काश, मैं भी इन लोगों की तरह ज्यादा पढ़ लिख लेती तो मैं भी कुछ होती। मेरी भी कोई अपनी पहचान होती। ऐसा मज़ाक न बनता मेरा। पर आगे पढ़ती भी तो कैसे। दसवीं के बाद से ही पिताजी को मेरी शादी की चिंता होने लगी थी। मैं आगे पढ़नी चाहती थी। पर गांव में कोई स्कूल भी तो नहीं था दसवीं के बाद पढ़ने के लिए।
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स्वयं एक मशाल – गृहलक्ष्मी कहानियां
माथे तक पल्ला, दुबली-पतली काया। और आंखों की निश्चल चमक-होठों पर खेलती अव्यक्त मुस्कान। यही तो पहचान थी उसकी। एक-झटके में ही पूरा समाचार पढ़ गई अलका ‘फसब कंवर गांव में कन्या शिक्षा अभियान से जुड़ी जीवट नारी हैं। महिला उत्थान, गरीबी, बीमारी और समाज सेवा के कार्यों का निरंतर नेतृत्व कर रही हैं।
मुखौटे वाले नहीं नहीं – गृहलक्ष्मी कहानियां
आज उसका मन बल्लियों उछल रहा था। राजकुमार का पलंग झाड़ते हुए उसे एक बहुत अजीब सी अच्छी खुशी महसूस हुई। दोनों तकियों के गिलाफ उतारते और लगाते हुए हालांकि सांस भी चढ़ती जाती थी मगर ऐसी खुशी । ये वही खुशी थी जिसका वो सपना तब से देख रही थी जब से उसे महल की सफाई का जिम्मा मिला था।
”मां बनने की चाह”
मीता की कोई संतान नहीं थी। इसलिए वह बहुत उदास रहती थी। हर एक इंसान जन्मजात कुछ संस्कार, मनोवृत्तियां और अभिलाषाएं लेकर पैदा होता है जिनसे नाता तोड़ना कठिन होता है। मीता की संतान के लिए चाह, एक ऐसी ही चाह थी। वह दिन-रात संतति प्राप्ति की कामना में डूबी रहती। मां बाप पिछले वर्ष, […]
”नाभि”
इधर उसके सभी रेखाचित्रों का विषय नाभि था। मगर कोई भी चित्र दूसरे से मेल नहीं खाता था। एक ही चीज की तस्वीरों में इतनी विविधता लाना ही उसकी विशेषता थी। नाभि, यानी उसका चित्रण कोई आसान बात नहीं है। इसका महत्व तब बढ़ता है, जब हम इस बात पर ध्यान देते हैं कि अभी […]
डस्टबिन – गृहलक्ष्मी कहानियां
गृहलक्ष्मी की लघुकथा प्रतियोगिता में हमें ढेरों लघुकथाएं प्राप्त हुई हैं जिनमें से हमने झांसी की मनिकना मुखर्जी की इस कहानी का चयन किया है।
”भाग्योदय का रास्ता”
बचपन से ही मुझे भाग्योदय शब्द सुनकर ऐसा लगता था कि आपके सभी शत्रु पराजित और आप किसी चमत्कार की शरण में…। एक दिन खुले आसमान में सुबह की हल्की लालिमा में मैं चाय का लुफ्त उठा रही थी कि तभी तभी अखबार वाले ने अखबार मोड़कर यूं घुमा कर जोर से फेंका कि वो […]
पुकार – गृहलक्ष्मी कहानियां
उस पाॅश काॅलोनी में सबसे खूबसूरत बंगला सविता का ही था। अपनी किस्मत और मेहनत पर गर्व करती सविता सुबह-शाम फुर्सत के लम्हों में पलकों को ऊपर नीचे झपका कर अपना वो खूबसूरत बंगला अक्सर ही निहार लिया करती। कभी लाॅन में बेंत की आराम कुर्सी पर बैठी-बैठी आत्ममुग्ध होती रहती थी। ऐसे ही खुशी और संतोष भरे किसी पल में अचानक एक पत्थर बंगले के गेट पर आकर लगा। चट से उठकर सविता ने यहां-वहां झांका, आखिर कौन हो सकता है।
राधा और माधव की कहानी
रजनी ने अपनी घनेरी काली लटें बिखेरीं ही थी। कि चमकता हुआ चांद उसके जूड़े में गजरा बनकर लिपट गया। यह देखकर तारे शरमा गये। गर्मी की ऋतु थी नीले आकाश में चांदनी चारो ओर बिखर गई थी, मानो आज किसी की बारात आने वाली हो। हां हां बारात ही तो आने वाली थी राधा […]
दुनिया की सबसे हसीन औरत
‘‘खुर्शीद” नाम तो बहुत खूबसूरत है, सादिक के चेहरे पर नाम सुनते ही जैसे मुस्कराहट नाच गई। ‘‘वह भी कम खूबसूरत नहीं होगी” सलमा भाभी की आवाज में शोखी घुल गई। कई बार सादिक ने सोचा भी कि किसी बहाने खुद जाकर एक बार देख आए, आखिर पूरी जिन्दगी की बात है। लेकिन फिर जैसे […]
