वरदान से पैदा हुए थे कर्ण, जानिए क्यों नहीं मिला माता कुंती का स्नेह: Karna Birth Story
Karna Birth Story

Karna Birth Story: पौराणिक काल में हुए महाभारत के युद्ध में अनेकों राजाओं ने भाग लिया। कुछ राजा पांडवों की ओर से युद्ध लड़े तो कई राजाओं ने कौरवों की तरफ से इस युद्ध में भाग लिया। महाभारत के युद्ध में युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव और कौरवों के राजा दुर्योधन के अलावा एक और राजा की चर्चा की जाती है। पांडव पुत्र अर्जुन जितने ही बुद्धिमानी और धनुष विद्या में निपुण यह राजा थे कर्ण। कर्ण अंग देश के राजा थे। कर्ण ने कौरवों की तरफ से महाभारत का युद्ध लड़ा था। शास्त्रों में उल्लेखित है कि महाभारत काल में कर्ण के जितना दानी कोई भी राजा नहीं था। दानवीर कर्ण ने अपने वचन पालन के लिए अपना रक्षा कवच और कुंडल भी दान में दे दिए थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पांडवों की माता कुंती ही कर्ण की भी माता थीं। कर्ण के जन्म के बाद माता कुंती ने कर्ण को गंगा नदी में बहा दिया था। आज इस लेख के द्वारा हम जानेंगे कि आखिर माता कुंती ने अपने ही पुत्र को गंगा नदी में क्यों छोड़ दिया।

ऋषि दुर्वासा ने दिया था कुंती को पुत्र प्राप्ति का वरदान

Karna Birth Story
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पंडित इंद्रमणि घनस्याल के अनुसार, पौराणिक काल में ऋषि दुर्वासा राजा शूरसेन के महल में गए। राजा शूरसेन ने ऋषि दुर्वासा की खूब आवभगत की और अपनी पुत्री कुंती से भी ऋषि दुर्वासा का परिचय करवाया। ऋषि दुर्वासा स्वभाव से बहुत क्रोधी थे और उनके कार्य में बाधा उत्पन्न करने वाले व्यक्ति को ऋषि दुर्वासा श्राप दे देते थे। ऋषि दुर्वासा राजा शूरसेन के महल में लगभग 1 साल तक रहे। राजा शूरसेन के महल में कुंती ने ऋषि दुर्वासा की बहुत सेवा की। ऋषि दुर्वासा कुंती की सेवा से बहुत प्रसन्न हुए। ऋषि दुर्वासा ने कुंती को यह वरदान दिया कि वह जिस भी देवता का आह्वान करेंगी, उसी देवता के समान गुणों वाला पुत्र उन्हें प्राप्त होगा। इतना कहकर ऋषि दुर्वासा चले गए।

एक बार सूर्योदय के समय कुंती ने जिज्ञासावश सूर्यदेवता का आह्वान कर लिया। ऋषि दुर्वासा के वरदान के कारण सूर्यदेव कुंती के सामने प्रकट हो गए। सूर्यदेव के दर्शन करने के बाद कुंती ने उन्हें वापस लौट जाने को कहा तब सूर्य देव ने कहा कि मैं कुछ दिए बिना वापस नहीं जा सकता। ऋषि दुर्वासा के वरदान के प्रभाव से सूर्यदेव ने कुंती की नाभि को स्पर्श किया। जिसके फलस्वरूप अविवाहित कुंती को सूर्य के समान तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। सूर्य देवता ने कुंती को बताया की इस बालक के शरीर पर लगे कवच और कुंडल के कारण इसे कोई भी कभी हरा नहीं पाएगा। इतना कह कर सूर्य देव वापस चले गए। सूर्यदेव से पुत्र प्राप्ति के बाद कुंती माता बन चुकी थीं। कुंती ने अपने पुत्र का नाम कर्ण रखा। अविवाहित माता बनने के कारण, अपने पिता के सम्मान की रक्षा के लिए और लोक लाज के डर से कुंती ने अपने ही पुत्र को गंगा नदी में बहा दिया।

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