गुजरात का एक छोटा सा गांव बालिखेड़ा। भयंकर तूफानी रात और चारों तरफ पानी ही पानी। लगातार हो रही बारिश में अंधेरा और सन्नाटा पसरा था। एक घर में हल्की सी रोशनी थी। इतने में किसी के रोने की आवाज आई, फिर लड़की हुई है। चारों तरफ खामोशी छा गई। सहसा रोने की आवाज बंद हो गई।

सुबह के 4 बजने को थे। राधिका ने राहत की सांस ली, उसे आज ही शहर के लिये गाड़ी पकडऩी थी। थोड़ी देर में पूरी सुबह हो गई। अलसाते हुए उसने बिस्तर छोड़ा। तभी चाची ने आवाज लगाई, बिटिया चाय बन गई है, आकर पी लो। अंगड़ाई लेती हुई बोली- ‘आ रही हूं, चाची, रात में ढंग से सो न सकने के कारण भारीपन लग रहा था। बिस्तर से उठ कर चाचा के पास आ गई और बोली चाचा पानी तो बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा है। मैं कैसे जाऊंगी?

बिटिया आई हो तो तीन-चार हफ्ते रुककर जाओ, चाची ने कहा। पानी बंद होने के बाद मैं तुमको आस-पास घुमा लाऊंगा। तुम्हारे प्रोजेक्ट का क्या हुआ? वो तो पूरा होने से रहा इस बारिश में। पर उसका जयपुर पहुंचना जरूरी है, ठीक है चली जाना। इधर चाची गरमा गरम आलू की सब्जी और पूड़ी नाश्ते में बना रही थी। वह नहाने चली गई और रात में रोने की आवाज के बारे में पूछना ही भूल गई। नहाकर आई, नाश्ता किया और फिर चाचा के साथ घूमने निकल गई। प्रोजेक्ट के बहुत सारे काम बाकी थे, मगर बारिश की वजह से सारा प्रोग्राम बेकार हुआ सा लग रहा था। आज दोपहर के बाद से ही बारिश कम हो गई और उसने अपने बचे हुए काम पूरे किये ताकि वापस जयपुर जा सके।

दो दिन कब बीत गये, पता ही नहीं चला, जाने का समय आ गया। चाचा-चाची को वापस आने का वादा करके अपने शहर चली गई। घर का जैसे ही दरवाजा खोला, ढेर सारे पेपर यहां-वहां पड़े थे, उनको उठाकर वो देखने गई, एक लिफाफा देखते ही उसकी आंखें चमक गई, अरे ये तो बीना दीदी का पत्र है। तुरन्त पढऩा शुरू कर दिया, पढ़ते ही खुशी से झूम गई, चलो आखिर बीना दीदी विदेश से वापस आ रही हैं। कुछ तो काम हल्का हो गया और वो अब अपनी सहेली के साथ घूम फिर सकेगी। राधिका अपनी पढ़ाई के साथ-साथ सर्विस भी करती थी क्योंकि जब वो छोटी थी तभी उसके मां-बाप गुजर गये थे। उसकी परवरिश उसके चाचा-चाची ने बड़े प्यार से की
थी। जब कालेज गई तो पार्ट-टाइम नौकरी भी शुरू कर दी। फिर भी उसके दिल को सुकून नहीं था, वो अपनी तरह अनाथ बच्चों के लिये कुछ करना चाहती थी। एक दिन कहीं बीना दीदी से मुलाकात हो गई तो अच्छी सहेली बन गई।

बीना दीदी उम्र 35-36 के आस-पास थी पर वो उसे बहुत अच्छी लगती थी। उल्टे पल्ले की साड़ी, बड़ा सा जूड़ा, आंखों में चश्मा, बड़ी-बड़ी आंखें, चेहरे पर आत्मविश्वास की झलक अलग ही दिखती थी। इसके विपरीत राधिका मुश्किल से 24-25 साल की माडर्न पर बेहद खूबसूरत लड़की थी। वो अपने जैसे बच्चों के लिये कुछ करना चाहती थी। बीना दीदी एक एन.जी.ओ. चलाती थी जिसमें एक ‘पालना घर भी था और वह वहां की हेड थी। उस ‘पालना घर की विशेषता यह थी कि उसमें केवल लड़कियां ही थी। राधिका भी कभी-कभी वहां जाकर मदद करने की कोशिश करती थी। इधर कुछ महीने से बीना दीदी विदेश गई हुई थी तो उन्होंने सारी जिम्मेदारी राधिका को दे रखी थी। अब उनके आने पर राधिका काफी खुश थी। इतने में उसकी मेड भी आ गई। उसने सारे घर की सफाई की, तब तक राधिका नहा-धोकर तैयार हो गई।

