पत्नी कहती भी कि ज्यादा लाड़ में मत बिगाड़ो।लेकिन रमेश पत्नी से कहते,अपनी बेटी को लाड़ नहीं करूंगा तो किससे करूंगा।जबसे मेरे जीवन में आई है,मुझे जीने का सहारा मिल गया।बेटी पैदा होने के बाद रमेश ने फिल्म जाना,दोस्तों के साथ उठना-बैठना सब बन्द कर दिया था।अब बेटी के साथ खेलते। बेटी को घुमाने ले जाते। बेटी ही उनका जीवन बनकर रह गई थी।बेटी के साथ आज फिर छुपम छिपाई का खेल चल रहा था ।बेटी छिपती तो देख लेने के बाद भी रमेश इस कमरे से उस कमरे में जाते और कहते -‘’अरे मेरी बेटी कहां गई—–मेरी बेटी कहां गई—फिर कुछ देर बाद पकड़ लेते। फिर रमेश छिपते तो बेटी इधर-उधर ढूंढ़ने के बाद रोने लगी।रमेश फौरन दौड़कर आये और बेटी को गले से लगा लिया।बेटी ने रोते हुए धीरे से पिता के गाल पर चपत लगाई।प्यार से रमेश ने भी बेटी के गाल पर हल्की सी चपत लगा दी।फिर रोते हुए बेटी ने पिता के गाल पर जोर से चपत लगा दी ।फिर पिता रमेश ने हंसते हुए हल्के से बेटी को चपत लगा दी।फिर बेटी ने थप्पड़ मारा प्यार भरा।
इस बार पिता रमेश ने थोड़े जोर से प्यार भरी चपत लगा दी ।बेटी को गाल पर चोट सी लगी ।उसनें गुस्से में पिता को अपने नन्हें कोमल हाथ से थप्पड़ मारा। रमेश ने पिछली बार से ज्यादा जोर से मारा। बेटी को जोर से लगा। वह रोकर लिपट गई और पिता की पीठ ,गाल पर नन्हें हाथों से चोट करने लगी । रमेश को पता नहीं क्या हुआ,वह बच्ची को जोर से थप्पड़ मारने लगा।बेटी की समझ नहीं आया कि उसके प्यारे पापा उसे क्यों मार रहे हैं ।बेटी रोते हुए अपने मुलायम,कोमल हाथों से मारने लगी तो पिता रमेश को न जाने अचानक कैसा और किस बात पर गुस्सा आ गया कि वे जोर-जोर से अपनी जान से ज्यादा प्यारी बेटी को मारने लगे। थप्पड़ अब चपत या थपकी नहीं थे । थप्पड़ ही थे।बेटी जोर जोर से रोने लगी और रमेश को पता नहीं क्या पागलपन सवार हुआ कि वे अपनी जान से प्यारी बेटी को जोर जोर से पीटने लगे ।
रमेश के मस्तिष्क मेंअचानक बचपन का दृश्य घूमने लगा। जब वे पांच वर्ष के थे और उसके पिता रमेश की मां को शराब के नशें में पीटते हुए गंदी-गंदी गालियां देते हुए उसे बदचलन कह रहे थे रमेश की मां पिट रही थी और पिता उसे पीट रहे थे ।रमेश सहमा हुआ एक तरफ खड़ा हुआ था ।
पिता जयसिंह जोर-जोर से चीख रहे थे-‘’तुम औरते होती ही वेवफा हो ।मेरी गैरहाजिरी में अपने यार को बुलाकर गुलछर्रे उड़ाती हो । चरित्रहीन औरत तू मर क्यों नहीं जाती । इतना प्यार है तो अपने यार के साथ मुंह काला करके भाग जाती उसी के साथ-‘’ और ये सिलसिला जब तब चलता रहता ।
रमेश की मां ने जब एक बेटी को जन्म दिया तो जयसिंह ने चीखकर कहा-‘’बेटी कैसे हो गई। ये मेरी नहीं हो सकती। बेटी पैदा करके तूने मेरा सिर शर्म से झुका दिया।अब कहां से आयेगा इसकी शादी के लिए लाखों रूपये।पूरे जीवन इसके ससुरालवालों के सामने झुकना पड़ेगा।पालेंगे हम और आबाद करेगी दूसरे का घर और यदि जवानी में इसके कदम बहके तो पूरे खानदान के मुंह पर कालिख पोत कर रख देगी।‘’
रमेश की मां जया ने कहा-‘’बेटी लक्ष्मी होती है।दुधमुंही बच्ची के बारे में इतना क्यों सोचते हैं।अपना भाग्य लेकर आती हैं लड़कियां। अपने घर के साथ दूसरे का घर भी रोशन करती हैं। आप पढ़े-लिखे हो। सरकारी अफसर हो ।बेटी के लिए दहेज जुटाना कौन सी बड़ी बात है आपके लिए”
