uttaraadhikaaree mahabharat story
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सुंदर पत्नियां पाकर विचित्रवीर्य अत्यंत प्रसन्न थे। उनके रूप-सौंदर्य में लिप्त होकर वे अपना अधिकांश समय उनके साथ ही बिताने लगे। अभी कुछ महीने ही व्यतीत हुए थे कि वे क्षयरोग से ग्रस्त हो गए। अनेक वैद्यों ने उनका उपचार किया, किंतु सब विफल रहा। अंत में वे काल का ग्रास बन गए।

विचित्रवीर्य की कोई संतान नहीं थी। भीष्म आजन्म अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा से बंधे थे, इसलिए वे विवाह नहीं कर सकते थे। अब राज्य के सामने समस्या थी कि उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। हस्तिनापुर का सिंहासन पुनः रिक्त हो गया था।

सत्यवती उस समय को कोस रही थी, जब उसके पिता ने भीष्म को आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा करने के लिए विवश किया था। उसने अपनी भूल सुधारने का निश्चय कर भीष्म से कहा‒”वत्स! तुमने अविवाहित रहने की जो प्रतिज्ञा की थी, अब उसका कोई औचित्य नहीं रहा। मेरे दोनों पुत्र काल का ग्रास बन चुके हैं। अतः तुम अम्बिका और अम्बालिका से विवाह करके इस सिंहासन पर बैठो। मैं तुम्हें प्रतिज्ञा से मुक्त करती हूं।”

भीष्म हाथ जोड़कर बोले‒ “माते! मैं अपनी प्रतिज्ञा पर अटल हूं। मुझे उसे भंग करने की आवश्यकता नहीं है। अभी आपका एक पुत्र जीवित है, इसलिए आप उनसे सहायता लें। वे आपकी आज्ञा का उल्लंघन कदापि नहीं करेंगे। इस प्रकार हस्तिनापुर को अपना उत्तराधिकारी मिल जाएगा।”

तब राजमाता सत्यवती ने व्यासजी की सहायता लेने का विचार किया। इस उद्देश्य से वे व्यासजी के आश्रम में पहुंचीं। माता सत्यवती को वहां देखकर व्यासजी ने उनका आदर-सत्कार किया और वहां आने का प्रयोजन पूछा।

तब सत्यवती बोलीं‒ “पुत्र! इस समय हस्तिनापुर पर घोर संकट आया हुआ है। मेरे दोनों पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं और राज्य का कोई उत्तराधिकारी नहीं है। बिना उत्तराधिकारी के हमारा वंश और राज्य‒दोनों नष्ट हो जाएंगे। मैं तुम्हारे पास सहायता के उद्देश्य से आई हूं। तुम अम्बिका और अम्बालिका के गर्भ से हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी उत्पन्न करो।”

व्यासजी ने उन्हें सहायता का आश्वासन दिया और उनके साथ हस्तिनापुर आ गए। राजमहल में उनके ठहरने की व्यवस्था करके सत्यवती ने एक-एक कर अपनी दोनों पुत्रवधुओं को उनके पास भेजा।

व्यासजी बड़े तपस्वी थे। उनका तेज असहनीय था। उनके तेज से अम्बिका के नेत्र स्वतः बंद हो गए और उसने इसी अवस्था में ही उनके साथ समागम किया। तत्पश्चात् अम्बालिका कक्ष में आई तो तेजयुक्त महर्षि व्यास को देखकर भयभीत हो गई।

अम्बालिका के जाने के बाद व्यासजी ने सत्यवती से कहा‒ “माते! अम्बिका को एक वीर और सुंदर पुत्र की प्राप्ति होगी, किंतु वह नेत्रहीन होगा। अम्बालिका का पुत्र भी एक पराक्रमी योद्धा होगा, लेकिन वह अधिकतर रोगी और अस्वस्थ रहेगा।”

व्यासजी की बात सुनकर सत्यवती चिंतित हो गई। बहुत सोच-विचार करने के बाद उसने अम्बिका को पुनः व्यासजी के पास जाने को कहा, परंतु अम्बिका अत्यंत भयभीत थी। उसने अपने स्थान पर अपनी एक प्रिय दासी को भेज दिया। वह दासी निडर, साहसी और बुद्धिमान थी। उसने सहर्ष व्यासजी के साथ समागम किया।

उसके जाने के बाद व्यासजी ने सत्यवती से कहा‒ “माते! इस दासी का पुत्र अत्यंत मेधावी, विद्वान, बुद्धिमान, व्यवहार-कुशल और न्यायप्रिय होगा। इसे हस्तिनापुर का प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा।” तदंतर वे अपने आश्रम लौट गए। उचित समय पर अम्बिका, अम्बालिका और दासी ने क्रमशः धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर को जन्म दिया।

इस प्रकार व्यासजी ने हस्तिनापुर के राजवंश को नष्ट होने से बचाया।