मेड राधिका से बोली ‘बेटा कुछ खाने को तो नहीं बनाना है। मैं बना दूं, तुम थकी होगी। अरे नहीं काकी मैं बस बाहर जा रही हूं वहीं कुछ खा लूंगी। तभी दरवाजे से आवाज आई। अरे, राधिका बिटिया कब आई हो, उसने मुड़कर देखा तो अंकल आंटी थे, जो उसके बगल के घर में रहते हैं। आंटी के दो बेटे थे, जो विदेश में पढ़ते थे। आंटी-अंकल उसका बड़ा ख्याल रखते थे। राधिका-राधिका करते आंटी अंदर ही आ गई वो उसे देखने के लिये काफी आतुर थी। ये क्या बेटा, आते ही फिर चल दी। अरे आंटी मैं पालना घर जा रही हूं।

आज बीना दीदी वापस आ गई हैं। अच्छा… कहते हुए आंटी ने गहरी सांस ली। वो बोली आंटी क्या बात… कुछ परेशानी है क्या? आंटी ने बड़ी ही लापरवाही से कुछ सोचते हुए अपनी गर्दन ना में हिला दी और चुपचाप उठकर चल दी। अभी दरवाजे पर पहुंची ही थी फिर वापस आकर बोली- बेटा, लौटकर घर आना, तुमसे कुछ बात करनी है। आंटी बड़े अनमने ढंग से बोली। ताला बंद करते हुए आंटी से बोली आंटी शाम को मिलते हैं और आपके हाथ का खाना भी खाऊंगी। आंटी ने सुनकर भी नहीं सुना और बिना बोले ही चली गई।

 

पालना घर के बाहर तक बच्चों की आवाज आ रही थी- ‘चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक, जिसे सुन राधिका के चेहरे पर मुस्कान आ गई। अंदर आते ही सारे बच्चे दीदी-दीदी कहकर लिपट गये। कोई अपनी कार, कोई अपनी गुडिय़ा की नई ड्रेस दिखा रहा था, दूर कोने में एक छोटी सी लड़की चुपचाप खड़ी थी।

राधिका मुस्कुराते हुए बोली अरे, मेरी मुनिया अपनी दीदी से बात नहीं करेगी क्या? अपने छोटे-छोटे हाथों से आंखों को मलते हुए कुछ सोचकर चहक गई। दीदी, चलो, मुझे कुछ आपको दिखाना है। लगभग घसीटते हुए अंदर ले गई। वहां एक पालने के पास जाकर बड़ी-बड़ी आंखें मटकाते हुए बोली- कैसी लगी मेरी गुडिय़ा आपको। उसने देखा, पालने में एक प्यारी सी बच्ची थी, जिसने हरे रंग की फ्राक पहन रखी थी। उसने झुककर उसके गालों को छुआ, ओ कितनी प्यारी है, ये कब आई? ‘अरे तुम आ गई, बच्चों का शोर सुनकर बीना दीदी बाहर आ गई। राधिका हंसकर उनके गले लग गई।

आप तो जानती हो ये बच्चे मेरी जान हैं, इनके अलावा मेरा है कौन? बीना दीदी बोली ‘इसे कोई परेशानी है, ये अन्य बच्चों की तरह नहीं लगती। इसलिए आज डॉक्टर को बुलाया है। खैर छोड़ो, तुम बताओ तुम्हारा काम कैसा रहा। ठीक ही था बारिश की वजह से काफी परेशान हो गई। पर पूरा हो गया। बीना दीदी काफी थकी थी। राधिका ने साथ लाये खिलौने बच्चों में बांट दिये। बच्चों के चेहरे की खुशी देखने लायक थी। चाय पीने के बाद दोनों अपने-अपने रास्ते चली गई। रात में जब वो आंटी के पास गई तो उसे आंटी काफी खुश लगी। उसने भी छेड़ते हुए पूछा क्या बात है आंटी, सुबह तो कुछ और ही मूड था और अभी कुछ और… आंटी शरमा कर उसके गाल पर हल्की सी प्यार की थपकी देते हुए बोली ‘हट बदमाश कहीं की और दोनों खिलखिला कर हंस दी। इतने में अंदर से अंकल आ गये।

