सबक सम्मान का-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Respect Story
Sabak Samman Ka

Respect Story: “भई आजकल लड़कियाँ बहुत तेज आ रही हैं , हमें तो बिल्कुल सीधी सादी लड़की ही चाहिये”,रुचि को एक्सरे मशीन की तरह देख समोसा कुतरते हुए इमरतीदेवी ने कहा।

“चिंता मत कीजिये हमारी बेटी बहुत ही सीधी सादी है,आपको शिकायत का कोई अवसर नहीं मिलेगा,”प्रतिउत्तर मे उसकी माँ ऊषाजी ने तपाक से कहा।

तो फिर बात पक्की समझो इमरती देवी ने अपने बेटे की राय जानने की भी आवश्यकता नहीं समझी।
यूँ भी उनका व्यक्तित्व इतना दबंग था कि वो कुछ कहता तो सुनी भी न जाती।
रुचि मेधावी थी और खेल में अपना कैरियर बनाना चाहती थी,वो प्राइवेट विद्यालय में पढ़ा भी रही थी।
लेकिन मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म उस पर तीन बेटियों में उसका सबसे बड़ा होना ,एक दुर्गुण था। बस इस अवगुण ने उसके इस्पात से इरादों पर जँग का काम किया। ऊषाजी ने रिश्ता पक्का करने के बाद रुचि की आँखों से उसका सबसे बड़ा सपना माँ की मजबूरी के तले दबा दिया।

इमरतीदेवी और उनके बेटे सुकेश के घर आने से पहले उसके सारे फ़ोटो ,ट्रॉफी और मैडल अलमारी में सर्टिफिकेट समेत बन्द कर दिए गए। ऊषा जी ने उसके सामने रोते हुए दोनों हाथ जोड़कर कहा,रुचि मैं जानती हूँ ये गलत है पर मैं मज़बूर हूँ।

“रेलवे की चतुर्थ श्रेणी की कर्मचारी जिसके सिर पर तीन बेटियों की जिम्मेदारी हो और सहारे नगण्य उसके पास कोई रास्ता नहीं बचता।” रुचि भी आँखों में आँसू भरे विवशता से अपनी माँ को देख रही थी और उनकी मजबूरी को भी समझ रही थी।

जिन मैडल और उपलब्धियों पर उनको नाज़ था ,उस अलग पहचान को उन्हें मात्र विवाह की ख़ातिर छुपाना ऐसा ही था,जैसे जहर पीना…
बेटा,मुझे तेरी दो बहनों को भी ब्याहना है हमारा समाज इस खेल में कैरियर खोजने वाली लड़कियों से न जाने क्यों घबराता है,कई रिश्ते टूटने के बाद मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा था।

