Menopause and Physiotherapy: मेनोपॉज यानी रजोनिवृत्ति वह समय है जब मासिक धर्म चक्र खत्म हो जाता है। मेनोपॉज का निदान तब किया जाता है जब महिला को 12 महीने तक मासिक धर्म यानी पीरियड्स नहीं होते। मेनोपॉज महिलाओं को 40 की उम्र के बाद कभी भी हो सकता है। क्या आप जानते हैं, मेनोपॉज होने के बाद महिलाओं को कई समस्याएं हो जाती हैं तो चलिए जानते हैं, मेनोपॉज होने पर महिलाओं को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है और उन समस्याओं को फिजियोथेरेपी के जरिए कैसे दूर किया जा सकता है।
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मेनोपॉज होने पर होती हैं ये समस्याएं

- कार्डियोवैस्कुलर डिजीज का खतरा – मेनोपॉज होने पर एस्ट्रोजन हार्मोन का लेवल कम हो जाता है, जिसकी वजह से महिलाओं को कार्डियोवैस्कुलर डिजीज का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल, एस्ट्रोजन हार्मोन ब्लड वेसल्स को लचीला और ब्लड प्रेशर को संतुलित रखता है। ऐसे में हार्मोन का स्तर कम होने से महिलाओं को हार्ट संबंधी डिजीज होने का खतरा बढ़ जाता है।
- कमजोर हो जाती हैं हड्डियां – महिलाओं को बहुत अधिक हड्डियों में दर्द और कमजोरी आने का खतरा रहता है। ऐसे में ऑस्टियोपोरोसिस रोग या रूमेटाइड अर्थराइटिस होने का भी डर रहता है।
- होने लगता है ब्लैडर कमजोर – प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन हार्मोन का लेवल कम होने से ब्लैडर वीक हो जाता है और वजाइनल ड्राइनेस बढ़ जाती है। साथ ही पेनफुल सेक्स के साथ-साथ यूरिनरी ट्रैक्ट इनफेक्शन होने का खतरा बढ़ने लगता है।
- वजन बढ़ सकता है – मेनोपॉज होने से महिलाओं का वजन भी तेजी से बढ़ने लगता है। यहां तक कि कुछ महिलाओं को नींद ना आने की समस्या भी हो जाती है।
- डायबिटीज का खतरा – कुछ महिलाओं को मेनोपॉज होने के बाद 55 की उम्र के बाद टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा रहता है।
क्या कहना है डॉक्टर का

खराड़ी, पुणे स्थित, फिटवेल फिजियोथेरेपी क्लीनिक की फाउंडर और वन हेल्थ मल्टीस्पेशलिटी क्लीनिक की सीनियर फिजियोथेरेपी और पेल्विक फ्लोर रिहैब स्पेशलिस्ट डॉ. ऋचा पुरोहित का कहना है कि फिजियोथेरेपी के जरिए मेनोपॉज की समस्याओं को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।
डॉक्टर ऋचा के मुताबिक, मेनोपॉज महिलाओं की हेल्थ पर बहुत नेगेटिव इफेक्ट डालता है। ऐसे में मेनोपॉज के बाद किसी भी तरह के लक्षण या दर्द, की सही समय पर पहचान होना जरूरी है, जिससे समय पर इलाज किया जा सके।
डॉक्टर ऋचा का कहना है कि मेनोपॉज के दौरान पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों में शिथिलता और कमजोरी आ जाती है। ऐसे में फिजियोथेरेपी के जरिए पेल्विक फ्लोर की मसल्स को स्ट्रांग करने में मदद मिल सकती है। यहां तक की मेनोपॉज के बाद आने वाली हड्डियों की कमजोरी को भी काफी हद तक फिजियोथेरेपी के जरिए नियंत्रित किया जा सकता है। कुछ खास तरह की तकनीक और एक्सरसाइज के जरिए मेनोपॉज के बाद होने वाले कार्डियोवैस्कुलर डिजीज के खतरे को काम किया जा सकता है। यहां तक की फिजियोथैरेपी में कुछ ऐसी रिलैक्सेशन एक्सरसाइज भी होती है जो मेनोपॉज के बाद होने वाले तनाव और डिप्रेशन से भी निजात दिलवा सकती हैं।
डॉक्टर ऋचा की मानें तो फिजियोथैरेपी में कुछ मशीनों, तकनीक और एक्सरसाइज के जरिए ना सिर्फ महिलाओं में एब्डोमिनल फैट को कंट्रोल किया जा सकता है बल्कि वजन को कंट्रोल करने के साथ ही डायबिटीज और ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल किया जा सकता है। साथ ही जोड़ों में होने वाले दर्द को भी आसानी से नियंत्रित कर सकते हैं।
डॉक्टर ऋचा का कहना है कि मेनोपॉज में एक सबसे अहम प्रॉब्लम जो दिखाई देती है वह है हॉट फ्लैशेस, इस समस्या में शरीर में गर्माहट और बेचैनी होने लगती है। फिजियोथैरेपी में इसका सबसे अच्छा उपचार मौजूद है।
