स्वांग-21 श्रेष्ठ नारीमन की कहानियां मध्यप्रदेश: Family Story
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Family Story: प्रतिभाशाली धरा का बी.ए. का नतीजा आया नहीं था और बड़ी बुआजी दादी के पीछे हाथ धोकर ही पड़ गई। भाभी को सुनाते हुए बोली, “अम्मा! क्या है तुम भी बड़े आराम से बैठी हो। लड़की जवान हो रही है। भैया-भाभी को तो अभी वह बच्ची ही लगती है। जमाना बड़ा खराब है। रोज ही सुनते हैं, फिर कॉलेज में लड़कों का साथ।” भाभी बोली. “क्या करूँ दीदी. आपके भैया को आप ही मनाओ।”

धरा के पापा ने बड़े गर्व से जवाब दिया, “देखो दीदी, हमारी बेटी की रुचि पढ़ाई में है तो फर्ज बनता है, उसके सपने पूरा करने का। बेटा यदि घर का चिराग है तो बेटी तारा है, सब ओर प्रकाश फैलाने वाली।” पर अम्मा हाथ धोकर ही पीछे पड़ गई। कुछ दिन बाद अम्मा बीमार पड़ गई। बस फिर क्या था, उनकी अंतिम इच्छा तो पूरी करनी ही थी।

ताबड़तोड़ अफसरी करने वाला सुदर्शन दूल्हा भी मिल गया। लड़की की राय जानना किसी ने उचित नहीं समझा। शालीन सौम्य धरा एक अमीर खानदानी घर की बहु बन गई। धरा का स्थान आकाश के नीचे ही रहता है। वैसे ही सीधी सरल धरा भी सदा-सदा के लिए अर्धांगिनी नहीं, वरन अनुगामिनी बन कर रह गई।

इकलौती संतान आकाश के अपने ही कानून-कायदे चलते हैं। ससुराल में आकर धरा को बस एक कठपुतली बन कर रहना था। हालांकि घर में सास-ससुर नहीं हैं। किन्तु बड़े बूढों की कमी अकेले पति देव ही पूरी कर देते हैं। जो अखबार-पत्रिकाएं आकाश को पसन्द वही मंगाई जाती हैं। पति की पसन्द के आगे पत्नी की क्या बिसात। जो भारी भरकम साड़ियां पतिदेव लाकर देते वही पहनो। साहित्यिक कलात्मक आयोजनों का लत्फ बस सपनों की बातें रह गई।

अपनी लेखनी व डायरी एक अविस्मरणीय अतीत रह गया। हाँ, यदि धरा का कोई सहारा है तो हमउम्र ननद सानिका। वह बेचारी भी परिस्थिति की मारी। ब्याह के दो माह बाद ही अपने पति को खो बैठी। पीहर में भी उसका कोई अस्तित्व नहीं। अधूरी छूटी पढ़ाई करना चाहती है किंतु भाई साहब इजाजत दे तब ना। धरा खुद भी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती है। दोनों तय करती हैं कि साहबजी की गैर-मौजूदगी में अपनी पढ़ाई करती रहेंगी और ऑनलाइन फॉर्स भी भर देती हैं।

हाँ, साहबजी के घर आने से पूर्व घर को व्यवस्थित कर लेती हैं। चादर पर्दे सब करीने से हो। कहीं कुछ बिखरा भी ना हो। फिर भी आते ही ओले बरसने लगते हैं, “आज इन अखबारों की प्रदर्शनी लगी है क्या? ये चाय है कि उबला पानी है, दूसरी बनाओ।” दोनों ननद-भौजाई कनखनियों से इशारा करते सारे आदेशों का पालन करती रहती हैं।

इधर धरा के पैर भारी हैं। दोनों ही सहेलियां चटपटी चाटों की बड़ी शौकीन। बस अपने मुँह लगे नौकर से मंगा झटपट खा लेती। रात के खाने पर वही डाँट, “ये क्या इतना कम खाना खाया, ऐसे में अपना ध्यान रखो। सानिका, कल से भाभी को फल हरी सब्जियां वगैरह खिलाने का जिम्मा तुम्हारा। तुम्हारी चाट-वाट सब बंद।”

समय से गोल-मटोल बेटा पार्थ पाकर आकाश फूले नहीं समाए। बच्चे की दैन्मदिनी का चार्ट किचन में लटका दिया और माँ बेटे की सेहत के लिए सानिका को हिदायतें मिल गई।

