कौन हैं महाभारत का महान योद्धा, जिसने मरते दम तक नहीं छोड़ा धर्म का रास्ता: Great Warrior in Mahabharata
Great Warrior in Mahabharata

Great Warrior in Mahabharata: महाभारत का युद्ध पौराणिक काल का सबसे अधिक विनाशकारी युद्ध माना जाता है। यह युद्ध 18 दिनों तक लड़ा गया और इस युद्ध में पांडवों की विजय हुई थी। श्रीकृष्ण की नारायणी सेना ने कौरवों की तरफ से महाभारत के युद्ध का युद्ध लड़ा। श्री कृष्ण ने पांडवों की ओर से युद्ध में भाग लिया लेकिन श्रीकृष्ण ने इस युद्ध में अस्त्र शस्त्र का उपयोग नहीं किया बल्कि अर्जुन के रथ के सारथी बने रहे। महाभारत के युद्ध में युधिष्ठिर, भीम, दुर्योधन और कर्ण जैसे कई वीर योद्धाओं के साहस का पता चलता है लेकिन इन सभी योद्धाओं में से कर्ण को महाभारत के युद्ध का सबसे अधिक सर्वश्रेष्ठ और महान योद्धा माना जाता है। स्वयं श्रीकृष्ण ने यह कहा है कि कर्ण से बड़ा कोई दानी और युद्ध करने वाला कोई योद्धा नहीं है। कर्ण की युद्ध कला और धनुष विद्या पांडवों के अर्जुन के समान ही थी। आज इस लेख के द्वारा हम जानेंगे कि आखिर कर्ण को महाभारत के युद्ध का सर्वश्रेष्ठ योद्धा क्यों कहा जाता है। आए जानते हैं कर्ण के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य।

पांडवों के बड़े भाई थे कर्ण

Great Warrior in Mahabharata
Great Warrior in Mahabharata-Karna

पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि ऋषि दुर्वासा के वरदान से पांडवों की माता कुंती विवाह से पहले ही सूर्यपुत्र कर्ण की माता बन गई थीं। कुंती ने अपने पिता शूरसेन के सम्मान के लिए और समाज के डर से कर्ण को नदी में बहा दिया और इस बात का जिक्र कभी किसी से नहीं किया। ऋषि द्रोणाचार्य से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद कर्ण ने भगवान परशुराम से आगे की शिक्षा प्राप्त की। भगवान परशुराम सिर्फ ब्राह्मणों को शिक्षा दिया करते थे। जब भगवान परशुराम को पता चला की कर्ण ब्रह्मण पुत्र नहीं है तो उन्होंने कर्ण को यह श्राप दिया कि युद्ध में जरूरत के समय कर्ण अपनी सारी धनुर्विद्या और मंत्रों को भूल जायेगा। भगवान परशुराम का यह श्राप ही कर्ण की मृत्यु का कारण बना।

महान योद्धा थे कर्ण

Karna
Karna

महाभारत युद्ध में अकेले कर्ण ने युद्ध की विपरीत परिस्थितियों में भी संयम बनाएं रखा। युद्ध में कर्ण को भीम, नकुल और सहदेव को मारने के कई मौके मिले लेकिन माता कुंती को कर्ण वचन दिया था कि वह अर्जुन के अलावा अपने किसी भी भाई को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। कर्ण जानते थे कि सूर्य देव द्वारा दिए गए रक्षा कवच और कुंडल के कारण कोई भी कर्ण को हरा नहीं पाएगा। अपने वचन के पालन के लिए कर्ण ने अपने रक्षा कवच और कुंडल दान में दे दिए और बिना रक्षा कवच और कुंडल के ही युद्ध लड़ने लगे। दुर्योधन से अपने मित्रता के कारण कर्ण ने युद्ध में कौरवों का साथ दिया क्योंकि दुर्योधन ने ही कर्ण को एक राजा का सम्मान दिया था। न्याय संगत युद्ध के लिए कर्ण ने श्रीकृष्ण को अपनी सच्चाई पांडवों को बताने से मना किया था। युद्ध के 17 वें दिन अर्जुन द्वारा चलाए गए दिव्यशस्त्र से कर्ण को वीर गति प्राप्त हुई।

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