रुचि ने अपनी माँ के हाथ खोलते हुए कहा,”मम्मी आप चिन्ता मत कीजिये मैं आपको शर्मिंदा नहीं होने दूँगी।
जानती हूँ मेरे सपने को वनवास आपकी इच्छा नहीं मजबूरी है,हमारा समाज ऐसा ही है दोहरी नीतियों वाला मैं किसी को भनक भी नहीं लगने दूँगी।
आपने मुझे इस मुकाम तक पहुंचने में ,सबका विरोध सहकर जो सहयोग किया है उसके आगे यह कुछ नहीं
शाबास मेरी बच्ची,आज पता नहीं क्यों मुझे तू एकलव्य की अनुभूति दे रही है ,जिसका अँगूठा मैँ स्वयँ छीन रही हूँ।
और रुचि कुछ समय बाद सुकेश की पत्नी बनकर इमरतीदेवी के आँगन में आ गयी,उसने अपनी तरफ़ से भरसक प्रयास किया कि कोई कमी न हो उसकी तरफ़ से…..
पर इमरतीदेवी किसी सिद्धस्त शिक्षक की तरह उसके दिनभर के कार्यों पर निर्ममतापूर्वक लाल निशान लगा ही देतीं।
उनका दबंग, रोबीला व्यक्तित्व तो करेला था ही ऊपर से वह पुरुषों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले अपशब्दों का भी प्रयोग करने में कोई गुरेज न करतीं थीं।
प्रथम मिलन की रात्रि में ही सुकेश ने रुचि पर अपनी माँ को खुश रखने का भारी भरकम दायित्व सौंप दिया।
सुकेश भी स्वयँ उन्ही की परछाईं था,हमारे समाज की दोहरी विडम्बना यह है कि बस कन्या का सँस्कारी होना आवश्यक है।
बाकी वर और उसके रिश्तेदारों को यह सँस्कारों की रीत से कोई लेना देना नहीं होता।
इमरतीदेवी और सुकेश गाली-गलौज के साथ अपनी मर्यादा भी भूलने लगे थे ,उनके तेज़तर्रार स्वभाव के कारण उन्हें कोई अपनी बेटी देना ही नहीं चाहता था।
और रुचि की मजबूरी उसकी माँ और बहनें थीं,उनके एक गलत कदम उठाने से उनकेविवाह में कठिनाई आ जाती।
सुकेश की रुचि के साथ की जाने वाली शारीरिक हिंसा उन्हें मर्दानगी और रुचि को अपने काबू में करने का सटीक तरीका लगती। बेचारी रुचि बहुत सारे अवसरों पर अपमान से तिलमिला जाती,उसका जी करता कि सब कुछ छोड़कर चली जाए।
पर उसे अपनी माँ का आँसुओं में भीगा मजबूर चेहरा याद आ जाता। इमरती देवी ने सुकेश को अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए सदैव ही किसी ड्राइवर की तरह प्रयोग किया।
छह माह की शादी में सुकेश रुचि पर दो बार हाथ उठाने की कोशिश कर चुका था अपनी माँ के कहने पर….
चाय बनने में ज़रा सी देर होने पर सुकेश के भीतर का पागल हाथी अपने महावत इमरती देवी के निर्देश पर तीसरी बार हमला करने के विचार में आया।
उसके मुँह से रुचि के परिवार के लिए मूसलाधार बारिश के समान अपशब्द निकल रहे थे।
इमरतीदेवी अपनी शिक्षा और माँ बहन की भद्दी गालियाँ सुनने के बाद रुचि चुप न रही.।
उसने कहा,” मैं आपकी माँ का सम्मान करूँ और आप मेरे सामने मेरी माँ बहन को भद्दी गालियाँ दे रहे हैं यह कौन सी सभ्यता है?”
इमरतीदेवी कड़ककर बोलीं मर्द के मुँह लगना रीत नहीं इस घर की वो इससे ज्यादा करेगा,तू क्या कर लेगी ?
एक थप्पड़ क्या हम तेरी हड्डी पसली भी तोड़ दें तब भी कोई भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता लड़की जनी है तो उन्हें सामने भी देँगे तो सुनना पड़ेगा।
रुचि को अपनी ओर आग्नेय नेत्रों से घूरते देख ,तेवर तो देखो इसके अम्मा !ये क्या कर लेगी हमारा …….सुकेश ने हँसते हुए कहा?
इस पर रुचि शांतिपूर्ण तरीके से अन्दर गयी और उसने दो ईंट आँगन में लाकर रख दीं बाद में उनके ऊपर एक ईंट और रखकर एक मामूली से प्रहार से तोड़ डाला।
फिर एक बड़ी सी पत्थर के टुकड़े का भी वही हाल हुआ उसे सर्द लहज़े में ऐसा दो तीन बार करते देख इमरतीदेवी की ज़ुबाँ तालू में चिपक गयी। और सुकेश के केश बिल्कुल सीधे खड़े हो गए सदमें से…..
“ब्लैकबेल्ट खिलाड़ी हूँ मार्शल आर्ट्स में और यह बस छोटा सा नमूना है मेरी कला का …..पौरुष किसी का सम्मान कुचलने में नहीं सम्मान देने में हैं,माँजी”
उसने दोंनो के हाथों में टूटी ईंटों के टुकड़े देकर सदमें से निकालते हुए कहा।
मैं अपने आत्मसम्मान और अपनी क्या किसी की भी माँ के प्रति अभद्रता कतई सहन नहीं करुंगी ,घिन आती है मुझे आपको एक स्त्री होकर दूसरी स्त्रियों को पुरुष से अपशब्द कहलवाते हुए….
इसकी माँ ने कहा था यह बड़ी सीधीसादी है….कहकर दिल थामें इमरती देवी जो धड़ाम से गिरीं सदमें से तो उसके बाद वह और सुकेश सदा ही पेन्सिल की तरह सीधे हो गए।