Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

नैराश्य-लीला – मुंशी प्रेमचंद

पंडित हृदयनाथ अयोध्या के एक सम्मानित पुरुष थे। धनवान तो नहीं, लेकिन खाने-पीने से खुश थे। कई मकान थे, उन्हीं के किराये पर गुजर होता था। इधर किराए बढ़ गए थे, जिससे उन्होंने अपनी सवारी भी रख ली थी। बहुत विचारशील आदमी थे, अच्छी शिक्षा पायी थी, संसार का काफी तर्जुबा था, पर क्रियात्मक शक्ति […]

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निर्वासन – मुंशी प्रेमचंद

परशुराम- वहीं-वहीं, वहीं दालान में ठहरो! मर्यादा- क्यों, क्या मुझमें कुछ छूत लग गई? परशुराम-पहले यह बताओ कि तुम इतने दिनों कहां रहीं, किसके साथ रहीं, किस तरह रहीं और फिर यहाँ किसके साथ आयीं? तब, तब विचार देखी जायेगी! मर्यादा- क्या इन बातों के पूछने का यही वक्त है, फिर अवसर न मिलेगा? परशुराम- […]

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उद्धार – मुंशी प्रेमचंद

हिन्दू, समाज की वैवाहिक प्रथा इतनी दूषित, इतनी चिन्ताजनक, इतनी भयंकर हो गई है कि कुछ समझ में नहीं आता, उसका सुधार क्यों कर हो! बिरले ही ऐसे माता-पिता होंगे, जिनके सात पुत्रों के बाद भी एक कन्या उत्पन्न हो जाये, तो वह सहर्ष उसका स्वागत करें। कन्या का जन्म होते ही उसके विवाह की […]

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स्त्री और पुरुष – मुंशी प्रेमचंद

विपिन बाबू के लिए स्त्री ही संसार की सबसे सुंदर वस्तु थी। वह कवि थे और उनकी कविता के लिए स्त्रियों के रूप और यौवन की प्रशंसा ही सबसे चित्ताकर्षक विषय था। उनकी दृष्टि में स्त्री, जगत् में व्याप्त कोमलता, और अलंकार की सजीव प्रतिमा थी। जबान पर स्त्री का नाम आते ही आँखें जगमगा […]

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नरक का मार्ग – मुंशी प्रेमचंद

रात ‘भक्तमाल’ पढ़ते-पढ़ते न जाने कब नींद आ गई। कैसे-कैसे महात्मा थे, जिनके लिए भगवत्-प्रेम ही सब कुछ था, इसी में मगन रहते थे। ऐसी भक्ति बड़ी तपस्या से मिलती है। क्या मैं वह तपस्या नहीं कर सकती? इस जीवन में और कौन- सा सुख रखा है? आभूषणों से जिसे प्रेम हो वह जाने, यहाँ […]

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विश्वास – मुंशी प्रेमचंद

उन दिनों मिस जोशी बंबई सभ्य-समाज की राधिका थी। थी तो वह एक छोटी-सी कन्या-पाठशाला की अध्यापिका पर उसका ठाट-बाट, मान-सम्मान बढ़ी-बड़ी धन-रानियों को भी लज्जित करता था। वह एक बड़े महल में रहती थी, जो किसी जमाने में सतारा के महाराज का निवास-स्थान था। वहाँ सारे दिन नगर के रईसों, राजाओं, राज-कर्मचारियों का तांता […]

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शूद्रा – मुंशी प्रेमचंद

माँ और बेटी एक झोपड़ी में गाँव के उस सिरे पर रहती थीं। बेटी बाग से पत्तियाँ बटोर कर लाती, माँ भाड़ झोंकती। यही उनकी जीविका थी। सेर-दो सेर अनाज मिल जाता था, खाकर पड़ी रहती थीं। माता विधवा थी। बेटी कुंवारी, घर में और कोई आदमी न था। माँ का नाम गंगा था, बेटी […]

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नया विवाह – मुंशी प्रेमचंद

हमारी देह पुरानी है, लेकिन इसमें सदैव नया रक्त दौड़ता रहता है। नए रक्त के प्रवाह पर ही हमारे जीवन का आधार है। पृथ्वी की इस चिरन्तन व्यवस्था में यह नयापन उसके एक-एक अणु में, एक-एक कण में, तार में बसे हुए स्वरों की भांति गूँजता रहता है, और यह सौ साल की बुढ़िया आज […]

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जादू – मुंशी प्रेमचंद

नीला- ‘तुमने उसे क्यों पत्र लिखा? मीना- ‘किसको?’ ‘उसी को!’ ‘मैं नहीं समझी।’ ‘खूब समझती हो। जिस आदमी ने मेरा अपमान किया गली-गली मेरा नाम बेचता फिरा उसे तुम मुँह लगाती हो, क्या यह उचित है?’ ‘तुम गलत कहती हो।’ ‘तुमने उसे खत नहीं लिखा?’ ‘कभी नहीं।’ ‘तो मेरी गलती थी, क्षमा करो। तुम मेरी […]

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लॉटरी – मुंशी प्रेमचंद

जल्दी से मालदार हो जाने की हबस किसे नहीं होती? उन दिनों जब लाटरी के टिकट आए तो मेरे दोस्त विक्रम के पिता, चचा, अम्मा और भाई सभी ने एक-एक टिकट खरीद लिया । कौन जाने किसकी तकदीर जोर करे? किसी के नाम आए रुपया, रहेगा तो घर में ही । मगर विक्रम को सब […]