कुंती-पुत्र कर्ण ने द्रोणाचार्य से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की थी। बाद में वे अस्त्र-विद्या सीखने के लिए भगवान परशुराम की शरण में चले गए। परशुराम केवल ब्राह्मण कुमारों को ही विद्या प्रदान करते थे। इसलिए कर्ण ने ब्राह्मण वेष बनाया और छलपूर्वक उनसे शस्त्र-विद्या प्राप्त करने लगे। परशुरामजी ने उन्हें ब्राह्मण कुमार ही समझा और उन्हें अपना सारा ज्ञान अर्पित कर दिया।
एक दिन परशुराम को नींद ने आ घेरा। वे कर्ण की गोद में सिर रखकर सो गए। तभी एक कीड़ा रेंगता हुआ कर्ण की जांघ पर चढ़ गया और उसे काटना शुरू कर दिया। कीड़े के काटने से खून बहने लगा। असीम वेदना से कर्ण का मुख विकृत हो गया, परंतु गुरु की निद्रा भंग न हो जाए, यह सोचकर वे बिना हिले-डुले बैठे रहे।
कुछ समय के बाद परशुराम की नींद खुली तो बहता हुआ खून देखकर आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने कर्ण से रक्त निकलने का कारण पूछा। कर्ण ने सारी घटना सच-सच बता दी।
परशुराम को सच्चाई समझते देर नहीं लगी। वे क्रोधित होकर बोले‒ “कर्ण! तुमने मेरे साथ छल किया है। तुम ब्राह्मण नहीं हो सकते, क्योंकि कोई ब्राह्मण इतना सहनशील नहीं हो सकता। सच-सच बताओ, तुम वास्तव में कौन हो? तुम्हारा परिचय क्या है?”
भयभीत कर्ण ने अपना परिचय दिया।
कर्ण का परिचय जानकर परशुराम गर्जते हुए बोले‒ “दुष्ट कर्ण! तुमने मेरे साथ छल करके घोर पाप किया है। तुमने मुझसे विद्या ग्रहण नहीं की, अपितु चुराई है। इसलिए जिस प्रकार चुराया धन अधिक दिनों तक नहीं टिकता, उसी प्रकार मेरे द्वारा प्रदान की गई विद्या भी तुम्हारे पास नहीं टिकेगी। मैं शाप देता हूं कि आवश्यकता पड़ने पर तुम मेरे द्वारा प्रदान की गई विद्या भूल जाओगे।”
कर्ण दुःखी और निराश होकर अपने घर लौट गए।
इसी शाप के कारण महाभारत युद्ध में आवश्यकता पड़ने पर कर्ण सारी विद्या भूल गए और अर्जुन के हाथों मारे गए।
कुछ ग्रंथों के अनुसार, अर्जुन देवराज इंद्र के पुत्र थे। कर्ण को परशुराम से विद्या ग्रहण करते देख वे भयभीत हो गए। उन्हें चिंता होने लगी कि यदि अर्जुन और कर्ण का सामना हुआ तो निश्चित ही कर्ण अर्जुन पर भारी पड़ेंगे। इसलिए उन्होंने कीड़े का रूप धारण करके कर्ण को काटा था, जिसके फलस्वरूप परशुराम ने कर्ण को शाप दे दिया।
