grehlaksmi ki kahani

गृहलक्ष्मी की कहानियां: बरसात के मौसम में आज बहुत दिनों बाद तेज धूप खिली थी। सुकेश के घर के आंगन में पता नहीं कहां से आकर एक बहुत बड़ा काला सांप रेंग रहा था। उसकी आठ साल की बेटी रिया उस समय आंगन में खेल रही थी। वह सांप देखकर डर गई और बदहवास सी अंदर आकर बोली-“पापा सांप।”
उसके हाथ के इशारे को समझकर सुकेश तुरंत आंगन में चले आए थे। कुछ ही दूरी पर बाउंड्री के पास सांप उन्हें भी दिखाई दे गया।
” पापा वह देखो सांप। जल्दी से उसे मार दीजिए।”
” नहीं रिया हमें जीव-जंतुओं को नहीं मारना चाहिए।”
” पापा सांप बहुत खतरनाक होते हैं।” रिया बोली।
सुकेश ने जमीन पर डंडे बजाकर उसे जाने का पूरा अवसर दे दिया।
” पापा आपने उसे मारा क्यों नहीं? वह भाग गया।”
तब तक उसकी पत्नी मीरा कमरे से बाहर निकल आई थी।

“आपने उसे जाने क्यों दिया?”
“क्या बात करती हो मीरा? उसने हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया।”
” तुम क्या चाहते हो वह हमें डस ले?”
“सांप गलती से इधर आ गया होगा । हमारा घर ऊंचाई पर है ।वह अंदर नहीं आ सकता।”
” आज आंगन में दिखा है कल घर में भी घुस जाएगा।” मीरा बोली। उसकी बातें अनसुनी कर वह वहां से चुपचाप अंदर चला आया। वह उसे नहीं समझा सकता कि वह क्यों उस पर हाथ न उठा सका। आज तक जिसे पूजता रहा है उसके साथ वह यह अपराध कैसे कर सकता था? कमरे में आकर सुकेश मां को याद करने लगा। इस समय मां यहां होती तो सांप को मारने की बजाय धूप अगरबत्ती लेकर उसकी पूजा करने चल पड़ती। यह बात वह सबको नहीं समझा सकता था। पुराने दिनों को याद कर वह अतीत में उतरने लगा। यह भी पढ़ें |

रक्षक-भक्षक – गृहलक्ष्मी की कहानिया ?

नौकरी की जिंदगी में कितनी अहम भूमिका है यह वही इंसान जानता है, जिसने इसे पाने के लिए बहुत अधिक संघर्ष किया हो। सुकेश आज जिस पद पर काम कर रहे थे उसे पाने के लिए उसने क्या कुछ नहीं किया था। यह उसकी अंतरात्मा जानती थी। यह मां की दुआओं का असर था या पित्रों के आशीर्वाद का फल कहा नहीं जा सकता था। मां ने उसकी नौकरी के लिए सभी देवी—देवता और पत्थर तक पूज डाले थे। जिसने जो कहा वह करती चली गई। आखिर में नीमा ताई ने उन्हें सुझाव दिया-“कमला तुमने सारे देवी—देवता पूज लिए हैं। एक बार पहाड़ के प्रसिद्ध नागदेव के मंदिर में जाकर मत्था टेक लो। क्या पता उनके प्रताप से सुकेश के भाग खुल जाए।”
बाबूजी के चले जाने के बाद घर पर सबकी नजरें सुकेश पर लगी थी। प्रथम श्रेणी में एमएससी पास करने के बाद उसने अध्यापक बनने के लिए बीएड भी कर लिया था। कई प्रतियोगी परीक्षाएं देने के बाद भी उसे सफलता हाथ नहीं लगी थी। इंटरव्यू दे देकर वह थक गया था। बस अब एक ही उम्मीद थी कि कहीं पर मेरिट के आधार पर उसे नौकरी मिल जाए।
मां उसके लिए दस किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर बने छोटे से नागदेव के मंदिर में माथा टेकने के लिए तैयार हो गई थी। वह सुकेश को भी अपने साथ ले गई। उसके पास देवता को चढ़ाने के लिए आस्था और श्रद्धा के अलावा कुछ भी नहीं था। किसी तरह डंडा टेककर वे उस मंदिर तक पहुंचे ।
पत्थर से बनाए हुए उस छोटे से मंदिर का द्वार एक सिला से बंदकर रखा था। मान्यता थी कि नागराज इसी मंदिर में रहते हैं। मां ने बड़ी श्रद्धा से मंदिर के बाहर धूप जलाकर बेटे के लिए दुआ मांगी थी। उसने भी प्रभु से नौकरी की कामना की थी। सुबह के निकले वे शाम तक थके हारे घर पहुंचे थे। थकान के कारण उसे जल्दी ही नींद आ गई। सुबह के समय उसे ऐसा लगा जैसे किसी सांप ने उसके दाएं हाथ पर डस दिया हो। वह घबराकर उठा। वहां पर कोई सांप नहीं था। मां ने पूछा-“क्या हुआ बेटा?”
“कुछ नहीं मां। आज मंदिर दर्शन के कारण सपने भी उन्हीं के आ रहे हैं।” इतना कहकर उसने मां को सपने वाली बात बता दी। “यह बड़ा शुभ संकेत है बेटा। कहते हैं नागराज अगर किसी को सपने में दर्शन दे दें तो उसकी मनोकामना बड़ी जल्दी पूरी हो जाती है। मुझे लगता है उन्होंने हमारी सुन ली।”
इतना कहकर मां हाथ जोड़कर उनका सुमिरन करने लगी। रह रहकर उसके दिमाग में वही सब घूम रहा था। मां की हिदायत पर उसने इसकी चर्चा किसी से भी नहीं की। कहते हैं सपने की चर्चा औरों से करने पर उसका प्रभाव कम हो जाता है।
ठीक एक हफ्ते बाद उसके लिए शिक्षा विभाग से नियुक्ति के लिए पत्र आ गया। कमला के खुशी के मारे आंसू छलक आए। उनके आज धरती पर पैर नहीं पड़ रहे थे। सुकेश ने भी नियुक्ति पत्र को अपने माथे से लगा लिया। यह वह कागज था जिससे उनके जीवन की सारी परेशानियां खत्म होने वाली थी।
उस दिन से उसके मन में नागदेवता के प्रति बड़ी आस्था हो गई। वह कहीं पर भी नागदेव का मंदिर देखते ही हाथ जोड़ने जरूर चला जाता और अक्सर उन्हीं की पूजा करता। आज की घटना पर छिड़ने वाले विवाद की कल्पना कर वह अतीत से वर्तमान में आ गया। आंगन में रेंगते सांप को देखकर वह उसपर हाथ नहीं उठा सका था। रिया के बहुत कहने पर भी वह टाल गया था। वह उसे मारने के बारे में स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था।
उसने इसकी खबर तुरंत वन विभाग को दे दी। उन्होंने कुछ ही देर में सांप को पास की झाड़ी से पकड़ लिया और उसे ले जाकर जंगल में छोड़ दिया।

सुकेश ने एक बार फिर नागदेव का धन्यवाद किया जो उसका मान रखने के लिए आसानी से जंगलात कर्मियों के सामने प्रकट हो गए। इससे उसकी घर की शांति और सांप की जान दोनों बच गए थे

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