Rajasthan Haunted Places: अगर आप गूगल पर सर्च करेंगे एशिया का सबसे भूतिया गांव कौन सा है, तो गूगल पर आपको जैसलमेर का कुलधरा दूसरे या तीसरे नंबर दिख जाएगा। जैसलमेर से करीब 18 किलोमीटर दूर कुलधरा गांव एक समय हॉन्टेड विलेज के लिए जाना जाता था, लेकिन अब इस गांव में टूरिस्टों की चहल पहल रहती है। हालांकि दिन ढलने के बाद आज भी यहां कोई नहीं रुकता। करीब 200 साल पहले कुलधरा समेत 84 गांवों में रहने वाले पालीवाल ब्राह्मणों ने रातों रात गांव खाली कर दिए थे। अब इनकी हवेलियां और घर वीरान खंडहर हो चुके हैं। आखिर क्यों रातों रात लोग अपना सब कुछ छोड़कर चले गए, इसे लेकर आज भी यहां कई कहानियां प्रचलित हैं।
आखिर क्या है कुलधरा का इतिहास

इस समर हॉलिडे में कुछ एडवेंचर से भरा हुआ देखना है तो कुलधरा एक अच्छा ऑप्शन है। कुलधरा के इतिहास की बात करें, तो ये गांव कार्क नदी के किनारे 1300 साल पहले बसा था। साल 1291 में पाली जिले से ब्राह्मणों के कई परिवार पलायन कर जैसलमेर आए थे। पाली से आने के कारण यहां के ब्राह्मण ‘पालीवाल ब्राह्मण’ कहलाने लगे। जैसलमेर के 45 किलोमीटर के इस एरिया में ब्राह्मणों के 84 गांव बस गए। सबसे ज्यादा लोग कुलधरा गांव में आकर बसे। नदी के किनारे होने के कारण यहां करीब 600 घरों को बसाया गया था। ये ब्राह्मण धन और सम्पती से सम्पन्न थे।
बॉलीवुड की भी फेवरेट जगह

कुलधरा टूरिस्ट्स के लिए ही नहीं, बल्कि बॉलीवुड की भी फेवरेट जगह है। यहां स्टार अजय देवगन की फिल्म कच्चे धागे, सैफ अली खान की फिल्म एजेंट विनोद सहित कई फिल्मों की शूटिंग हुई है। यहां साउथ की फिल्मों की भी शूटिंग होती रहती है। बॉलीवुड डायरेक्टर अपनी फिल्मी कहानी में वीरान गांव या हॉंटेड गांव दिखाने के लिए कुलधरा गांव की ओर खिंचे चले आते हैं।
पलायन की अलग-अलग कहानियां

कुलधरा के पालीवाल ब्राह्मणों के पलायन की भी अलग अलग कहानियां बताई जाती हैं। कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि 18वीं सदी के समय सालिम सिंह दीवान था, जो कुलधरा गांव से गुजर रहा था। उसने यहां के प्रधान की बेटी शक्ति मैया को देखा और उससे शादी करने की इच्छा जताई। सालिम सिंह की पहले से ही 7 पत्नियां थीं। पालीवाल ब्राह्मण अपनी बेटियों की दूसरी जाति में शादी नहीं करते थे। जब एतराज किया तो सालिम सिंह ने गुस्से में गांव वासियों को मौत के घाट उतारकर पूरा गांव उजाड़ने की धमकी दी और एक दिन का समय दिया। धमकी के बाद वर्ष 1825 में रातों-रात 84 गांवों ने पलायन कर दिया।
ये कहानियां भी हैं जुड़ी हुईं

कुछ लोगों का कहना है कि सालिम सिंह को पता था कि पालीवाल ब्राह्मणों के पास काफी पैसा है। जब अकाल पड़ा तो इन गांवों पर इतना कर लगाया कि परिवारों को यहां से पलायन करना पड़ा। कुछ का कहना है कि सालिम सिंह के अत्याचारों से परेशान होकर गांव खाली हो गए। वहीं, कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सैकड़ों साल पहले भूकंप आया था, जिससे गांव नष्ट हो गया।
अंधविश्वास भी जुड़े

