Balman Story
Bharat Katha Mala

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

दिव्या नाम है उसका- दस वर्षीय सुकन्या बड़ी ही खूबसूरत और प्यारी। उसकी माँ बताया करती थी जब वह पैदा हुई थी तो उसकी पलकों पर नीली झिलमिलाती लकीरें थी। मुस्कुराते स्वप्न थे। बड़ी हुई तो मोतियों से दाँत हंसते रहते। खिलखिलाती रहती। अपनी सखियों में सब से प्रिय होती। लड़कों के साथ भी उसकी खूब पटती। कभी वे सारे खूब खेलते। कभी खूब लड़ते और कभी साथ-साथ पढ़ते रहते। वह क्लास में भी सभी की प्रिय होती। स्कूल में भी उसके अध्यापक उसकी खूब प्रशंसा करते। वह चित्र-कला में सबसे आगे रहती। वह अपनी सहेलियों के चेहरे हू-ब-हू उन जैसे ही चित्रित कर लेती। रंगों द्वारा टेढ़ी-मेढ़ी आकर्षक लकीरें खींचती रहती। इस तरह वह परी-सी लड़की शनैः शनैः बड़ी होने लगी।

एक दिन दिव्या के पापा को विदेश जाना पड़ गया। माँ भी अपने कामों में व्यस्त रहती और स्कूल के कामों में लगी रहती।

दादी-माँ दिव्या के आगे-पीछे घूमती-दिव्या खाना खा ले, दिव्या दूध पी ले, दिव्या पढ़ ले। दिव्या उन दिनों खूब टेलीविजन देखा करती और दादी-मां को संसार भर की विचित्र बातें बता कर हैरान कर देती।

“दादी-माँ देखो! यह कार्टून शो कितना सुन्दर है।’

“दादी-माँ टायटैनिक फिल्म आ रही है।’

“दादी-माँ उस हिरोइन ने कितनी सुन्दर ड्रैस पहनी है।’

दिव्या की आँखें संसार भर की अजीब और आकर्षक वस्तुओं से हैरान-सी फैली रहती। वह अपनी माँ से तरह-तरह की वस्तुओं को लेने का आग्रह करती-पीछा करती। उसे आज के फैशन की तंग कसी हुई जींस की पैंट अच्छी लगती। सज-संवर के रहना अच्छा लगता। खेलना-कूदना अच्छा लगता। साईकिल रेस अच्छी लगती।

इसी दौरान उसकी प्रिय माँ बीमार पड़ गई। वह तो अपने स्कूल के विद्यार्थियों की भी सुध न ले सकी। माँ दिव्या से पूछती-बेटी होमवर्क कर लिया? बेटी टैस्ट याद कर लिया? बेटा-इम्तिहान नज़दीक आ रहे हैं- मेहनत कर रहे हो न? दिव्या ‘हां’ में सिर हिला देती। माँ के बार-बार पूछने पर खीझ जाती। वह चिढ़चिढ़ी हो गई। मां के बीमार होने पर पढ़ाई में दिल न लगाती। वह पढ़ाई में पिछड़ गई।

पुस्तक सामने रख, टी.वी. शो देखने में मस्त रहती। माँ को इलाज के लिए दूर जाना पड़ गया। अब उसे ताकीद करने वाला, कोई नहीं था। दादी माँ उसे पढने के लिए कहते-कहते थक-हार गई।

एक दिन दिव्या को अपनी अध्यापिका से डाँट पड़ी- वह अपना होम-वर्क करके नहीं लाई थी। दिव्या ने जवाब दिया- ‘मैम-कॉपी घर रह गई है। कल दिखाऊंगी।’ दूसरे दिन भी वह कॉपी न दिखा सकी। वह घण्टों न जाने किन ख्यालों में गुम रहती। उसे कुछ भी न अच्छा लगता, खाना भी अच्छा न लगता, चॉकलेट भी उसी तरह पिघलती रहती। वह उदास रहने लगी। स्कूल से शिकायतों का ढेर लग गया। वह डर गई, यहां तक कि अपनी शिकायतें भी छुपाने लग पड़ी।

