अनोखा मुक़दमा-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Hindi Kahaniya
Anokha Mukdama

Hindi Kahaniya: बरसों बाद डाकिये को द्वार पर देख हवेली की स्वामिनी सुजाता चतुर्वेदी ने कौतूहल से प्रश्न किया “किसकी चिट्ठी है” ?
वजह  बाज़िब पूछने की….. सारी डाक तो दुकान पर ही आया करतीं थीं, उनके परिवार की और मयूरी (उसकी बेटी )से तो रोज़ फ़ोन पर ही बात हो जाती थी…
मयूरी का नाम सोचते ही मीठी मुस्कान तैर गयी  उसके होंठों पर, शहर में नाम रोशन कर दिया था ,उनके इलाके से पहली महिला जज जो बनी  थी मयूरी …..

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उसके बाद से उसका घर आना भी न हुआ था,सुजाता को बड़ा अरमान था उसके घर आगमन पर स्वागत में  भव्य आयोजन करने का…
ये सोचकर बोलीं….लगता है मयूरी की चिट्ठी होगी, पूरे घर को इन्तज़ार था  उसकी घरवापसी का ,
लाइये जल्द उसने आतुरता से कहा….
“दस्तख़त कीजिये बहूजी …. और लीजिये ये सम्मन है कचहरी का ,इसलिये घर के पते पर आया है,….
डाकिये ने समझाते हुए कहा और  अपने रास्ते चला गया।
सम्मन कोई और दिन होता तो सुनकर घबरा जाता मन; अब जिला जज की  की माँ को सम्मन  के नाम से कैसी घबराहट ?
अन्दर आकर उसे जो मुस्कान होठों पर तैरी थी वो  उसे खोलने के बाद घबराहट में बदल गयी…..
सुजाता  उसे हाथ मे लिए हुए ही सदमे से एक तरफ लुढ़क गयी…
सेविका ने हडबड़ाये स्वर में  दुकान पर फ़ोन कर सबको घर आने को कहा….

सुजाता ,पति शम्भूदयाल  को सामने देख  सम्मन की ख़बर बता कर जोर जोर से रोने लगीं ,”मयूरी ने सम्पत्ति में अपना हिस्सा माँगा है जी…..मुकदमा करा है पूरे घर पे….आप सबके साथ अपने भाइयों को भी न बख़्श उस निर्लज़्ज़ ने
ये बात घर में सभी के लिये चौंकाने वाली थी,
“फ़ोन किया उसे” शम्भूदयाल जी ने पूछा?
“उठाया”,फिर  रूखे से आदेशात्मक लहज़े में कहा,कि दफ़्तर में हूँ, सीधे कचहरी में ही सुनवाई होगी इस केस की…
बताईये!क्या इस दिन के लिये हम औलाद को पाल पोसकर बड़ा करते हैं?अरे सब उसी के लिये तो जोड़ रहे जन्म से हद कर दी उसने…. शम्भूदयाल जी छोटे भाई प्रभुदयाल ने दुःख से कहा।
उनसे छोटे रामदयाल और मथुरा प्रसाद सिर झुकाये बैठे थे अपनी पत्नियों सहित
बढ़िया फल दिया लाड़ली बेटी ने ससुर जी को,उन्हें  जज  बनाने का मयूरी की  बड़ी भाभी  शोभना ने ठसक से कहा ।
“जाने क्या सोचकर बच्चों को बख्शा है वरना किसी को न छोड़ा “शम्भूदयाल जी सदमें की हालत में बोले”….
“पहले पढ़ाओ ,फिर दहेज़ को रखो और फिर हिस्सा भी दो ये सिला दिया है ,आपकी लाड़ो ने योग्यता का अब भुगतो सारे परिवार सहित”सुजाता रोष से बोली
“अच्छा होता कि इंटर पास करते ही ब्याह दिया होता उसे,हमारे खानदान की कोई स्त्री कभी ऐसी जगह नहीं गयी ,
घोर कलजुग है जेठ जी …घर की रोशनी ही घर जलाने पर लग गयी …अफ़सरी  दिखायेगी तो अपने ताऊ ,चाचा और माँ पिता पर  ?
कैसे  हम सबके कदम पड़ेंगे कचहरी के अंदर प्रभुदयाल की पत्नी शान्ति ने रोते रोते कहा…
“औलाद आख़िर जो दिन न दिखाये सो कम है” ,सिर उठाकर जीनेवाले शम्भूदयाल जी के अधरों से यंत्रवत निकला
मयूरी के साथ साथ अपने दुर्भाग्य और कोख़ को कोसते हुए उन सबने नियत तिथि  पर कचहरी जाने की तैयारी की….
