Hindi Kahaniyan: आज अमरकांत बाबू मॉर्निंग वॉक से आकर चुपचाप अपने कमरे में चले गए
यह देख उनकी पत्नी राधिका जी को थोड़ा अटपटा लगा। क्योंकि बाकी दिन तो आंगन में कदम रखा नहीं कि चाय के लिए आवाज देने लगते थे। फिर लगा शायद कुछ काम हो।
जब कुछ देर तक वो अपने कमरे से बाहर नहीं निकले और ना ही चाय के लिए आवाज लगाई। तब राधिका जी कमरे में चाय लेकर गई तो देखा अमरकांत बाबू सिर झुकाए चुपचाप कुर्सी पर बैठे थे।
उन्हें इस तरह बैठे देख राधिका जी ने घबराते हुए पूछा,
“क्या हुआ? आपकी तबीयत तो ठीक है ना?”
अमरकांत बाबू ने हां में सिर हिला दिया।
“फिर इस तरह क्यों बैठे हैं?”
“वो..! वो.. अमन अब इस दुनिया में नहीं रहा।”
“अमन.! कौन अमन?”
“अरे अपनी सिया का पति अमन! अपना दामाद।”
“क्या.? अपना दामाद अमन अब इस दुनिया में नहीं रहा? पर अचानक क्या हो गया?”
“एक्सीडेंट! 2 दिन पहले ही उसका एक्सीडेंट हो गया। जिसने उसे गंभीर चोट आई और उसे बचाया नहीं जा सका।”
“हे भगवान! दो दिन हो गए और हमें बताया तक नहीं, पता भी नहीं चलने दिया। अजी यूं सिर पर हाथ रख कर कब तक बैठे रहोगे? चलो जल्दी से बिटिया के पास।”
पत्नी की बात सुनकर भी अमरकांत बाबू ने जब कुछ जवाब नहीं दिया। तब राधिका जी ने झकझोरते हुए कहा, “अरे अब कैसी नाराजगी? चलो बिटिया का तो संसार उजड़ गया, पता नहीं अब कैसे रहेगी? अब कौन आसरा होगा? चलो चल कर देखते हैं।”
अमरकांत बाबू कुछ देर तक गुमसुम बैठे रहे फिर बेटी के घर को विदा हुए साथ में राधिका जी भी चली।
अमरकांत बाबू शहर के नामी बिजनेसमैन थे और सिया उनकी इकलौती बेटी।
बिटिया सिया जब कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर ली तब उन्होंने उसके लिए रिश्ता ढूंढना शुरू किया। यह बात जब सिया को पता चली तब पिता को अपनी पसंद अमन के बारे में बताया। साथ में ये भी कहा कि वे दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं और जीवन भर के लिए एक दूसरे का हाथ थामना चाहते हैं।
अमरकांत बाबू बेटी की बात सुनकर काफी नाराज हो गए।
तब सिया ने कहा,
“पापा प्लीज नाराज मत होइए। अमन बहुत अच्छा लड़का है। आप एक बार उससे और उसके परिवार वालों से मिल लीजिए। देखिए अगर आपको नहीं पसंद हुआ तो मैं इस रिश्ते से इनकार कर दूंगी पर बिना मिले कोई निर्णय मत लीजिए।”
तब खुद पर संयम रखते हुए कहा, ठीक है हम उससे और उसके परिवार वाले से कल ही मिलते हैं।
परंतु जब लड़का और उसके परिवार वालों से मिले तब पता चला कि वह दूसरी जाति का है। वह भी उनसे नीची जाति का। तब दोनों पति पत्नी काफी नाराज हो गए और शादी से साफ इनकार कर दिया।
“यह सब करने और बोलने से पहले एक बार अपने पिता के बारे में नहीं सोचा? मेरा कितना नाम है, रुतबा है इस शहर में! अरे मैं कोई ऐरा गैरा नहीं हूं शहर के नामी बिजनेसमैन में से एक हूं, धाक है मेरी। देखो तुम इसे भूल जाओ। शहर के बड़े-बड़े लोग रिश्ते जोड़ने के लिए आतुर है और तुमने उसे पसंद किया। अरे! क्या उसकी औकात है तुम्हें रखने की, तुम्हारी जरूरत पूरी करने की?”
“पापा, अभी नहीं है लेकिन हो जाएगी। हम दोनों अच्छे पढ़े—लिखे हैं तो अच्छी नौकरी हमें मिल जाएगी अगर नहीं भी मिली तो आप है ना! आपकी मदद से तो अमन को अच्छी नौकरी बड़ी आसानी से मिल जाएगी फिर समस्या कहां रहेगी?”