‘’तो क्या मैं इसपर खर्च करने के लिए कमा रहा हूं।‘’
‘’बेटियों से घृणा करने वाले यदि अपने लिए बेटियां नहीं चाहते तो अपने बेटों के लिए बहू कहां से लाओगे”
‘’मुझे उपदेश देने की जरूरत नहीं है।मुझे लड़की नहीं चाहिए।चाहे किसी को दे दो या बहा दो नदी में।‘’
‘’ मैं माँ हूँ । मेरा अंश है ये । मैं इस पर आंच नहीं आने दूँगी । मैं भी किसी की बेटी हूँ । आपसे प्यार किया । आपके साथ घर छोड़कर भागी । आपसे विवाह किया । आपका घर बसाया ।‘’
‘’ इसलिए तो कहता हूँ कल तेरे नक्शेकदम पर चलेगी तो क्या मुंह दिखाऊगा समाज को । तुम मेरे साथ भागी अपने माँ-बाप को छोड़कर । जब तुम बाप की नहीं हुई तो मेरी कैसे हो सकती हो और ये लड़की भी यही करेगी तो —-‘’
‘’ जया गुस्से में आ गई । उसने क्रोध से कहा – ‘’ मैंने तुम्हारे प्यार के लिए अपना घर-परिवार छोड़ा । उसका ये सिला दे रहे । तुम्हें किसी की लड़की भगाते शर्म नहीं आई । इज्जतदार होते प्रेम की कदर करते तो मुझे भगाकर न ले जाते । मेरे माता-पिता से मेरा हाथ मांगते ।‘’
जयसिंह क्रोध में आ गये । शराब का नशा भी था और घर के बड़े-बुजुर्ग के चेहरे भी घर में बेटी के पैदा होने से मुरझा गये थे । उन्होंने गुस्से में कहा – ‘’ ये कन्या मेरे घर नहीं आयेगी । इसका गला घोंट दो । चाहे कहीं फेंक दो । सारा घर मुझ पर लानत बरसा रहा है ।‘’ कहते हुए क्रोध में जयसिंह बाहर निकल गया । रमेश सब कुछ सुन रहा था । देख रहा था । माँ के आँसू अपनी छोटी ननहीं बहिन की किलकारी । उसका मन हुआ कि गोद में ले ले अपनी नवजात बहिन को लेकिन पिता और दादा-दादी के डर से खमोश रहा और दादा के चीखकर बुलाने पर बाहर आ गया ।
पता नहीं बाद में क्या हुआ कि माँ रोती चीखती रही । अपने पति जयसिंह को हत्यारा कहती रही । लेकिन उस नन्हीं बहिन का कुछ भी पता नहीं चला । बस माँ के शब्द याद थे । जो उन्होंने अपने पति से अपने सास ससुर से कहे थे । ‘’ रात में सोते समय तुम लोग मेरी बेटी को उठाकर ले गये और उसकी हत्या कर दी । नन्हीं बालिका की हत्या ईश्वर कभी माफ नहीं करेगा ।‘’ माँ जितना चीखती-चिल्लाती उसे उतना ही पीटा जाता । और मार-पिटाई के इसी क्रम में एक दिन माँ मर गई । या कहें कि उसकी हत्या कर दी गई । न पुलि आई न रिपोर्ट हुई । नाना-नानी, मामा लोग अंत्येष्टि में आए ओर चुपचाप चले गये । पिता जयसिंह पुलिस इन्सपेक्टर थे जो कह दिया उन्होंने वही कानून हो गया ।
पिता को शराब की लत पहले से थी । पत्नी के न रहने पर कभी बाजारू औरतों के साथ बाहर रात गुजारते । कभी घर में लाते । रमेश के दादा-दादी ने बहुत कोशिश की बेटे के दूसरे विवाह की । लेकिन समाज उन्हें पत्नी एवं कन्या हत्या का दोषी मानने के साथ-साथ शराबी और अय्याश भी मानता था ।
उनकी हरकतों के कारण किसी ने अपनी लड़की नहीं दी ओर वे इसी तरह जीते हुए बर्बाद भी हुए और किसी अदृश्य बीमारी से उनकी मौत हो गई । दादी-दादा ने जयसिंह की मौत का जिम्मेदार उन बाजारू ओरतों को माना ।
घर की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गई । दादा-दादी बूढ़े थे । वे क्या काम करते । रमेश को दस बर्ष की उम्र में पढ़ाई छोड़कर दूसरों की दुकान पर, घरों में छोटे-छोटे काम करके अपना और दादी-दादा का पेट पालना पड़ा । दादा-दादी के न रहने पर रमेश ने कड़ी मेहनत करके पाई-पाई बचाकर परचून की दुकान खोल ली । उसकी दुकान पर आने वाले ग्राहक जो उससे घुले-मिले थे । अपने घर की व्यथा -कथा कहते । जिसमें बहिन की शादी का रोना । बेटियों को वर न मिलना । दहेज की मांग करना बेटियों का घर से भागकर शादी रचाना और परिवार के मुंह पर कालिख पोतने जैसे विषय मुख्य रहते ।