कुलधरा को लेकर अंधविश्वास भी जुड़ा हुआ है। यहां स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां से जब गांव पलायन कर रहे थे, तो उन्होंने श्राप दिया था। इन गांववालों ने ये श्राप दिया था कि इस गांव में जो भी बसने की कोशिश करेगा, वह भी पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा। इस श्राप के डर के कारण खाली गांव में भी कोई आकर नहीं बसा। कुलधरा गांव के पास खाबा फोर्ट बना हुआ है, जो खंडहर की तरह है। इस जगह को भी हॉन्टेड जगह कहा गया है। लोग कहते हैं कि रात को इस खंडहर में से चूड़ियों की आवाजें सुनाई देती हैं। इस कारण रात को यहां कोई नहीं आता। यहां एक पुराना कुआं भी है। कहते हैं कि इसमें आत्माएं रहती हैं। रात को यहां औरत की अजीब तरह की आवाजें आती हैं। वहां, खजाने की भी अफवाह फैली हुई है। कहते हैं कि खंडहरों में तहखाना बना हुआ है, जहां खजाना है। लोगों का कहना है कि खजाने को बचाने के लिए भूतों की अफवाह फैलाई गई है।
हर साल आते हैं टूरिस्ट
कुलधरा ऐसी जगह है जो धीरे-धीरे देश में ही नहीं विदेश में भी विख्यात हो गई है। इस हॉन्टेड जगह को देखने के लिए हर साल एक लाख से ज्यादा टूरिस्ट देश विदेश से आते हैं। स्थिति यह बन गई है कि यदि पर्यटकों की संख्या के आधार पर देखें तो अब कुलधरा जैसलमेर का सबसे बड़ा टूरिस्ट स्पॉट बन चुका है। इस वीरान गांव को देखने के लिए हर साल एक लाख से ज्यादा टूरिस्ट पहुंच रहे हैं। राज्य सरकार भी ट्यूरिस्टों की संख्या को देखते हुए उत्साहित है। इस गांव को टूरिस्ट स्पॉट बनाने के लिए सरकार ने करीब 10 करोड़ से ज्यादा के निर्माण कार्य करवाए हैं।
मकान ऐसे कि 50 डिग्री में ठंडक होती है महसूस

यह गांव भले ही आज विरान हो गया है, लेकिन उस समय की वास्तुकला का बेजोड़ उदाहरण है। गांव में घरों को आधुनिक तकनीक से बनाया गया था। जैसलमेर के 50 डिग्री तापमान में भी मकानों के अंदर ठंडक रहती है। क्रॉस वेंटिलेशन के लिए कमरों में बहुत सारी खिड़कियां बनाई गई थीं, जिससे घर में हवा आती-जाती रहती थी। ये मकान इतने बड़े हैं कि इनमें पचास लोगों तक के रुकने और खाने पीने की व्यवस्था आसानी से हो सकती है। घरों के अंदर कमरों में खजाने या धन को छिपाने के लिए तहखाने बनाए गए थे। इन मकानों की सबसे बड़ी खासियत है इनकी छत। छत बनाने के लिए बड़ी-बड़ी लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता था। लकड़ियों पर विशेष प्रकार की घास और उसके ऊपर गाय के गोबर का लेप था। गाय के गोबर के बाद मिट्टी का लेप भी किया जाता है। इस तरह से बनाई गई छत गर्मियों में मकानों को गर्म नहीं होने देती और सर्दियों में मकान गर्म रहते हैं।
खेती की तकनीक भी वैज्ञानिक
पालीवाल ब्राह्मण खेती में भी उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करते थे। सभी को मालूम है कि जैसलमेर में काफी कम बारिश होती है। इसके बावजूद कम पानी में भी गांववासी गेहूं जैसी फसल उगा लेते थे। वहीं चने की फसल भी यहां प्रमुख थी। इनकी खेती की तकनीक का नाम है खड़ीन तकनीक। इस तकनीक के लिए मिट्टी का बांध बनाते थे, जो ढलान वाली जगह के नीचे बनाया जाता था। बारिश में ढलान से पानी बहकर इस बांध में आकर भर जाता था। बहकर आने वाला पानी उर्वरकता भी बढ़ता था। नमी की मात्रा बढ़ने से एक वर्ष में दो फसलें लेना भी संभव हो जाता था।
