कुंती और पांडव जीवित हैं, यह समाचार चारों ओर फैल गया था। राजा द्रुपद आदरसहित उन्हें अपने महल में ले आए। हस्तिनापुर में भीष्म पितामह, विदुर, धृतराष्ट्र, दुर्योधन को भी यह सूचना प्राप्त हो चुकी थी। भीष्म पितामह के परामर्श से धृतराष्ट्र ने पांडवों को लाने के लिए विदुर को भेजा।
विदुर बहुमूल्य उपहार लेकर पांचाल पहुंचे और पांडवों को साथ लेकर हस्तिनापुर लौट आए।
हस्तिनापुर में पांडवों, कुंती और द्रौपदी का भव्य स्वागत हुआ। प्रजाजन अपने युवराज को देखने के लिए घरों से बाहर निकल आए। चारों ओर उत्सव का वातावरण था।
दूसरे दिन राजसभा में यह निर्णय लिया गया कि कौरवों और पांडवों के बीच की शत्रुता समाप्त करने के लिए हस्तिनापुर का आधा राज्य पांडवों को तथा आधा कौरवों को दे दिया जाए। युधिष्ठिर ने इस निर्णय को सहर्ष स्वीकार कर लिया। धृतराष्ट्र ने पांडवों को खांडवप्रस्थ में अपनी राजधानी बनाने के लिए कहा। इसलिए वे कुंती और द्रौपदी को साथ लेकर खांडवप्रस्थ पहुंच गए। वहां उन्होंने विशाल महल बनवाया। अब युधिष्ठिर भाइयों, पत्नी और माता के साथ वहां सुखपूर्वक रहने लगे। यही खांडवप्रस्थ इंद्रप्रस्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
कुछ दिनों के लिए श्रीकृष्ण भी वहां आकर रहे।
एक दिन श्रीकृष्ण और अर्जुन शिकार के लिए खांडव वन में गए। वहां उनकी भेंट अग्निदेव से हुई। अग्निदेव ने अर्जुन से कहा कि खांडववन में तक्षक नामक नाग रहता है, जो इंद्र का मित्र है। इसलिए वे जब भी भूख मिटाने के लिए वन को जलाने लगते हैं, वैसे ही इंद्र वर्षा करके अग्नि को बुझा देते हैं। अग्निदेव ने अर्जुन को इस कार्य में सहायता करने की प्रार्थना की।
अर्जुन उनकी सहायता के लिए तैयार हो गए। तब अग्निदेव ने अर्जुन को गांडीव नामक धनुष तथा श्रीकृष्ण को सुदर्शन नामक चक्र प्रदान किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक दिव्यास्त्र भी अर्जुन को प्रदान किए। तत्पश्चात् अर्जुन के कहने पर उन्होंने खांडव वन को निगलना प्रारंभ किया।
उस समय तक्षक नाग खांडव वन में नहीं था, परंतु उसकी पत्नी और पुत्र अग्नि के बीच फंस गए। इंद्र शीघ्र उनकी सहायता करने आए, परंतु अर्जुन ने उन्हें पराजित कर दिया। अंत में पुत्र को बचाते हुए तक्षक की पत्नी जलकर भस्म हो गई। इस दावानल में मयासुर नामक राक्षस भी फंस गया। अर्जुन ने उसे सुरक्षित निकाल लिया। इस प्रकार मयासुर और अर्जुन में मित्रता हो गई।
मयासुर को ‘राक्षसों को विश्वकर्मा’ कहा जाता है। उसने खांडवप्रस्थ में आकर एक दिव्य और अद्भुत महल की रचना की, जिसका वैभव स्वर्गलोक के समान था। तत्पश्चात् अर्जुन से विदा लेकर वह अपने लोक लौट गया।