striyon ko shaap -  mahabharat story
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अश्वत्थामा के जाने के बाद पांडवों ने अपने मृत बंधु-बांधवों का अंतिम संस्कार किया। इसके बाद युद्ध में मारे गए स्वजन का तर्पण करने के लिए कुंती, पांडव, धृतराष्ट्र, गांधारी, सुभद्रा, द्रौपदी, उत्तरा और भगवान श्रीकृष्ण गंगा नदी के तट पर आए और उन्हें जलांजलि देने लगेे।

जब कुंती ने कर्ण के नाम की जलांजलि दी तो युधिष्ठिर आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने माता से इसका कारण पूछा। कुंती ने युधिष्ठिर को बताया कि कर्ण उनका सबसे बड़ा पुत्र था, परंतु लोक-लाज के कारण वे उसे कभी अपना पुत्र नहीं कह सकी।

सत्य सुनकर युधिष्ठिर पर मानो वज्राघात हुआ। वे दुःखी होकर बोले-

“माताश्री ! यदि आप पहले ही हमें सत्य बता देतीं तो आज यह दिन न देखना पड़ता। हम अपने भाई कर्ण के लिए सब कुछ त्याग देते। आपने हमसे यह सत्य छिपाकर घोर अनर्थ किया है। इसलिए मैं संपूर्ण स्त्री-जाति को यह शाप देता हूं कि आज के बाद वह कोई भी बात छिपा नहीं पाएगी।”

इसके बाद युधिष्ठिर ने स्वयं अपने बड़े भाई का श्राद्ध-तर्पण करवाया। तत्पश्चात् वे सभी हस्तिनापुर लौट गए।

हस्तिनापुर में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से तीन अश्वमेध यज्ञ करवाए। इस प्रकार श्रीकृष्ण की कृपा से युधिष्ठिर की कीर्ति संपूर्ण पृथ्वी पर फैल गई। इसके बाद श्रीकृष्ण ने पांडवों से विदा ली और उद्धव के साथ द्वारिका जाने के लिए रथ पर सवार हो गए। जैसे ही सारथी रथ आगे बढ़ाने लगा, श्रीकृष्ण की दृष्टि उत्तरा पर पड़ी, जो अत्यंत भयभीत होकर उनकी ओर दौड़ी आ रही थी। वे तत्क्षण रथ से उतर गए।

उत्तरा उनके निकट आकर भयभीत स्वर में बोली-“भगवन्! मेरी रक्षा कीजिए। यह भयंकर अग्नि-बाण मेरे गर्भ को जलाने के लिए इसी ओर आ रहा है।”

भगवान श्रीकृष्ण पल-भर में जान गए कि अश्वत्थामा ने पांडव-वंश को नष्ट करने के लिए अग्नि-बाण का प्रयोग किया है। उसी समय पांडवों ने भी देखा कि पांच बाण अग्नि उगलते हुए उनकी ओर आ रहे हैं। इन बाणों में अश्वत्थामा ने अपना संपूर्ण तेज झोंक दिया था। उन्होंने अपने-अपने अस्त्र उठा लिए और उन बाणों को निस्तेज करने का प्रयास करने लगे, किंतु वे इसमें सफल नहीं हो सके। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने माया-कवच से उत्तरा सहित सभी पांडवों को ढक लिया। इसके बाद उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उन दिव्य बाणों को क्षण-भर में नष्ट कर दिया।

इस प्रकार श्रीकृष्ण ने एक बार फिर पांडवों की रक्षा की।