परंतु फिर भी अमरकांत बाबू तैयार नहीं हुए।
इधर अमन के मां बाप ने भी साफ-साफ मना कर दिया सिया को अपने घर की बहू बनाने से। और इसकी सबसे बड़ी वजह थी सिया की ऊंची जाती और उसके पिता का रुतबा। उन्हें डर था कि कहीं कुछ उल्टा सीधा ना हो जाए।
दोनों अपने माता पिता की राय जानकर बहुत दुखी हुए। परंतु दोनों ने हार नहीं मानी और एक बार फिर अपने मां बाप को मानने लगे।
लेकिन जब वे नहीं माने तब अपने परिवार के खिलाफ जाकर दोनों ने शादी कर ली। कुछ दिनों तक दोनों माता पिता के सामने नहीं आए। पर जब लगा कि उनका गुस्सा शांत हो गया होगा तब दोनों माता पिता का आशीर्वाद लेने आए। परंतु, दोनों के माता पिता ने आशीर्वाद देना तो दूर शक्ल तक देखने से मना कर दिया।
कई महीने तक दोनों अपने-अपने माता-पिता को चिट्ठियां, फोन कॉल और दूसरों के हाथ संवाद भिजवाया। माफ़ कर देने के लिए बोलते रहे। परंतु वे नहीं माने। एक बार अमन के मां बाप तो अपने बेटे को स्वीकार करने को तैयार हो भी गए परन्तु इस शर्त के साथ कि सिया को छोड़ दो। किंतु इसके लिए अमन तैयार नहीं हुआ तब वे भी अपने बेटे से रिश्ता तोड़ दिया।
अब जब अमन और सिया को लगा की माता पिता स्वीकार नहीं कर रहे हैं, नहीं मान रहे हैं तब पिता के घर से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर एक घर किराए पर लेकर रहने लगी ताकि करीब रहेंगे तो आते जाते मुलाकात होती रहेगी। फिर हो सकता है एक दिन माफी भी मिल जाए। अगर मेरे मां बाप ने अपना लिया तब तो अमन के मां बाप भी जरूर मान जाएंगे। लेकिन, जब यह बात अमरकांत बाबू को पता चली तब वो और नाराज हो गए और उस रास्ते से आना जाना भी बंद कर दिए।
संयोग वश एक बार वो कहीं जा रहे थे तो दोनों बाप बेटी आमने-सामने हो गए। पापा को देखते ही सिया भाग कर पास आई। परंतु उन्होंने गुस्से में आंखें लाल पीले कर देखा तो डर के मारे नजदीक नहीं आई और ना ही कुछ बोल सकी। उसके बाद फिर कभी नहीं दिखी। हां कुछ दिनों बाद किसी और से पता चला कि सिया ने एक लड़के को जन्म दिया है। यह बात जब राधिका जी को पता चली तो उनका ह्रदय पिघल गया नाती को देखने के लिए। परंतु हर बार की तरह इस बार भी अमरकांत बाबू नहीं पिघले और साफ-साफ मना कर दिया जाने से। परंतु आज दामाद के गुजर जाने की खबर सुनते ही बेटी के प्रति नाराजगी लगभग दूर हो गई।
बेटी का घर मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर था। परंतु यह दूरी मानो खत्म नहीं हो रही थी। ऐसा लग रहा था उनके कदम उठ नहीं रहे। फिर भी जैसे तैसे बेटी के घर पहुंचे तो बेटी सिमट सिकुड़ कर गुमसुम बैठी थी। डेढ़ साल का बच्चा खेल रहा था। सिया को वैधव्य रूप में देख राधिका जी का कलेजा फट गया। तीन साल पहले बेटी को देखा था शादी के लाल जोड़े में और आज सफेद लिबास में देख दहाड़े मार कर रोने लगी।
मां बाप को सामने देख सिया भी उनसे लिपट कर जोर-जोर से रोने लगी।
“मम्मी, पापा, अब मैं कैसे जिऊंगी? किसके सहारे? यह पापा के बिना कैसे बड़ा होगा? सब कुछ उजड़ गया!”