महिलाएँ तो क्या पुरुषों के चेहरे भी भय से  पीले पड़ गये थे एक कागज ने सबके चेहरे पर मुर्दनी ला दी थी।
सुबह ग्यारह बजे तक  सब कचहरी में हाज़िर  थे,वादी थी स्वयँ मयूरी और प्रतिवादी   उसका सारा परिवार….
मयूरी ने चाय पानी भिजवाया जिसे उन लोगोँ ने लेने से भी मना कर दिया,महिलाएँ अपने साथ  पुलिसकर्मियों द्वारा होनेवाले दुर्व्यवहार की कल्पना करके सहमी जा रही थीं।
सुनवाई शुरू हुई ,तो मयूरी ने अपने हिस्से की ज़मीन ज़ायदाद ,नक़दी के साथ अपनी दिवंगत बुआ के मकान पर भी अपने मालिकाना हक की अपील डाली थी।
सभी सिर झुकाये शर्मिंदगी के साथ बैठे थे उनके नाम की पुकार हुई शम्भूदयाल वल्द भगवानदास हाज़िर हों…..
वो लड़खड़ाते हुये आगे की ओर बढ़े कि उन्हें मयूरी अपने सामने से आती दिखाई पड़ी, शालीन और गरिमापूर्ण उसकी चाल में अजीब सा आत्मविश्वास दिख रहा था….
सरकारी वकील ने औपचारिकता पूरी करने के बाद कहा,”हुज़ूर मेरी मुवक्किल मयूरी चतुर्वेदी वल्द शम्भूदयाल चतुर्वेदी ने जो अपील डाली है उसकी वजह बड़ी अलग और बाज़िब है”…
शायद यह अपनी तरह का पहला मुक़दमा होगा,मेरी मुवक्किल ने  बताया है  कि उनके पिता चार भाई व एक बहन हैं …
बहन रामप्यारी की मृत्यु हो चुकी है ,उनके परिवार में स्वअर्जित  कुल सम्पत्ति में पाँच मकान व दो पैतृक हवेली है।जिसमें पुश्तैनी जेवर व चालीस बीघा खेती की ज़मीन है।
मेरी मुवक्किल ने उसमें से अपने हिस्से की माँग की है।
शम्भूदयाल जी के वकील ने कहा हुजूर!मेरी  दरख्वास्त है कि वादी से एकबार इसकी वजह पूछी जाय,ये मुकदमा पारिवारिक विवाद का बिल्कुल नहीँ है…
ज़रूर इसे किसी ने फुसलाया है, अगर बातचीत से सुलझ सके तो हम समझौते की इच्छा रखते है।
बेटी बाप को कटघरे में खड़ा कर सकती है पर बाप नहीं …..
“जी हाँ…..अगर वादी ,प्रतिवादी
चाहे तो मीडिएशन ( मध्यस्थता) में आप ये विवाद सुलझा सकते हैं…जज नीति खन्ना जी ने पन्द्रह दिनों बाद अगली तारीख़  के आदेश पर दस्तखत करते हुए कहा।
नियत दिन सब  उपस्थित थे कचहरी में,मयूरी ने बड़ी नफ़रत से  अपने घरवालों देखते हुए  अपना पक्ष रखते हुए कहा….
“हुजूर  मेरा अपनी पैतृक सम्पत्ति मे अपना हिस्सा माँगने का उद्देश्य मरहूम रामप्यारी  को न्याय दिलवाना है।
“उसके साथ किसने अन्याय किया,अपने घर लाकर रखा  ताउम्र ख़्याल रखा” ,शम्भूदयाल जी थूक गटकते हुए बोले?
अच्छा उसने बीच मे ही व्यंग्य से कहा,”मुझे विश्वस्त लोगों से ही यह खबर मिली है कि हमारे  सम्पन्न परिवार की, बेटी …चार भाइयों के बीच अकेली बहन….
और उच्चाधिकारियों  भतीजों की बुआ  की आत्मा  अपनी तेरहवीं के लिये भी भटक रही है।
मयूरी के इस रहस्योद्घाटन से सबके चेहरे  इस खुलासे से उतर गये…..
सुजाता और शान्ति ने कहा ,”पर ये फ़र्ज़ तो जिज्जी के ससुराल वालों का है,हमारा नहीं मायके वालों ने उनकी ज़िम्मेदारी ही उठाई का है,उन पर न कर पाईं मुक़दमा…..
