अाज जब लोग लड़कों के लिए पागल हैं, पूरे देश के लोग लड़की बचाओ के नारे लगा रहे हैं। जब समाचार पत्र लड़कियों पर अत्याचारों की खबरों से भरे पड़े हैं, बेटी को पेट में ही मारा जा रहा है। लड़की के नाम से ही कई लोग रक्तचाप के शिकार हो जाते हैं। तो जनाब, यह ना तो किसी फिल्म का नाम है ना कोई नया सामाजिक अभियान, मेरी अपनी कहानी है। मेरा नाम है रामप्यारी। मेरे पिताजी का नाम था रामलाल और मां का नाम था प्यारी देवी। दोनों ही फिल्मों के शौकीन, अत: फिल्मों का असर मेरे नाम पर भी पड़ा, दोनों के आधे-आधे नाम को मिलाकर मेरा नाम रखा गया ‘रामप्यारी। शादी के5 साल बाद भी जब मेरे माता-पिता ने संतान का मुंह नहीं देखा तो उनकी आशा निराशा में बदलने लगी, अत: मेरे समझदार मां-बाप ने अपनी पूजा में संशोधन करके भगवान से अनुरोध किया कि हे प्रभु अगर लड़का देने में कोई परेशानी हो तो हमें लड़की ही दे दीजिए। भगवान ने ऑफ-सीजन के ग्राहक की तरह मेरे माता-पिता की बात फौरन सुन ली और मैं उनकी गोद में खेलने लगी।
भगवान का आशीर्वाद था या इकलौते होने के कारण, बचपन से ही मेरी कद-काठी पहलवानों की तरह मजबूत दिखने लगी, जहां भी कंचक होती, मैं ही लीडर थी। मेरा जेब खर्च तो कंचकों की दक्षिणा से ही चल जाता था। उस समय लोग लड़कियों को स्कूल भेजने से डरते थे, पर मेरे मां-बाप मुझे घर में रखने से डरते थे। 25 लड़कों के उस स्कूल में मैं ही एक लड़की थी, राखी के दिन 25 के 25 लड़के मुझसे राखी बंधवाते थे। इकलौती लड़की होने के कारण लड़कियों को दिए जाने वाले सारे इनाम, पढ़ाई हो, गीत-संगीत हो या खेल मुझे ही मिलते थे। मैं बड़ी हो गई। बड़े स्कूल में दाखिला ले लिया। लड़के ज्यादा थे, लड़कियां कम, पर मेरी कद-काठ का असर, कि लड़के तिरछी नजर तो क्या सीधी नजर से देखने से पहले भी 100 बार सोचते थे। लड़कियां कम होने के कारण सभी लड़कियों को वजीफा मिलता था, मेरी स्नातक की पढ़ाई बिना एक पैसा लगाए पूरी हुई। लड़कियों की संख्या कम होने के कारण स्नातक तक खेलों में प्रथम आती रही। भाग्य से मुझे खेल-कोटे से नौकरी मिल गई, जबकि मेरे साथ पढऩे वाले आज भी बेकार घूम रहे हैं। इधर नौकरी शुरू की, उधर रिश्ते आने शुरू हो गए। सबसे पहले जो लड़का मुझे देखने पूरे आत्मविश्वास के साथ आया , नजरें तिरछी करने लगा, जब मैंने उसे तिरछी नजरों से देखा तो उनकी नजरें ऐसी सीधी हुईं कि शादी करने के बाद आज तक उनके तिरछा होने की शिकायत किसी ने नहीं की। भाग्य मेरा साथ देता गया। सरकार ने घोषणा की कि अगर महिलाएं संपत्ति अपने नाम से खरीदेंगी तो रजिस्ट्री शुल्क कम लगेगा। नतीजा घर की रजिस्ट्री मेरे नाम, बिजली बोर्ड ने घोषणा की कि महिलाओं के नाम मीटर होने पर बिजली सस्ती मिलेगी, अत: बिजली का मीटर भी मेरे नाम, बैंक ने गाड़ी के लिए कर्ज दिया, गाड़ी मेरे नाम। सरकार ने महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाएं भी काफी दी हैं, मेरे दोनों बच्चों के होने पर मुझे 6-6 महीने की छुट्टी मिली। डाक्टर ने मुझे आराम करने को कहा था अत: बच्चों के पापा अपनी नौकरी के साथ-साथ मेरी भी सेवा करते और मैं आराम से पूरा दिन टीवी सीरियल देखती।
आज मुझे और मेरे पति की जोड़ी को सफल विवाहित जोड़ी कहा जाता है। माताएं मंदिर में दुआ करती है कि उनकी बेटी की जोड़ी भी हमारी तरह सफल हो। हमें जगह-जगह पर सफल वैवाहिक जीवन पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया जाता है। महिलाओं को पूर्ण सम्मान देने की अपनी नीति और ‘एक चुप सौ सुख की अपनी अघोषित नीति के कारण मेरे पति कुछ ना बोलकर लोगों का बहूमूल्य समय बचाते हैं। समझदार पुरुष लोग इससे ही काफी समझ जाते हैं और जो नहीं समझ पाते वे और महिलाएं मेरे व्याख्यान से समझ जाती हैं। अब तो आप भी समझ गए होंगे, मैं बार-बार क्यों कहती हूं कि अगले जन्म मोहे बेटी ही कीजो।
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