bakaasur ka ant - mahabharat story
bakaasur ka ant - mahabharat story

लाक्षागृह से बचकर पांडव और कुंती एकचक्रा नामक नगरी में पहुंचे और वहां एक ब्राह्मण के घर रहने लगे। कोई उन्हें पहचान न ले, इसलिए उन्होंने ब्राह्मणों का वेष धारण कर रखा था। वे प्रातः भिक्षा मांगने निकलते और संध्या के समय घर लौट आते। इस प्रकार अनेक दिन व्यतीत हो गए।

एक दिन कुंती को ब्राह्मण-परिवार के विलाप का स्वर सुनाई दिया। उसने देखा कि ब्राह्मण परिवार शोक और दुःख से घिरा है।

कुंती के बार-बार पूछने पर ब्राह्मण बोला- “निकट के वन में बकासुर नामक एक भयंकर राक्षस रहता है। उसके क्रोध से नगरी को बचाने के लिए प्रतिदिन एक व्यक्ति को भोजन सामग्री से लदी बैलगाड़ी के साथ उसके पास भेजा जाता है। वह राक्षस भोजन के साथ-साथ उस व्यक्ति को भी मारकर खा जाता है। कल हमारे परिवार की बारी है। हम सभी एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं, इसलिए हमने निर्णय लिया है कि हम सभी उसका भोजन बन जाएंगे।”

ब्राह्मण की बात सुनकर कुंती उन्हें समझाते हुए बोली- “भैया ! आप चिंता मत कीजिए। बकासुर से निपटने के लिए मेरा पुत्र भीम ही पर्याप्त है।

आपके स्थान पर कल भीम भोजन लेकर जाएगा।”

अगले दिन भोजन-सामग्री से लदी बैलगाड़ी लेकर भीम मस्ती में वन की ओर चल दिए। राक्षस की गुफा के बाहर पहुंचकर भीम ने बैलों को खोल दिया और वहीं बैठकर राक्षस के लिए लाया भोजन खाने लगे।

तभी बकासुर गुफा से बाहर आया। एक मनुष्य को अपना भोजन खाते देख वह क्रोधित होकर उस पर झपटा, परंतु भीम सतर्क थे। उन्होंने शीघ्रता से उठकर बकासुर पर मुष्टि प्रहार किया। वह लड़खड़ाता हुआ धड़ाम से भूमि पर जा गिरा। फिर भीम फुर्ती से उसकी छाती पर सवार हो गए और मुष्टि प्रहारों से उसका अंत कर डाला। तदंतर उसका मृत शरीर घसीटते हुए नगर में ले आए।

बकासुर की मृत्यु का समाचार चारों ओर फैल गया। सभी लोग ब्राह्मण के घर की ओर उमड़ पड़े। कुंती ने ब्राह्मण को सत्य बताने से मना कर दिया था। इसलिए उसने झूठी कहानी सुनाकर जैसे-तैसे लोगों को संतुष्ट किया, परंतु अब पांडवों का वहां छिपे रहना कठिन था। उनका रहस्य कभी भी खुल सकता था। अतः ब्राह्मण-परिवार से विदा लेकर वे वहां से चले गए।