yaksh-prashn - mahabharat story
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जयद्रथ-प्रसंग के बाद पांडव काम्यक वन छोड़कर द्वैतवन में चले गए और वहीं अपने दिन बिताने लगे।

एक दिन युधिष्ठिर के पास एक ब्राह्मण आकर बोला‒हे राजन! मैं निकट के वन में रहता हूं और आपसे सहायता लेने आया हूं। मैंने यज्ञाग्नि उत्पन्न करने वाली अरणी और मथनी पेड़ पर टांग रखी थीं। अचानक एक बारहसिंगा आया और पेड़ के तने से अपना शरीर रगड़ने लगा। इसी बीच अरणी और मथनी गिरकर उसके सींगों में फंस “गईं। बारहसिंगा डरकर वहां से भाग गया। अरणी और मथनी के बिना मैं यज्ञाग्नि प्रज्ज्वलित नहीं कर सकता। अतः आप बारहसिंगे को ढूंढकर मेरी अरणी और मथनी वापस ला दीजिए।”

युधिष्ठिर ने उसे आश्वासन दिया और भाइयों के साथ बारहसिंगे की खोज में निकल पड़े।

उन्होंने वन का कोना-कोना छान मारा, परंतु बारहसिंगा उन्हें कहीं दिखाई नहीं दिया। थक-हारकर वे एक वृक्ष के नीचे बैठकर विश्राम करने लगे। उन्हें प्यास लग आई थी। अतः युधिष्ठिर की आज्ञा से नकुल वृक्ष पर चढ़कर आस-पास सरोवर देखने लगे। कुछ दूरी पर उन्हें एक जलाशय दिखाई दिया। वे शीघ्र जल लाने के लिए चल पड़े, परंतु बहुत समय बीतने के बाद भी वे नहीं लौटे।

युधिष्ठिर ने सहदेव को भेजा। उसके भी न लौटने पर उन्होंने एक-एक कर अर्जुन और भीम को भी जलाशय की ओर भेज दिया, परंतु वे भी नहीं लौटे। तब युधिष्ठिर चिंतित होकर स्वयं चल पड़े।

जलाशय पर पहुंचकर उन्होंने चारों भाइयों को मूर्च्छित अवस्था में पड़े देखा। भाइयों को सचेत करने के लिए जल की आवश्यकता थी। अतः शीघ्रता से वे जलाशय के निकट पहुंचे। उन्होंने जैसे ही हथेलियों में जल भरा, वैसे ही एक गरजती हुई आवाज़ आई‒ “ठहरो! मैं एक यक्ष हूं और इस जलाशय की रक्षा करता हूं। मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए बिना तुम यहां से जल नहीं ले जा सकते। यदि तुमने मेरी चेतावनी को अनसुना किया तो तुम्हारी भी वही दशा हो जाएगी, जो इन युवकों की हुई है।”

युधिष्ठिर विनम्र स्वर में बोले‒ “मेरे भाई अजेय योद्धा हैं। संसार में कोई उन्हें पराजित नहीं कर सकता। आपने उन्हें मूर्च्छित कर दिया है, इसलिए निश्चित ही आप कोई देवता हैं। अतः आपकी आज्ञा के बिना मैं जल का प्रयोग नहीं करूंगा। कृपया आप अपने प्रश्न पूछें।”

यक्ष ने जितने भी प्रश्न पूछे, युधिष्ठिर ने उनका सही-सही उत्तर दे दिया। तब यक्ष ने प्रसन्न होकर कहा कि वह उसके किसी एक भाई को पुनः जीवित कर देगा। युधिष्ठिर ने प्रार्थना की कि वे सहदेव को जीवित कर दें। यक्ष ने पूछा कि भीम और अर्जुन के बदले उन्होंने सहदेव को ही क्यों चुना। तब युधिष्ठिर बोले‒ “भगवन्! हम दो माताओं की संतान हैं। भीम, अर्जुन व मैं कुंती माता की तथा नकुल व सहदेव माद्री माता के पुत्र हैं। कुंती के पुत्रों में मैं जीवित हूं। इसलिए आप माद्री के एक पुत्र को जीवित कर दें।”

युधिष्ठिर की बात सुनकर यक्ष अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने उनके चारों भाइयों को पुनर्जीवित कर दिया। फिर वह अपने वास्तविक रूप में आ गया। वह यक्ष वास्तव में धर्मराज थे, जो युधिष्ठिर की परीक्षा ले रहे थे।

उन्होंने युधिष्ठिर से दो वरदान मांगने को कहा। युधिष्ठिर ने पहले वर में ब्राह्मण की अरणी और मथनी मांगी, तथा दूसरे वर में उन्होंने वनवास के तेरहवें वर्ष में अज्ञात रहने का आशीर्वाद मांगा।

धर्मराज ने उन्हें मनोवांछित वर प्रदान कर दिए। उनके वरदान के कारण ही अज्ञातवास में पांडवों को कोई पहचान नहीं पाया।