" बस मन भरने को...."-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Bas Man Bharne Ko...

 बस मन भरने को….

सुनो जी आज पीहू का जन्मदिन है और देखो ना उसे कलुआ की जलेबी और समोसे
बहुत पसंद है शाम को आते वक्त जरूर ध्यान से लेते आइएगा, सुमन ने अपने
पति राकेश से फोन पर कहा। जब सुमन अपने पति से फोन पर बात कर रही थी तब
उसकी बूढ़ी और बीमार सास  विमला देवी भी ये सब बातें सुन रही थी। कलुआ की
जलेबी का नाम सुनते ही उनके मुंह में रस घुल गया, पर क्या करें पेट में
अकसर दर्द रहता है तो डॉक्टर ने सिर्फ खिचड़ी और दलिया या हल्का भोजन ही
बताया है, पर यह बुढ़ापा है ना, इसमें इंसान फिर से बच्चा बन जाता है कोई
नियम कोई कायदे नहीं सुनना चाहता ।

जैसे ही राकेश घर आता है विमला जी कहती है बेटा तू जलेबी लाया है ना मुझे
भी खिलाना बहुत दिन हो गए कुछ अच्छा खाए हुए। राकेश कहता है मां तुम्हें
भी ना कहां से महक आ जाती है और तुम्हारी सेहत की वजह से ही तो हम सब मना
करते हैं,देखो मां ये बच्चों का घर है, पचास चीज आयेंगी खाने की, पर
तुम्हें अपने हिसाब से, और परहेज से ही खाना खाना चाहिए। सुमन ने
तुम्हारे लिए दलिया बनाया है, वही खाना, वही तुम्हारी सेहत के लिए बेहतर
है।

विमला देवी धीरे—धीरे बड़बड़ाने लगती है कहती है, ऐसा भी क्या हो जाएगा
यदि जरा सा कुछ खा भी लिया, तो मेरे मरने के बाद में मेरे श्राद्ध पर भी
कुछ मत लाना,”जिंदो को ढले मरो को बड़े” (ये एक कहावत है कि जब इंसान
जिंदा है तब तो ढंग से रोटी भी नहीं और मरने पर पंडितों को दही के बड़े
और छत्तीस  पकवानों से जिमाया जाता है) जब मैं जिंदा हूं तो तू मेरी भूख
की तृप्ति नहीं कर सकता तो मरने के बाद तो सब बेकार का आडम्बर है।

उधर रसोई में सुमन की आया सुमन से कहती है मैम साहब अम्मा जी को हर चीज
थोड़ी सी जरूर दिया करो, मेरी सास भी पेट की मरीज हैं,पर मैं हर चीज
उन्हें चखने को जरूर देती हूं, क्योंकि इस उम्र में इंसान बस मन भरने को
खाता पेट भरने को नहीं। जवानी में इंसान सोचता है,पहले बच्चों की इच्छाएं
पूरी कर दे,अपना क्या है उम्र पड़ी है खा लेंगे, तब पता  ही नहीं चलता कब
ये हुआ बुढ़ापा आकर  सब चीजों पर बंदिशें लगा देते हैं।

अपनी आया की बात सुनकर सुमन को भी एहसास होता है कि किस तरह उसके बाबूजी
भी अंतिम समय तक चटपटे व्यंजनों को तरसते रहे, लेकिन पेट के अल्सर के
कारण सब चीजें बंद करा दी गई, लेकिन फिर भी उन्हें 6 महीने से ज्यादा बचा
नहीं पाए। आज लगता है कि काश कुछ इच्छाएं तो उनकी पूरी की होती, ऐसा
सोचते—सोचते कब सुमन के हाथों ने दलिया की प्लेट के साथ कुछ जलेबी और
समोसा मां के लिए सजा दिए, उसे खुद ही पता नहीं चला और विमला जी के साथ
साथ राकेश और नन्ही पीहू भी  मुस्कुराते हुए जलेबी और  समोसे का आनन्द
लेने लगे।

Leave a comment