महर्षि व्यास के कहे अनुसार धृतराष्ट्र जन्म से ही नेत्रहीन थे, जबकि पांडु शारीरिक रूप से दुर्बल थे। इनके विपरीत विदुर पूर्णतः स्वस्थ थे। तीनों बालक भीष्म की छत्र-छाया में पल रहे थे। उन्होंने उनकी शिक्षा-दीक्षा की उचित व्यवस्था की थी। धृतराष्ट्र नेत्रहीन होने के बाद भी जहां अतुलनीय शारीरिक शक्ति से सम्पन्न थे, वहीं पांडु को धनुर्विद्या में महारत प्राप्त थी। विदुर नीति-शास्त्र और राजकीय कार्यों में निपुण थे।
तीनों के युवा होने पर यह प्रश्न उठा कि किसे हस्तिनापुर के सिंहासन पर बिठाया जाए? यद्यपि धृतराष्ट्र सबसे बड़े थे और परंपरा के अनुसार सिंहासन पर उनका अधिकार था, किंतु नेत्रहीन होने के कारण उन्हें अयोग्य माना गया। विदुर दासी-पुत्र थे, इसलिए उनके राज्ययाभिषेक का प्रश्न ही नहीं उठता था। अंत में पांडु को हस्तिनापुर का राजा घोषित करके विदुर को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया।
अब भीष्म को उनके विवाह की चिंता सताने लगी। उन्होंने अपने दूत को भेजकर गांधार के राजा सुबल से धृतराष्ट्र के लिए उनकी पुत्री गांधारी का हाथ मांगा। जब सुबल को धृतराष्ट्र के नेत्रहीन होने की बात पता चली तो उन्हें इस प्रस्ताव ने असमंजस में डाल दिया। वे कोई निर्णय लेते, इससे पूर्व गांधारी ने स्वयं ही धृतराष्ट्र को अपना पति मान लिया और आजीवन अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। अंततः गांधारी का भाई शकुनि उसे साथ लेकर हस्तिनापुर आ गया।
फिर अत्यंत धूमधाम से भव्य समारोह में गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र के साथ संपन्न हुआ। तत्पश्चात् राजा पांडु का विवाह कुंतिभोज की पुत्री कुंती के साथ तथा विदुर का विवाह राजा देवक की पुत्री के साथ हुआ।
राजा पांडु की एक रानी और थी, जिसका नाम माद्री था। वह मद्र देश के राजा शल्य की बहन थी। उसने राजा पांडु की वीरता के विषय में सुन रखा था। अतः उसने अपने भाई से राजा पांडु से विवाह की इच्छा प्रकट की तो उन्होंने भीष्म के पास विवाह-प्रस्ताव भेजा। शीघ्र ही पांडु और माद्री का विवाह हो गया।