सानिका के भी सजने-धजने के बड़े अरमान थे, भाभी ही थी जो सब शौक पूरे करती रहती। सानिका के मुंह से कई बार निकल पड़ता, “मेरी भाभी तुम काश पहले मिल जाती।” धरा मन-ही-मन सोचती अपने विधुर भाई अमन के बारे में, “कितना अच्छा होगा अगर सानिका उसकी भाभी बन जाए।” लेकिन पति से कुछ कह नहीं पाती डर के मारे। रात में कई बार वह पति के साथ प्रेमरोग जैसी मूवी लगा उन्हें दिखाती रहती। बातों-बातों में याद भी दिला देती, “हमारी सानिका भी माँ बन गई होती यदि…।” आकाश हाँ हूँ करके बात टाल देता। बीच-बीच में बड़ी बुआजी आ जाती है भड़काने के लिए। किन्तु बुआजी ट्रम्प कार्ड भी जरूर है साहबजी को मनाने का। वह बात छेड़ती है, “जी मेरा भाई है… अच्छी खासी नौकरी है। उसके लिए भी कोई वैसी ही लड़की बताओ ना बुआजी।” वो भी धीरे-धीरे बहू की बातों में आ सानिका के लिए सोचने लगती है। एक दिन अच्छा मूड देख आकाश के कान में बात डाल ही दी और आग भी लगा दी कि सानिका-सी जवान लड़कियाँ भाग भी जाती हैं। फिर क्या था, चट मंगनी और पट ब्याह।

ब्याह इतनी जल्दी कैसे? पार्थ की पाँचवीं की परीक्षा का क्या होगा? बच्चे की पढ़ाई में व्यवधान तो बिल्कुल नहीं। यूँ भी दोनों सखियाँ पार्थ की परवरिश में आदेशानुसार जुटी रहती हैं। तूफान कभी भी आ जाए। सारे समय यही अंदेशा रहता है कि पार्थ को समय पर दूध पौष्टिक खाना फल मेवा दिया गया या नहीं। टी वी उसने कितनी देर और क्या देखा, क्लास या खेलने समय से गया या नहीं और परीक्षा के बाद शुभ मुहूर्त में सारी तैयारियां अच्छे से कर सानिका धूमधाम से विदा हो गई।

पार्थ की पढ़ाई क्या शुरू हुई, धरा की शामत ही आ गई। एक और बड़ी समस्या। जैसे-जैसे वह किशोर और समझदार हो रहा है, अप्रत्याशित परिवर्तन भिन्न ही व्यक्तित्व दर्शाता है।

पापा से उसका छत्तीस का आंकड़ा रहने लगा। वह अपनी मम्मा पर जो गया है। धरा अपने अधूरे सपनों को बेटे के माध्यम से पूरे करना चाहती है। उसे बचपन से ही धार्मिक व वीरों की गाथाएँ सुनाती रहती है। उसकी रुचि की कलाएँ सीखने को भेजती है।

पापा चाहते आईएएस करे, बेटा वैज्ञानिक बनने के सपने सँजोता है। पापा कश्मीर जाते तो बेटा कन्याकुमारी। धरा बेचारी दो पाटन के बीच पिसने लगी, कैसे बनाए सामंजस्य। ननद सानिका को दु:खड़ा सुनाकर कुछ हल्का हो जाती है। पापा बेटे ने आज तक एक साथ कभी खाना नहीं खाया। आकाश पार्टीज करते रहते हैं, ताकि बेटे की पहचान करा सके, शहर के जाने-माने लोगों से। लेकिन ऐसे अवसरों पर वह कोई भी बहाने बना कन्नी काट लेता है और सारा गुस्सा धरा पर उतरता है। बेटे को अपने थियेटर से फुरसत नहीं। कभी संगीत कार्यक्रम तो कभी मुशायरे-गजल आदि की महफिलें।

पार्थ के लिए यूएस से एक संस्था से शोधार्थी हेतु पत्र आकाश को मिलता है। बस घर में महाभारत तो छिड़ना ही है। सारी बातों, बुराइयों का ठीकरा धरा के माथे। बामुश्किल समझाने के बाद आखिर पार्थ अपने सपनों की उड़ान भरने में कामयाब हो जाता है लेकिन धरा, खोटा नारियल होता ही है होली के लिए। बेटा कुछ भी बुरा काम करे, कटाक्ष धरा को सुनने पड़ते हैं।

पार्थ की पढ़ाई के दौरान अपनी सहपाठी पूर्व से अच्छी पटरी बैठती है। दोनों की दोस्ती प्यार में बदल जाती है। पार्थ माँ को बताता है कि पूर्वा संस्कारी व सुशील है। अब यह मसला धरा के लिए एक और चुनौती। वह भारत में रह रहे पूर्वा के माँ पापा से मिलकर योजना बनाती है। सानिका भाई के सामने पूर्वा के गुणगान कर उन्हें मना लेती है और सबकी मुलाकात अपने भाई से करा धरा का साथ देती है। वरना आकाश ने अपने मंत्री मित्र की आधुनिका बेटी को पसन्द कर रखा था।

विवाह सानन्द सम्पन्न होने के बाद थकान से भरी धरा सोचती है “वह कैसी डोलती कश्ती है, जो मानो दो किनारों को मिलाने के लिए ही बनी है। उसकी पूरी जिन्दगी ही नातों को सुलझाने व रिश्तों को जोड़ने की डोर बनने में बीत गई। वह तो बस एक सेतु मात्र है, नदियों को जोड़ने वाली।” तभी सानिका आती है चाय का मग लिए और पुकारती है, “किस सोच में डूबी हो मेरी फेविकाल भाभी?”

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’