एक ग्राहक ने तो यहां तक कह दिया कि इसलिए पहले के जमाने में लोग पैदा होते ही बेटियों का गला घोंट देते थे । रमेश को लगताकि उसके पिता सही थे।उसकी मां गलत थी।घर में बेटियों को होना ही अभिशाप है। बहिन-बेटियों से छेड़छाड़ के चलते लोगों ने बेटियों को पढ़ाना बन्द कर दिया ।कई भाइयों ने छेड़छाड़ करने वालों के साथ मारपीट की और जेल चले गये।कई ग्राहक तो ऐसे भी थे जो उससे हंसी मजाक करते थे।दूसरों की बुराई उससे करते थे । गोविन्द ने एक दिन मजाक में कहा-‘’कमल की शादी हुए कई साल बीत गये लेकिन वर्षो बाद हुई भी तो लड़की । नामर्द होगा। मर्द होता तो एक मर्द तो पैदा करता।अब मरने के बाद मुखाग्नि कौन देगा ? मोक्ष कैसे मिलेगा ? जायजाद का क्या होगा। कोई लड़का आयेगा और लड़की को फसाकर जीवन भर की कमाई ले उड़ेगा । समाज में मुंह काला होगा सो अलग ।‘’ समाज की सोच पहले भी वही थी आज भी वही है ।रमेश के दिमाग में इन सब बातों का थोड़ा बहुत असर तो होना ही था ।कुछ समय बाद एक भले परिवार ने अपनी लड़की की शादी रमेश से कद दी। जब पत्नी ने गर्भधारण किया तो वह यही मांगता रहा भगवान से कि हे ईश्वर बेटा ही देना ।लेकिन बेटी ही हुई । कुछ समय तो रमेश उदास रहा। फिर बेटी ने अपनी हंसी और भोलेपन की ऐसी माया फैलाई कि रमेश का पूरा जीवन बेटी के इर्द-गिर्द घूमने लगा । जिनके यहां बेटे थे बेटी नहीं थी उनके बारे में रमेश यही सोचता कि कितना नीरस जीवन होगा इनका बिना बेटी के । बेटी के होने से परिवार में सभ्यता का संचार होता है ।शर्म,लिहाज सब सीख जाता है व्यक्ति ।
रमेश पांच वर्षीय बेटी को पीट रहा था।बेटी जोर-जोर से रो रही थी ।पत्नी घर का सामान लेने बाजार गई थी । बेटी के करूण रूदन से से मां की कही बात याद आ गई।बेटी लक्ष्मी का रूप होती है । कन्या के हत्यारों को भगवान कभी माफ नहीं करता । उसे अपनी नन्ही बहिन की याद आ गई। किस बेदर्दी से पिता ने उसकी हत्या कर दी। मां कैसे बेटी की याद में तड़फती रही। उसे लगा जैसे वह अपनी नन्ही बहिन की मां की हत्या कर रहा हो ।और जैसे अचानक उसे होश आया।ये क्या कर रहा हूं मैं । बेटी के रोने से उसके अन्दर करूणा फूट पड़ी । उसने बेटी को गोद में उठाकर सीने से लगा लिया ।और भगवान से कहा-‘’मार दे मुझे भगवान ।ये क्या हो गया था मुझे” बेटी कुछ देर रोती रही । अपने नन्हें हाथों से पिता को गुस्से में पीटती रही। पिता बेटी से पिटने का आनन्द लेते रहे ।फिर पिता के सीने में सिर रखकर बेटी सो गई ।
रमेश ने तय किया कि मैं अपनी बेटी को खूब पढ़ाऊंगा। उसे आत्मनिर्भर बनाऊंगा। जीवन भर हर सुख-दुख में उसका साथ दूंगा। बड़ी से बड़ी गलती बेटी की माफ करूंगा जैसे लोग बेटो की करते हैं । भविष्य में अपना मनपसंद वर चुनती है तो उसकी पसन्द का सम्मान करूंगा। मेरा घर,मेरा परिवार,मेरा समाज मेरी दुनियां मेरी बेटी है । बिटिया को बिस्तर पर लिटाकर पिता रमेश ने उसका माथा चूमा ।कई महीने तक रमेश अपनी बेटी पर हाथ उठाने के लिए अन्दर से दुखी रहे और मन ही मन बेटी से क्षमा मांगते रहे। खुद को अपराधी मानते रहे ।
