कथा-कहानी

उसने अब सिसकना भी छोड़ दिया था। इसी दरिन्दगी के चलते एक दिन माया का पति उसे अपने मायके से पचास हजार रुपये लाने के लिए पीटने लगा। उसके सास-ससुर कह रहे थे, ‘इस कलमुंही को तब तक पीटते रहो, जब तक ये रुपये लाने के लिये हां न कह दे।’ ठीक उसी समय माया की ननद वहां आ गयी और ये निर्मम दृश्य देखकर तल्ख स्वर में बोली, ‘ भैया, भाभी ने ऐसा क्या कर दिया जो तुम इसे पशुओं की तरह पीट रहे हो?’  

दीपक माया को पीटते हुए बोला, ‘ये आजकल जुबान चलाने लगी है, इसे अपने मायके से पचास हजार रुपए लाने के लिए कहा तो ये कहने लगी कि मेरे बाप के घर मे क्या रुपयों के पेड़ लगे हैं जो वो मुझे नोट तोड़-तोड़ कर दे देंगे।’ तभी दीपक माया को छोड़ अपनी बहन की ओर अचरज से देखते हुए बोला, ‘अरे तू इसे छोड़ और ये बता तू अचानक कैसे चली आयी?’ यह सुनकर माया ने एक पल के लिये सोचा और फिर बोली, ‘भाई, तेरे जीजाजी ने मुझे भी मार-पीटकर रुपये लाने के लिए घर से निकाल दिया।’

इतना सुनते ही दीपक दांत पीसते हुए बोला, ‘मेरी बहन पर हाथ उठाने वाले को मैं कच्चा चबा जाऊंगा। चल, तू मेरे साथ, अभी वापस चल।’ यह सुनते ही अंजू बोली, ‘भैया, जब बहन की बारी आई तो तुम्हें कितनी पीड़ा हुई, आपने ये कभी सोचा कि भाभी भी किसी की बहन-बेटी है, इसकी ये दशा देखकर क्या उनका खून नही खौलेगा।’

इतना सुनते ही दीपक के अंदर का राक्षस मानो मर गया और वह रोते हुए बोला, ‘बहन, आज तुमने मेरी आंखें खोल दी, मैं आज तक अपने घर की लक्ष्मी को ही पीट पीटकर अपमानित कर रहा था।’ अंजू ने आगे बढ़कर जब प्यार से अपनी भाभी को गले से लगाया तो माया सिसक-सिसककर रोने लगी। तभी वहां दीपक के जीजाजी ने प्रवेश करते हुए कहा, ‘घर की लक्ष्मी रोती हुई अच्छी नहीं लगती।’ अंजू को छोड़ सब उसके पति को विस्मय से देख रहे थे, जो दरवाजे पर खड़ा मुस्कुरा रहा था।

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