दादी माँ पूछती तो वह डर जाती। वह झूठ बोलने लग पड़ी। इस तरह सिर्फ एक दिन का होम-वर्क न करने पर उसे झूठ-पर झूठ बोलना पड़ गया। वह खूबसूरत ‘परी’ सी लड़की उदासी से घिर गई। माँ को फोन पर बताती, ‘माँ मैं ठीक हूँ। स्कूल का काम करती हूँ।’

माँ बेफिक्र थी- दिव्या तो बहुत मेहनती और आज्ञाकारी बच्ची है। बड़ी समझदार और अनुशासन वाली। परन्तु टी.वी. के बहुत से आकर्षक प्रोग्रामों ने उसे मोहित-सा कर लिया। बचपन के कार्टून शो से भी अधिक, अब उसे नई और खूबसूरत जिल्दों के बीच किताबों में छपे रंग-बिरंगे परिधान उसे खींचने लगे। नई से नई चीजें उसे लालच देतीं। वह सोचती पढ़ाई तो मैं बाद में भी कर लूंगी, आज मैं यह परिधानों वाली, फैशन वाली पुस्तक देख लूँ, होम-वर्क कल कर लूंगी। इस तरह कल, कल करते-करते स्कूल के होम-वर्क का अम्बार लग गया।

बालमन की कहानियां
Bharat Katha Mala Book

अब इम्तिहान नजदीक आ गए-वह घबराने लग पड़ी। उसकी तो कोई भी कॉपी पूरी न थी। उसने अपना होमवर्क अपनी सहेलियों से पूरा करवाना चाहा। सभी ने उसे मना कर दिया। उसकी अध्यापिका ने भी सभी को मना कर दिया, ‘कोई भी अपनी कॉपी किसी को न दे।’ वह हैरान और परेशान हो गई। वह अपनी सबसे प्रिय और नजदीकी सखियों से भी विनती करती, परन्तु सभी ने उसे ठुकरा दिया। वह अब दादी माँ से भी विनती करती। दादी माँ क्या कर सकती थी। वह बूढ़ी थी, घर से बाहर नहीं जा सकती थी। दिव्या दादी माँ के पास आकर रोती। उसके यूनिट-टैस्ट में भी नंबर कम आने लग पड़े थे। अब वह अगली उच्च कक्षा में कैसे जा पाएगी? ।

अब उसे होश तो आ चुका था, पर रोने से क्या होगा? पश्चाताप करने से तो उसका काम पूरा नहीं न होना!

उसे अपनी माँ की याद सताती। उसे अपने बहाने और झूठ पर भी शर्म आती, ‘काश! मैं झूठ न बोलती और अपने स्कूल का काम पूरा कर लेती।’ इस तरह अब उसकी रुचि टी.वी. में भी कम हो गई। वह जितना पढ़ने की कोशिश करती उतना हताश हो जाती। उसे लगता वह कुछ नहीं कर सकती है। पुस्तकें उठाते ही उसे रोना आ जाता। पापा और माँ की याद तड़पाने लगती।

इसी दौरान उसकी माँ इलाज से वापिस आ गई। वह अपनी माँ के गले लग बेतहाशा फूट-फूट रोने लग पड़ी,

“माँ मुझे माफ कर दो। मैं झूठ बोलती रही।”

“किस तरह का झूठ बेटा?’- माँ को कुछ समझ न आया।

“मैं होमवर्क पूरा नहीं करती थी। टीचर ने आपको बुलाया था। पर मैं डर गई थी. इस कारण आपको बताया ही नहीं।” दिव्या ने अपनी माँ से लिपटते रूंआसी होकर कहा।

माँ सब कुछ समझ गई- ‘दिव्या बेटा आप ठीक हो जाओगे। आप तो सब कुछ कर सकते हो। आपका ध्यान इधर-उधर हो गया था, परन्तु खेलने के साथ-साथ पढ़ाई भी कितनी ज़रूरी है। समझ आ गई न? अब भी संभल जाओ और मेहनत करो।’

दूसरे दिन माँ दिव्या के सभी अध्यापकों से मिली। सभी ने उसकी शिकायत की, ‘दिव्या, पहले सी दिव्या नहीं है। इस परिश्रमी दिव्या को क्या हो गया?’

