Balman Story
Bharat Katha Mala

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

आज मुनमुन दस वर्ष की हो जाएगी। अपनी पसंदीदा फ्रॉक निकालकर भागती-भागती अपनी माँ के पास गयी और बोली- “इसे अच्छे से धो दो।” माँ देखो, वहां थोडा दाग लगा है। माँ ने ध्यान से देखा और कहा, “अरे नहीं बेटा, मुनमुन ये दाग नहीं ये तो फ्रॉक का डिज़ाइन है। देखो ध्यान से।” “हाँ माँ लगता तो है डिज़ाइन जैसा, चलो इसे छोड़ो बताओ मुझे क्या गिफ्ट दोगे” “अभी नहीं बताऊंगी, शाम को पता चलेगा।” “मां प्लीज बता दो ना, शाम तक नहीं इंतज़ार कर सकती, अभी बता दो। प्लीज बता दो।” तुमने कहावत नहीं सुनी, कि इंतज़ार का फल मीठा होता है। मुझे इंतज़ार का फल नहीं खाना, मुझे तो बस उपहार ही चाहिए। ये कह कर मुनमुन उदास-सा मुँह बनाकर एक कोने में बैठ गयी। “ओहो मेरी रानी बेटी नाराज़ हो गयी मुझ से। अच्छा ठीक है, तुम्हारा उपहार मैं अभी तुम्हें दे देती हूँ। कुछ देर बाद माँ ने एक लिफाफा अलमारी से निकाला और कहा “चलो, पहले अपनी आँखें बंद करो, और जब तक मैं न बोलूं, आँखें नहीं खोलना। अच्छा ठीक है” अब मुनमुन के चेहरे पर मुस्कान वापस लौट आयी थी “चलो अब आँखें खोलो, माँ ने मुनमुन के हाथों में लिफाफे को थमाते हुए कहा ये क्या है? मुनमुन तेज़ी से लिफाफे को खोलती हुई बोली” “वाह! गुडिया! कितनी सुन्दर है माँ, पर ये तो वो गुड़िया नहीं जो मैंने आपसे मांगी थी। आपने तो वादा किया था की मुझे वही गुड़िया दिलाओगे- सुनहरी बालों और नीली आँखों वाली, जिसके साथ बहुत सारा और भी सामान मिलता है।”

“हाँ बेटा याद है कि मैंने वादा किया था। सॉरी, अगली बार पक्का वही दिलाऊँगी।” नही, आप हमेशा यही कहते हो, कह कर सुबकते हुए मुनमुन कमरे से बाहर चली गयी। मुनमुन, रुक जाओ बेटा “माँ ने दौड़ कर उसे बाँहों में भर लिया, देखो, माँ से ऐसे नाराज़ नहीं होते, चलो जल्दी से बताओ, नाश्ते में क्या खाओगी?” अगली बार मुझे वही गुड़िया दिलाओगे? पहले पक्का प्रॉमिस करो। “हाँ बेटा, पक्का प्रॉमिस। मुझे पूरी चने खाने हैं।

“जी हुजूर, आपकी खिदमत में अभी पूरी चने हाज़िर होंगे।” माँ ने झुक कर कहा। मुनमुन हंस पड़ी और माँ से लिपट गयी।

मुनमुन और उसकी माँ सूरजपुर गाँव में रहते थे। मुनमुन के पिता पांच साल से विदेश में थे। बस फोन पर ही बात हो पाती थी उनसे। कितनी बार पिताजी ने कहा था कि वो दिवाली पर ज़रूर आएंगे पर आ नहीं पाते थे। “कितने व्यस्त रहते हैं पिता जी, मेरे और माँ के लिए उनके पास समय ही नहीं।” मुनमुन के मन में अक्सर ऐसे ख्याल आया करते थे। उसकी नानी पास वाले गाँव में ही रहती थी। मामा-मामी के दो बच्चे मनमन की उम्र के ही थे। छुट्टियों में मुनमुन वहां ज़रुर जाती और जी भर खेलती। आज मुनमुन का जन्मदिन था। आज शाम को उसकी सभी सहेलियां और ममेरे भाई-बहिन इकट्ठे होने वाले थे।