दोनों पति-पत्नी ने बेटी को संभालने लगे।
” बेटा, मत रो शायद ईश्वर को यही मंजूर था। तुम्हारा सुहाग इतने दिनों का ही था।” बेटी को सांत्वना देते हुए दोनों पति-पत्नी ने उसके घर के तरफ नजर दौड़ाई। मात्र एक बेडरूम और उसी में अटैच्ड एक छोटा सा किचन था। बेडरूम भी इतना बड़ा ही था कि एक चारपाई रखने पर बस आने जाने की जगह ही बची थी। इतने बड़े घर में राजकुमारी की तरह रहने वाली मेरी बेटी इतनी छोटे से कमरे में कैसे पिछले 3 साल से रह रही थी? गुजारा कर रही थी? यही सब सोच रही थी तब तक बेटी के सास ससुर भी गाली देते हुए घर में घुसे।
“जिस दिन से यह आफ़त मेरे बेटे के जीवन में आई है, मेरा बेटा कभी सुखी नहीं रहा, चैन की दो रोटी नसीब नहीं हुई। अरे! बहुत बड़ी डाकन है तू! खा गई मेरे इकलौते बेटे को!”
उनकी आवाज सुनकर अब तक तो आसपास के और भी लोग जमा हो गए, आपस में खुसर फुसर करने लगे।
“अरे! यह तो एक दिन होना ही था। मां बाप का दिल जो दुखाया था। बद्दुआ तो लगेगी ही।”
“हां, इसलिए तो कहा जाता है कि शादी विवाह कभी भी सबकी मर्जी से की जाती है, सब के दुआ आशीर्वाद के साथ तभी फलता है।”
“मैं तो बगल में ही रहती हूं अक्सर दोनों में लड़ाई होती थी और पिछले कुछ दिनों से तो उसकी नौकरी भी छूट गई थी, बहुत टेंशन में था। मैंने तो यह भी सुना था कि इसका पति डिप्रेशन में था। मुझे तो लगता है जानबूझकर बस के सामने आ गया ताकि इस गरीबी से परिवार को छुटकारा मिल सके। अरे तुम लोग समझ रहे हो ना मैं क्या बोलना चाह रही हूं?
“हां-हां समझ गई ताकि कुछ मुआवजा मिल जाए।”
कुछ इसी तरह की बातें हो रही थी। जो राधिका जी को बर्दाश्त नहीं हुआ। वो कान पर दोनों हाथ रख भाग गई।
कुछ देर तक सांत्वना देने के बाद दोनों पति पत्नी बेटी और नाती को अपने साथ चलने के लिए कहा। पर पति के जाने के गम में डूबी सिया को कुछ सुनाई नहीं दिया।
“सिया, कहां खोई हो? बेटा, अब रोने से क्या होगा जिसे जाना था वह तो चला गया अब यहां कोई नहीं है तुम दोनों को देखने वाला तो चलो यहां से।”
“यहां से कहां चले मां?”
“अपने घर बेटा और कहां? चलो अब हम सब साथ मिलकर रहेंगे।”
“हां बेटा, तुम्हारी मां सही कह रही है। अब यहां क्यों और किसके भरोसे रहोगी? चलो हम सब साथ रहेंगे, हम तुम्हारे साथ है बेटा। चलो अपने घर चलो।”
सिया मां बाप को एक टक देखने लगी।
इधर सिया के सास ससुर जी भर कर भला बुरा सुनाने के बाद डेढ़ साल के पोते को उसके गोद से अपने गोद में ले लिया। ला दे मेरे पोते को, मेरे घर के चिराग को लेकर चले जाऊं मैं। मेरे बेटे की आखिरी निशानी है, नहीं तो तू इसे भी खा जाएगी।
वह बच्चा दादी के गोद में जाते ही जोर जोर से रोने लगा।
यह देख राधिका जी ने तुरंत अपने गोद में लेते हुए कहा, “खबरदार! इसे अपने साथ ले जाने की बात कही तो! यह मेरा नाती है यह मेरे साथ रहेगा हम ले जाएंगे इसे।”
“नहीं यह मेरा पोता है मेरे घर का चिराग, मेरा वंश बेल! यह आपका कुछ नहीं लगता। अगर ले कर जाना तो अपनी अलच्छी बेटी को ले जाइए। पर पोता को तो मैं ही लेकर जाऊंगी।”
दोनों के खींचातानी और कहा सुनी सुनकर सिया अपने आंसू पोछ उठ खड़ी हुई।
” खबरदार! आप दोनों में से किसी ने मेरे बच्चे को लेकर जाने की बात की तो। यह ना तो आपका नाती है और ना ही आपका पोता। यह सिर्फ और सिर्फ मेरा और अमन का बच्चा है तो यह मेरे साथ रहेगा। और हां, मैं अपना घर छोड़कर कहीं नहीं जा रही हूं।”