उसकी माँ और उसकी अध्यापिकाओं ने इस अपरिपक्व उम्र की दिव्या को समझाने का यत्न किया। उन्हें लगा दिव्या को प्रेरणा की जरूरत है। दिव्या को प्यार की जरूरत है। एक दिन दिव्या की माँ ने उसे समझाया।

“दिव्या आप में इतनी शक्ति है कि आप सारा होमवर्क कर सकते हो। एक शर्त पर मैं आपकी मदद करूंगी। आप सारे प्रश्न याद करके लिख-लिख के देखोगे तब!’

दिव्या के पास अब कोई चारा न था। उसने स्वीकार लिया और कमर कस के मेहनत आरम्भ कर दी। माँ का कहा मानती, अध्यापकों की सारी बातें मानती। मां ने अध्यापकों की सहायता से सारे प्रश्न-उत्तर कापियों में पूरे किए। दिव्या उन्हें याद करती, फिर उन्हें लिख-लिख देखती। इस तरह दिव्या का आत्म-विश्वास उसे पुनः प्राप्त हो गया।

उसकी दिन-रात की मेहनत रंग लाई। वह बहुत अच्छे अंक तो न ले सकी, परन्तु अगली कक्षा में अपनी सहपाठियों के साथ प्रथम बैंच पर ज़रूर बैठ सकी।

वह सोचती काश! मैं समय से पढ़ाई कर लेती तो अच्छे अंक प्राप्त कर सकती थी। वह पश्चाताप करती, लेकिन फिर भी वह खुश थी। माँ खश थी। दादी-माँ खश थी। सब से बढ कर उसकी अध्यापक खश थी कि दिव्या ने अपनी राह ढूंढ ही ली है।

उसे ज्ञान हो गया कि पढ़ाई ही सबसे उत्तम और सबसे बढ़ कर है।

कुछ दिनों पश्चात् उसे नई क्लास में होमवर्क मिला। नई क्लास होने के कारण बाकी बच्चों ने अपना काम नहीं किया था, लेकिन दिव्या ने सारा काम किया हुआ था। उसे अध्यापक से शाबासी मिली।

दिव्या घर आते ही माँ से लिपट गई- ‘माँ मैं आज का काम कल पर नहीं छोडूंगी।’ वह बहुत उत्साहित थी।

“मैं भी आपका ख्याल रखूगी-” माँ ने दुलारा

“मैं घर, स्कूल, कहीं भी झूठ न बोलूंगी-‘ और यह कहते ही दिव्या को शरारत सूझी- वह चीख कर बैठ गई। माँ एकदम घबरा गई।

माँ की घबराहट देख दिव्या खिलखिलाकर हंस पड़ी, परन्तु अगले क्षण ही उसे कुछ स्मरण हो आया- ‘क्षमा करना माँ, मुझे इस तरह शरारत भी नहीं करनी चाहिए।’

इस प्रकार दिव्या पुनः तितली के पंखों के साथ-साथ उड़ती, टी.वी. के प्रोग्रामों के साथ-साथ, अपनी मनमोहक, मन-पसन्द परिधानों के साथ-साथ, अपने स्कूल से मिले होमवर्क को करना कभी नहीं भूलती। और वह परी-सी लड़की पुस्तकों को मन लगाकर पढ़ती, धीरे-धीरे और बड़ी होने लगी…।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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