“मुनमुन क्या तुम्हारी माँ ने तुम्हें उपहार दे दिया? मेरी मम्मी तो सुबह सुबह ही उपहार दे देती हैं।” साथ वाले घर में रहने वाली सबु ने पुछा।” हाँ, मेरी मम्मी ने उपहार दे दिया। बहुत ही सुंदर गुडिया दी है उन्होंने। मुनमुन अपनी गुड़िया ले कर बाहर आयी तो सबु भी अपनी गुड़िया ले कर उस के सामने खड़ी हो गयी। सबु की गुड़िया मुनमुन की गुड़िया से बड़ी थी। सुनहरे बालों और नीली-नीली आँखों वाली ये तो वही गुड़िया थी जो मुनमुन ने अपनी माँ से मांगी थी। उसे देखते ही मुनमुन का मुंह उतर गया। “ये देखो मेरी गुड़िया तुम्हारी गुड़िया से कहीं बड़ी और सुन्दर है। कल ही मेरे पिता जी मेरे लिए विदेश से लेकर आए हैं।”

मुनमुन उदास-सा चेहरा लेकर अंदर चली गयी। उसे अपनी गुड़िया बहुत बेकार लगने लगी। उसी समय उसने गुड़िया फेंक दी और रसोई घर की तरफ चलने लगी। “माँ मुझे जल्दी से पूरी चने दो, बहुत भूख लगी है।” कुछ पूरी चने खाकर कुछ उसने एक पोटली में बाँध लिए। “माँ मैं आँगन में खेलने जाऊं।” हाँ, पर जल्दी आ जाना, धूप तेज होने वाली है।” माँ ने रसोई घर से आवाज़ लगाई। “अच्छा माँ” मुनमुन ने कह तो दिया लेकिन वो आँगन की ओर जाने की बजाय पिछले दरवाज़े से सड़क की ओर चल पड़ी।

बालमन की कहानियां
Bharat Katha Mala Book

“कोई मुझसे प्यार नहीं करता। माँ ने भी मुझे मेरे जन्मदिन पर मेरा पसन्दीदा उपहार नहीं दिया। और पिता जी से तो मैं पांच साल से मिली भी नहीं” मुनमुन की आंखों से आंसू बहने लगे। अचानक एक नुकीले पत्थर से उसका पैर टकराया। आह कितना नुकीला पत्थर है। माँ बहुत दर्द हो रहा है। जैसे ही अपने घाव को देखने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठी तो पास में एक ज़ख़्मी पक्षी को देख कर हैरान हो गयी। उसे देखते ही मुनमुन अपना सारा दर्द भूल गयी और उसे उठाने के लिए दौड़ पड़ी। कितना सुन्दर और कितना आकर्षक था वह! उसके पंख रुई जैसे मुलायम और आँखें काले मोती जैसी चमकदार थी। उसे हाथ में उठाते ही मुनमुन अपना सारा गुस्सा और परेशानी भूल गयी। “कितने प्यारे हो तुम! पर तुम ज़ख़्मी कैसे हुए? चलो तुम जैसे भी ज़ख्मी हुए। अब मैं तुम्हें अपने से कभी अलग नहीं होने दूंगी और मैं तुम्हे एक प्यारा-सा नाम भी दूंगी। हाँ- तुम्हारा नाम होगा मेरु। कितना प्यारा नाम है, अच्छा है न? मेरु को सहलाते हुए मुनमुन ने पूछा “चलो अब तुम मेरे घर चलो, फिर मैं तुम्हे गाँव के वैद्य जी से दवाई दिलवा दूंगी और तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे। मुनमुन मेरु को लेकर अपने घर की तरफ चल ही रही थी कि अचानक उसे खु याल आया।” कहीं माँ मेरु को घर में रखने से मना तो नहीं कर देंगी? नहीं, नहीं मैं मेरु को चुपके से घर में ले जाऊँगी और माँ को पता भी नहीं चलेगा की मेरे पास मेरु है” उसने प्यार से मेरु की तरफ देखा तो मेरु ने भी अपनी गर्दन हिलाकर मुनमुन की हाँ में हाँ मिला दी।

