arjun ko vanavaas - mahabharat story
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युधिष्ठिर ने यह नियम बनाया था कि द्रौपदी एक-एक महीना प्रत्येक भाई के पास रहेगी और जब वह किसी भाई के साथ होगी तो दूसरा भाई उसके कक्ष में नहीं आएगा। इस नियम का उल्लंघन करने वाले को बारह वर्ष तक वन में निवास करना होगा।

सभी भाई इस नियम का पालन करते थे। ऐसा उन्होंने देवर्षि नारद के परामर्श पर किया था, जिससे उनमें स्त्री को लेकर कभी द्वेष-भाव पैदा न हो।

एक बार की बात है कुछ चोर एक ब्राह्मण की गाएं चुराकर ले गए। वह ब्राह्मण सहायता के लिए अर्जुन के पास आया। अर्जुन ने उसे सांत्वना दी और शीघ्र ही गायों को लौटा लाने का वचन दिया, परंतु अर्जुन के अस्त्र-शस्त्र द्रौपदी के कक्ष में थे और उस समय युधिष्ठिर द्रौपदी के साथ रह रहे थे।

अर्जुन के समक्ष एक ओर शरणागत का संकट दूर करने का प्रश्न था, वहीं दूसरी ओर नियम का उल्लंघन करने से मिलने वाले दंड का भय। अंत में अर्जुन ने शरणागत की सहायता करने का निर्णय किया। वे द्रौपदी के कक्ष में जाकर अपना धनुष-बाण ले आए और ब्राह्मण की गाएं लाकर उन्हें दीं।

तत्पश्चात् वे बारह वर्षीय वनवास की तैयारी करने लगे। युधिष्ठिर ने उन्हें समझाया कि छोटे भाई का बड़े भाई के कक्ष में आना अनुचित नहीं है, परंतु अर्जुन अपने निर्णय पर अडिग रहे। अंततः युधिष्ठिर को उन्हें वन जाने की आज्ञा देनी पड़ी।

अर्जुन ने वनवास के दौरान अनेक धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया। ऋषि-मुनियों की संगति में रहकर उनसे ज्ञान अर्जित किया। इस प्रकार उनका जीवन प्रभु-भक्ति में व्यतीत हो रहा था।

एक दिन जब अर्जुन स्नान करने नदी के तट पर गए तो नागराज कौरव्य की पुत्री उलूपी उन पर मोहित हो गई। उसने अर्जुन को जल में खींच लिया और पाताललोक ले गई। वहां उसने अर्जुन से विवाह कर लिया और उनके अंश से इरावान नामक पुत्र को जन्म दिया।

वापस जाने से पूर्व उलूपी ने अर्जुन को वरदान दिया कि भविष्य में सभी जलीय जीव उन्हें अपना मित्र समझेंगे और जल में वे सदा अजेय रहेंगे।

तत्पश्चात् भ्रमण करते हुए अर्जुन मणिपुर जा पहुंचे। वहां राजा चित्रवाहन का राज्य था। अर्जुन के विषय में जानकर वे अत्यन्त प्रसन्न हुए

और उनका आदर-सत्कार किया। वहां अर्जुन ने चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा को देखा तो उससे विवाह की इच्छा प्रकट की।

चित्रवाहन का कोई उत्तराधिकारी नहीं था। अतः उन्होंने विवाह से पूर्व यह शर्त रखी कि वे चित्रांगदा के पुत्र को गोद लेकर उसे अपना उत्तराधिकारी बनाएंगे। अर्जुन ने शर्त स्वीकार कर ली और दोनों का विवाह हो गया।

अर्जुन के अंश से चित्रांगदा ने बभ्रुवाहन नामक वीर पुत्र को जन्म दिया, जिसे चित्रवाहन ने गोद ले लिया। कुछ समय वहां बिताने के बाद चित्रांगदा को चित्रवाहन के पास छोड़कर अर्जुन यात्रा पर बढ़ चले।