उसने अंकल से पूछा अंकल सोनू-मोनू की पढ़ाई कैसी चल रही है, पढ़ाई बढिय़ा चल रही है, पर वो अब वापस नहीं आना चाहते। वहीं अमेरिका में जॉब भी करना चाहते हैं। उसने अंकल से पूछा, आपने मना नहीं किया? तुमको लगता है। वो हमारी बात सुनेंगे, अंकल बोले। पर बेटा, हम एक बेटी गोद लेना चाहते हैं, इसलिये तुमसे मिलना चाहते थे। तुम्हारे ‘पालना घर में कोई छोटी सी बिटिया हो तो गोद दिला दो। आंटी बोली, बेटा तुम्हारा बहुत अहसान होगा, वरना सारा दिन घर में पड़ी-पड़ी बोर हो जाती हूं। ये अपने काम में मस्त रहते हैं। उसके आने से हमारे घर में खुशियां आ जायेगी। ठीक है अंकल कल सुबह आप मेरे साथ चलियेगा, देखते हैं, मैं क्या कर सकती हूं। सुबह 8 बजे डोर बैल की आवाज से उठी तो देखा कि सामने अंकल और आंटी खड़े थे। क्या, तुम तो तैयार भी नहीं हुई, ये कोई सोने का टाइम है?

अंकल प्यार से डांटते हुए बोले- ‘सॉरी, बस दो मिनट में आती हूं। जल्दी से तैयार होकर सब साथ-साथ पालना घर पहुंचे। उसने सारी बात बीना दीदी को फोन पर पहले ही बता दी थी। दीदी एक-एक करके सारी लड़कियों से अंकल-आंटी को मिलाने लगी पर उन्हें तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सारे बच्चे लालसा भरी नजरों से उन्हें देख रहे थे, मुझे गोद ले लें तो मेरा जीवन संवर जायेगा तभी किसी के रोने की आवाज आई। आंटी ने पीछे मुड़ कर देखा, झूले में बड़ी प्यारी बच्ची थी। वो बच्ची उन्हें देखकर मुस्कुराने लगी। आंटी ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और प्यार से चूम लिया। बेटा मुझे यही बेटी चाहिये। पर आंटी ये तो सिर्फ 15 दिन की है और शायद बीमार भी। आज ही डॉक्टर इसे देखने आये थे। इतने में बीना दीदी आ गई और बोली, मैं साफ-साफ बता दूं कि इसके पैर खराब हैं। ये विकलांग है। आंटी ने अंकल की तरफ देखा तो उन्होंने हां में सर हिला दिया, बोले हमें चैलेंज पसंद है। आसान जिंदगी तो सभी जीते हैं। मैं कुछ अलग करने में विश्वास रखता हूं।

दीदी बोली, जैसी आपकी इच्छा, मैं कागजी कार्यवाही पूरी करवा देती हूं, तब तक आप लोग यहां बैठे। करीब एक-दो घंटे में सारा काम निपट गया और वो उसे लेकर घर आ गये। दोनों बहुत खुश थे। उनके घर में जैसे जान आ गई थी। सारे घर में खिलौने बिखरे रहते थे। अब आंटी के पास किसी के लिये वक्त नहीं था। राधिका जब भी सुबह-शाम निकलती तो ‘जिया से मिलती।

 

ऐसे ही 6 महीने बीत गये। पढ़ाई पूरी होते ही उसे दूसरे शहर में नौकरी मिल गई। पर आंटी-अंकल से उसका संपर्क बना रहा। वो दो-तीन दिन में फोन करती और बस ‘जिया की बातें 

होती कि वो ये करती है, वो करती है। उसे डांस का बड़ा शौक है। बहुत अच्छा डांस करती है। ऐसे कब 15 साल बीत गये पता ही नहीं चला। राधिका की शादी हो गई और वो एक बच्चे की मां भी बन गई, पर कुछ नहीं बदला तो आंटी का फोन करना और जिया के बारे में बातें करना। राधिका को लगता कि वो भी जिया के साथ-साथ ही बड़ी हो रही है। जिया इस समय 12वीं की परीक्षा दे रही थी। उस दिन वो ऑफिस से आकर बैठी ही थी कि आंटी का फोन आया, बोली राधिका बेटा जिया को सारे जयपुर में बेस्ट डांसर का अवार्ड मिला है। अब दूसरा काम्पीटीशन प्रदेश स्तर पर है।

