hone ka gaurav

पण्डित ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के पास एक बार नवद्वीप का एक कट्टर ब्राह्मण आया। उन्होंने विद्यासागरजी के पास जब बहुत से ब्राह्मणेतर लोगों को देखा, तो नाक-भौंह सिकोड़ी। उन्हें इस बात का भी गुस्सा आया कि उनमें से किसी ने भी उनको प्रणाम नहीं किया।

उन लोगों को नसीहत देने के उद्देश्य से वे बोले, “आजकल जमाना भी कितना बदल गया है। देखो न, अब्राह्मण लोग भी अब ब्राह्मणों को देखकर प्रणाम नहीं करते। वे इस तथ्य को भुलाने की चेष्टा कर रहे हैं कि ब्राह्मण वर्ण चारों वर्णों में सर्वश्रेष्ठ है। शायद उन्हें यह मालूम नहीं कि ब्राह्मणों ने वेद-पुराणों और शास्त्रें की रचना कर समाज और राष्ट्र का कितना बड़ा कल्याण किया है।”

यह सुनकर विद्यासागरजी को बुरा लगा, किन्तु हँसते हुए उन्होंने कहा, “पण्डितजी, मालूम होता है, आपको अपने ब्राह्मण होने का बड़ा गर्व है, लेकिन आप यह तो जानते ही होंगे कि भगवान् विष्णु ने दशावतार में एक वराह का भी अवतार धारण किया था। तब क्या हमें डोम बस्ती में जितने भी सूअर दिखायी देंगे, उनके प्रति श्रद्धावनत हो भक्तिभाव से प्रणाम करना चाहिए?”

पण्डितजी को काटो तो खून नहीं, वे जान गये कि यहाँ दाल नहीं गलनेवाली है और वे पैर पटकते हुए गुस्से के मारे वहाँ से चल दिये।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)