घर पर मुनमुन की माँ रसोई में खाना बना रही थी। मुनमुन चुपके से अपने कमरे की ओर चल दी और मेरु को अपनी अलमारी के नीचे छुपाने लगी थी की उसकी माँ पीछे से आयी और बोली “मुनमुन क्या यहाँ आस-पास कोई पक्षी है? मुझे किसी पक्षी की आवाज़ आ रही है” “तभी अचानक माँ की नजर मेरु पर पड़ी” अरे कितना प्यारा पक्षी, ये तुम्हे कहाँ से मिला और इसके पंख में तो घाव भी है! “हाँ माँ, देखो बेचारा ठीक से सांस भी नहीं ले पा रह।” “चलो इसे डॉक्टर के पास ले चलें नहीं तो ये कहीं मर न जाए” अरे नहीं मुनमुन बेटा कुछ नहीं होगा इसे, ये बिल्कुल ठीक हो जायेगा।

डॉक्टर की दवाई से मेरु बेहतर हो गया। अब उसके घाव से खून रिसना बंद हो गया था और वो सांस भी ठीक से ले रहा था। “माँ, जब मेरु पूरी तरह ठीक हो जायेगा तब भी हम इसे अपने पास रख सकते हैं?” नहीं बेटा, ये एक जंगली पक्षी है, इसे जंगल में रहने की आदत है, इसे जंगल में छोड़ना ही ठीक रहेगा। “माँ प्लीज़ कुछ दिन इसे मेरे पास रहने दो!” मुनमुन रुआंसी-सी हो गयी। अच्छा ठीक है, पर वादा करो तुम इसे तंग नहीं करोगी और इसका पूरा ध्यान रखोगी। “हाँ मां, मैं इसका पूरा ध्यान रखूगी, मैं वादा करती हूँ!” मुनमुन के चेहरे पर मुस्कान लौट आयी थी।

वह जन्मदिन मुनमुन के लिए सबसे यादगार जन्मदिन था। आज उसके साथ उसकी मां, उसके रिश्तेदार उसकी सहेलियों के अलावा मेरु भी था और जब भी मुनमुन आने वाले दिनों के बारे में सोचती तो और भी खुश हो जाती। अब मेरु कुछ दिन उसके साथ ही रहने वाला था।

मेरु को ठीक हुए एक हफ्ता हो चला था। मुनमुन की माँ ने उसे याद करवाया “मुनमुन बेटा, मेरु को उड़ाने का समय आ गया, अब उसे आज़ाद कर दो।” “माँ, प्लीज़, मेरु को हम अपने पास ही रख लेते हैं ना।” “नहीं बेटा, ऐसा करना पाप है” बहुत बार समझाने से मुनमुन समझ गयी और मेरु को उसने खुले आसमान की उड़ान भरने को छोड़ दिया। उदास आँखों से वो मेरु को अपने से दूर उड़ते देख रही थी। “जाओ मेरू, जहाँ भी रहो, ठीक रहो, कभी कोई तकलीफ़ न हो तुम्हे!”

शाम को अपनी गुड़िया के बाल संवार रही थी कि एक चिर परिचित आवाज़ ने उसका ध्यान आकर्षित किया। मेरु खुली खिड़की से उड़ते हुए अंदर आया और चुपचाप मुनमुन के कन्धे पर आकर बैठ गया। “मेरु, तुम वापस आ गए। मेरे अच्छे मेरु, मेरे प्यारे मेरु!” मुनमुन मेरु को अपने हाथों से सहलाती-सहलाती अपनी माँ की तरफ दौड़ पड़ी। अब उसकी माँ भी मुनमुन को मेरु को अपने पास रखने से मना नहीं कर पायी। मुनमुन अपने मन की सब बातें मेरु को कहती और मेरु अपनी चोंच से मुनमुन के पेट पर गुदगुदी करता। अब मेरु मुनमुन का सबसे प्यारा दोस्त बन गया था।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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