राधिका खुश हो गई, बोली आंटी मेरी बात जिया से करवा दो। जिया ने फोन लिया और चहकते हुए हैलो बोला, कैसी हो दीदी, गोलू कैसा है? गोलू अच्छा है। जिया तुम डांस प्रतियोगिता में जरूर जीतोगी। मुझे पूरा विश्वास है। जब तुम्हें सम्मान मिलेगा तो मैं जरूर आऊंगी, ये वादा है, अच्छा अब रखती हूं। एक दिन ऑफिस से आकर खाना बना रही थी कि गोलू ने टी.वी. ऑन कर दिया। उसी चैनल पर अचानक जिया का नाम सुनकर चौक गई। भागकर आई तो मानो आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। जिया को 26 जनवरी के अवसर पर पुरस्कृत किया जाना था, उसे ‘कथक में सर्वश्रेष्ठ डांसर का अवार्ड मिला था। हर चैनल पर ‘जिया की ही न्यूज थी। हर जगह वो दिखाई दे रही थी।

उसने अपनी विकलांगता को अपने आत्मविश्वास से हरा दिया था। लड़की ठीक से चल नहीं सकती थी। उसने प्रतियोगिता में भाग लेने वाली सामान्य लड़कियों को कैसे पराजित कर दिया। खुशी के आंसू आंखों में छलक आये। वो छोटी सी लड़की जब बचपन में डांस करती तो सब उसका मजाक उड़ाते पर आंटी ने हमेशा उसको बढ़ावा दिया। उस नन्ही सी बच्ची ने एक दिन टी.वी. पर फेमस कथक डांसर ‘डॉ. पद्मावती को डांस करते देखा, तभी से ठान लिया कि वो भी डांस करेगी। उसने उनको अपना रोल मॉडल मान लिया था। डांस करते हुए जब वो बार-बार गिरती तो उसकी टीचर और उसकी मां (आंटी) हमेशा उसका हौसला बनाये रखते थे। उसने फोन लगाया तो वहां आंटी ने हेलो कहा पर खुशी के मारे कुछ न बोल सकीं।

राधिका बोली, आंटी उस दिन मैं भी जरूर आऊंगी, आप जिया को बता देना…। बेटा, ये सब तुम्हारी वजह से… बीच में उनकी बात काटते हुए वह बोली आंटी कुछ नहीं यह सब आपके कारण संभव हुआ। आज उस ‘पालना घर का नाम विश्व में गूंज रहा है। उसका श्रेय आपको ही जाता है। वो दिन भी आ गया जब जिया को ‘पुरस्कृत किया जाना है। उसे जयपुर के लिये निकलना था कि अचानक गांव से इलाज के लिये चाचा-चाची आ गये। मैंने उन्हें जिया की फोटो दिखाई तो उसे देखते ही चाची चौंक गई। बोली बेटा यह तो हमारे गांव की ‘पद्मा की बेटी लगती है। राधिका बोली, अरे, नहीं चाची यह हो ही नहीं सकता। मैं अच्छी तरह जानती हूं। यह हमारे ‘पालना घर की बच्ची है। मैंने उन्हें ‘डॉ. पद्मावती की फोटो उनका पूरा परिवार नेट पर सर्च करके दिखाया तो वो चाची के गाँव की ही थी। अपने शुरूआती दिनों में वहीं रहती थी। मगर जब पैसा और नाम हो गया तो गांव छोड़कर शहर आ गई। उनकी दो बेटियां थी। उसका चेहरा जिया से काफी मिलता है। मैं आश्चर्य से चाची को देखने लगी।

चाची बोली बेटा, मैं सब समझ गई। राधिका तुमको याद होगा, जब तुम गांव में अपने प्रोजेक्ट के लिये आई थी तो बरसात में एक बच्चे के रोने की आवाज आई थी तब तुमने पूछा था कि वह कौन है? जानती हो बेटा, उस दिन इसी पद्मा ने एक अपाहिज लड़की को जन्म दिया था। पहले से ही उसकी दो बेटियां थी और वो अपनी बेटियों को अपनी तरह डांसर बनाना चाहती थी। पर शायद अपाहिज को देखकर उसने उसे जयपुर के अनाथालय में छोड़ दिया। गांव वालों के सवालों से बचने के लिये गांव छोड़ दिया। ये सब सुनकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसने चाची से पूछा, आपको दिन, तारीख कुछ याद है। वो बोली ये कोई भूलने वाला वाकया नहीं है। मुझे खुद पद्मा ने बताया था कि उसको कहां छोड़कर आई है। मैंने उसे काफी समझाया भी था पर वह तो अपनी बात पर अड़ी थी। पर भाग्य की विडम्बना देखो उसी लड़की ने उसका नाम रोशन किया। बाकी दो लड़कियों में एक डॉक्टर थी, दूसरी अध्यापिका।