अब मयूरी के भीतर का लावा फूट पड़ा,”जी बिल्कुल होता! अगर वो वहाँ रह रही होतीं उम्र तो मायके की चाकरी में निकाल दी,उन्होंने…
आप लोगों ने उम्मीद दिलाई थी,ख्याल रखने की।
अच्छा फ़र्ज़ निभाया ;भाई अपनी पत्नियों से मजबूर हो गये और बुआ पराई नौकरी और दूसरों की दया पर पलीं….
अगर ध्यान देते तो उनके बच्चे उनकी आँखों के आगे न मरते ….चार भाई मिलकर एक बहन को न निभा पाये?
अब जबकि वो मर गयीं तो उनके हिस्से वाली हवेली पर चार ताले लटके हैं कब्जे के :क्योंकि वो सबकी बहन थीं…..सो उनकी सम्पत्ति पर हक़ सबका
सब सन्न रह गये ,अपने कर्मों का आलेख सुन मानों उन्हें भरी अदालत में नँगा कर दिया हो किसी ने ….
रामदयाल ने थूक सटकते हुए पूछा,” तुम्हें ये सब कैसे पता,किसने कान भरे तुम्हारे?
मयूरी दुःख से – अपने पड़ोसी गोवर्धन चाचा की लाचार बेटी मन्नो के भरण पोषण के मुकदमें का फैसला मैने ही सुनाया था,उसे न्याय तो दिला दिया मैंने….
पर शाम को बंगले पर मन्नो धन्यवाद देने आयी तो वो व्यंग्य से ये जरूर कह गये,कि अपने घर की बुआ का भी फैसला करना बिटिया तो मान लेंगे ,तुम्हारी बुआ बिना तेरहवीं के रह गयी आज भी….
तो तुम क्या चाहती हो इस मुकदमें के समझौते में, जिला जज मयूरी ?शम्भूदयाल जी ने सिर झुकाकर सवाल किया….
मुझे सम्पत्ति का लोभ नहीँ बाबूजी पर चाहती हूँ कि बुआजी का अँतिम और लम्बित क्रियाकर्म विधिवत हो ….
चार चार सम्पन्न भाईयों और भतीजों की बुआ की आत्मा की शान्ति के लिये ,क्या तेरह ब्राह्मणों का भोजन भारी है जो यह मायके औऱ ससुराल के सीमा विवाद में अटका रहा…
मैँने एन.जी.ओ . ‘उम्मीद की किरण’ की स्थापना की है ताकि कोई स्त्री बिना कफ़न और विधि के बिना न रहे ,लावारिस शव का तो सरकार भी दाह सँस्कार करवाती है फिर बुआ के तो इतने वारिस है…
मयूरी की इस इच्छा पर मीडिएशन के लिये बैठे अधिकारी ताली बजाये बिना न रह सके…
चतुर्वेदी परिवार भी गर्वित स्वर में अपनी भूल सुधारने को तैयार हो गया।
जज नीति खन्ना ने गदगद स्वर में कहा,” वास्तव में
ये हमारे समाज के लिये कितनी लज्जा का विषय है कि दो कुलों का हित करने वाली दुहिता की अँतिम क्रिया भी दो कुलों की चक्की में पिसती है”।
हमें रक्षाबन्ध,भाईदूज और कन्यादान के अवसर पर बहन बेटी की अनिवार्यता महसूस होती है,पर उनका अधिकार देने में हम न्याय की बजाय स्वार्थ का पलड़ा भारी कर देते है।
स्त्री के साथ वाक़ई दोयम व्यवहार अपनाते है ,जन्म से लेकर श्राद्ध भी बिना उसके सम्भव नहीं और उसका शव भी कफ़न के लिये प्रतीक्षारत होता है…
वेलडन मयूरी जी हम सब भी आपकी इस मुहिम में तनमन ,धन से आपके साथ हैं,शिक्षित होने के बाद भी हमारे समाज मे इस विषय पर काम और सुधार कम ही हुआ है..

शम्भूदयाल जी ने मयूरी को सीने से लगाकर कहा ,समाज के साथ मेरी आँखें खोलने का आभार लाड़ो…
और चेकबुक पर दस्तखत करते हुए कहा ये तेरे एन.जी.ओ.की सहयोग राशि….
उधर रामदयाल ने पँडितजी से रामप्यारी जीजी के अटके हुए संस्कारों को पूरा करने का समय ले लिया…
“अनोखा मुकदमा अब चर्चा का विषय था”