raakshasee hidimba - mahabharat story
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गंगा पार करके कुंती और पांडव एक घने वन में पहुंचे। चलते-चलते थक जाने के कारण वे वहीं एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे। लेटते ही उन्हें गहरी नींद ने आ घेरा, परंतु भीम चौकन्ने होकर पहरा दे रहे थे।

वहीं निकट ही हिडिम्ब नामक एक भयंकर और विशालकाय राक्षस रहता था। उसकी एक बहन थी, जिसका नाम हिडिम्बा था। उसने जब मनुष्य-गंध सूंघी तो अपनी बहन हिडिम्बा को उन्हें मारकर लाने के लिए भेजा।

गंध का अनुसरण करते हुए हिडिम्बा उस स्थान पर पहुंची, जहां पांडव सोए हुए थे। तभी उसकी दृष्टि पहरा देते भीम पर पड़ी। उनका सुंदर और बलिष्ठ शरीर देखकर वह उन पर मोहित हो गई। उसने उसी समय एक सुंदर युवती का वेष बनाया और भीम के समक्ष पहुंचकर बोली‒ष्वीरवर! आप कौन हैं? इस वन में क्या कर रहे हैं? यह वन मेरे भाई हिडिम्ब के अधीन है। वह यहां आकर आप सबका भक्षण कर लेगा। इसलिए आप शीघ्र अपने परिजन को उठा दें, जिससे मैं आप सबको सुरक्षित स्थान पर ले जा सकूं।”

भीम बोले‒”मेरी माता और भाई थके हुए हैं। मैं उनके विश्राम में विघ्न नहीं डाल सकता। तुम हमारी चिंता मत करो। तुम्हारे भाई का सामना करने के लिए मेरे बाजुओं में पर्याप्त बल है।”

अभी उनमें वार्तालाप चल रहा था कि हिडिम्ब वहां आ पहुंचा। हिडिम्बा को सुंदर युवती के वेष में देखकर उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। वह गर्जते हुए भीम पर टूट पड़ा, परंतु भीम उसके प्रहार को बचा गए। इससे पूर्व वह पुनः उन पर प्रहार करता, उन्होंने हिडिम्ब की गर्दन अपने बाहुपाश में जकड़ ली और फिर कुछ ही क्षणों में उसकी जीवन-लीला भी समाप्त कर दी।

तब तक चारों पांडव और कुंती भी जाग चुके थे। हिडिम्बा ने कुंती के चरण-स्पर्श कर उन्हें अपने मन की बात बता दी। तब कुंती ने उसे पुत्रवधू के रूप में स्वीकार कर लिया।

भीम के अंश से हिडिम्बा ने घटोत्कच नामक एक महाबलशाली पुत्र को जन्म दिया। महाभारत युद्ध में घटोत्कच ने अपने पराक्रम से कौरव-सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया था।