चाची राधिका से बोली, बेटा तुम मुझे इनका नंबर दे सकती हो, मैंने तुरन्त नेट पर सर्च करके फोन लगाया। चाची का नाम सुनते ही उन्होंने बोला, मेरी बात कराओ। उसने फोन चाची को दिया और चाची करीब एक घंटा फोन पर बात करती रही। मैंने जितना बताया वो सारा उनके साथ शेयर किया फिर फोन रखने के बाद बोली बेटा, ये उसी की लड़की है। मैंने फौरन बीना दीदी को फोन लगाया और कहा, जिया का रिकार्ड चेक कराएं। उन्होंने कहा, राधिका रेकार्ड चेक करने की कोई जरूरत नहीं है, पद्मा मेरी अच्छी सहेली है, इसलिये मैंने भी उसकी मदद की थी। मुझे क्या पता था, आज यह नौबत आ जाएगी। मां बेटी आमने सामने होंगी। क्या, ये आप क्या कह रही हो? तुमने शायद आज का अखबार नहीं पढ़ा,

जिया ने उन्हें अपना रोल मॉडल माना था, वो उन्हीं के हाथों से ट्राफी लेना चाहती है। पदमा भी इस समारोह में होगी और उसे पता भी नहीं होगा कि वो अपनी ही बेटी को सम्मान दे रही है। ऐसा नहीं है बीना दीदी। उन्हें पता चल गया है कि वो उनकी बेटी है। फिर उसने चाची और पद्मा की सारी बातें बता दी। सुनकर बीना दीदी बोली, हे भगवान! परसों क्या होने वाला है। खैर सब भगवान पर छोड़ो, परसों मिलते हैं, फिर देखते हैं क्या होता है।

आखिर वो दिन आ ही गया जिसका सबको इंतजार था पर इन सबसे अनजान जिया अपनी दुनिया में मस्त थी। गांधी हॉल में चारों तरफ चहल-पहल थी। करीने से सजी कुॢसयां रखी थी। चीफ गेस्ट और परिवार के लोगों के बैठने की अलग से व्यवस्था थी। स्टेज फूल से सजा हुआ था। जिया के माता-पिता और भाई सबसे आगे कतार में बैठे थे, ठीक उनके पीछे राधिका, चाची, बीना दीदी बैठी थी। प्रोग्राम शुरू होने वाला था। सारे चीफ गेस्ट आ गये। डॉ. पद्मा भी आ गई और चाची की तरफ देखकर हौले से मुस्कुरा दी। प्रोग्राम अपने निश्चित समय से शुरू हो गया था। एक-एक विजेताओं के नाम घोषित होते गये। अंत में जिया की बारी आई जैसे ही वो लड़की स्टेज पर आई, तालियों की गडग़ड़ाहट गूंज गई।

जिया को जब अवार्ड मिला तो डॉ. पद्मा बोली आप सबसे मैं एक बात कहना चाहती हूं कि जिया के खून में नृत्य शामिल है। इसे प्रेरणा मुझसे मिली है। ये मेरी ही बेटी है। आज मुझे गर्व हो रहा है, इसे अपनी बेटी कहते हुए। मैं अपने किये पर माफी मांगती हूं। वे जिया से हाथ जोड़कर बोली, बेटा मुझे माफ कर दे। क्या अपनी मां को गले नहीं लगायेगी? जिया शून्य सी खड़ी रही। सारे कैमरे, रिपोर्टर उसकी तरफ दौड़ पड़े। जिया ने अपनी मां को आवाज दी, मां आप मेरी इस खुशी में मुझे गले भी नहीं लगाएंगी। और आंटी दौड़कर उसके गले लग गई। जिया पद्मा की तरफ घूमकर बोली, मैडम आप मेरी रोल मॉडल हैं, ये मेरी मां हैं और अपनी मां, पापा, दोनों भाई के साथ स्टेज से उतरकर इस शोर में कहीं खो गई। डॉ. पद्मा उसे दूर से देखती रही और वो अपने परिवार के साथ उनकी आंखों से ओझल हो गई।