“इतना क्यों नाराज हो रही हो बेटा? जो हो गया सो गया। अब चलो अपने घर वहीं हम सब साथ में रहेंगे।”
“कौन सा अपना घर पापा? वही जिसके दरवाजे आपने हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दिया। पापा! जो बातें आज आप कह रहे हैं ना कि हम तुम्हारे साथ हैं। काश! यह पहले कहा होता तो आज मैं विधवा नहीं होती! मेरे बेटे के सिर से पिता का साया नहीं उठता। हमने कितनी बार फोन किया कि हमें माफ कर दीजिए पर नहीं। आप अपनी कही बातों पर टिके रहे, हमारी एक नहीं सुनी।
अमरकांत बाबू चुपचाप सुनते रहे।
“हां पापा, आपने जैसा कहा ठीक वैसा हुआ। पिछले 3 सालों में हम कभी सुखी नहीं रहे। और यह इसलिए नहीं कि हमारी कमाई नहीं थी या हमें किसी चीज की दिक्कत थी। बस इसलिए कि हम अकेले हो गए थे सब ने हमसे नाता तोड़ लिया। शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीक-ठाक रहा पर धीरे-धीरे हमें समझ आई कि सुखी जीवन के लिए परिवार का साथ होना भी ज़रूरी है और इसके लिए हमने बहुत प्रयास किया। परंतु आपने एक नहीं सुनी फिर आप आज किस हक से नाती को लेने आए हैं?
फिर सास ससुर की ओर मुखातिब होते हुए कहा, आज से पहले मैंने और आपके बेटे ने कितनी मिन्नतें की, कितनी बार कहा कि हमें स्वीकार कर लीजिए। तब आपने क्या कहा तुम मेरे लिए मर गए हो। आपने अपने लाडले बेटे को ऐसी बद्दुआ सिर्फ इसलिए दी क्योंकि उसने अपनी पसंद से शादी कर ली? जानते हैं परिवार से दूर होने का दुख दिन पर दिन बढता गया, वह खुद को काफी अकेला महसूस करने लगा। मेरे लाख समझाने के बाद कि मैं आपके साथ हूं, हम दोनों हैं साथ हैं तो धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। बावजूद उसे परिवार से अपने रिश्ते नातों से अलग होने का दुख सताने लगा और धीरे-धीरे वह डिप्रेशन में जाने लगा।
इसी वजह से उसकी नौकरी भी चली गई और अब वह खुद भी। मैं आप सब से पूछना चाहती हूं क्या अपनी पसंद से शादी करना इतना बड़ा अपराध है कि उससे रिश्ते तोड़ दिया जाए, बेदखल कर दिया जाए? पापा, जब आपने मुझे पढ़ने के लिए पूरी छूट दी, अपने करियर चुनने का अधिकार दिया तो फिर जीवनसाथी चुनने का छुट क्यों नहीं?” बोलकर सिया हिचकियां लेकर रोने लगी।
सिया की बात सुनकर माता पिता के साथ उसके सास ससुर की भी आंखें नम हो गई।
“आप सब इस दुख के घड़ी में आए, मुझे सांत्वना दी यह बहुत अच्छा लगा। परंतु मैं या मेरा बच्चा आप सब में से किसी के साथ नहीं जा सकते। अब मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए। यह मेरे हिस्से का संघर्ष है मुझे ही करना होगा। “बोलकर सिया ने हाथ जोड़ लिया।
सास ससुर से लेकर मां बाप भी सिया की बात सुनकर चुप रह गए। परंतु सोचने को मजबूर हो गए कि सच में यह कोई अपराध तो नहीं था। बस बच्चों ने अपनी पसंद बताई, अपने पसंद के संग जीवन बताने की बात कही। उन्होंने क्यों स्वीकार नहीं किया? जब बच्चे को पढ़ाई लिखाई के साथ कैरियर चुनने की भी पूरी छूट दी, अधिकार दिया तो जीवन साथी चुनने का अधिकार क्यों नहीं दिया? बस इतनी सी छूट दे देता है तो आज मेरी बेटी का परिवार भी सुखी रहता। सिया की कही एक एक बात चारो के दिमाग पर हथौड़े की तरह चोट करने लगे। वे अगर और कुछ देर रुकते तो शायद दिमाग फट जाता। सबने सिया और बच्चों के सिर पर हाथ फेरा और भारी मन से विदा हो गए।
