Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

घरजमाई – मुंशी प्रेमचंद

हरिधन जेठ की दुपहरी में ऊख में पानी देकर आया और बाहर बैठा रहा। घर में से धुआँ उठता नज़र आता था। छन-छन की आवाज़ भी आ रही थी। उसके दोनों साले उसके बाद आये और घर में चले गये। दोनों सालों के लड़के भी आये और उसी तरह अन्दर दाख़िल हो गये; पर हरिधन […]

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ठाकुर का कुआं – मुंशी प्रेमचंद

जोखू ने लोटा मुँह से लगाया तो पानी में सख्त बदबू आई। गंगी से बोला-यह कैसा पानी है? मारे बास के पिया नहीं जाता। गला सूखा जा रहा है और तू सड़ा पानी पिलाये देती है! गंगी प्रतिदिन शाम को पानी भर लिया करती थी। कुआँ दूर था, बार-बार जाना मुश्किल था। कल वह पानी […]

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स्वामिनी – मुंशी प्रेमचंद

शिवदास ने भंडारे की कुंजी अपनी बहू रामप्यारी के सामने फेंककर अपनी बूढ़ी आंखों में आंसू भरकर कहा- बहू अज से गिरस्ती की देख-भाल तुम्हारे ऊपर है। मेरा सुख भगवान् से नहीं देखा गया, नहीं तो क्या जवान बेटे को यों छीन लेते! उसका काम करने वाला तो कोई चाहिए। एक हल तोड़ दूँ तो […]

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शांति – मुंशी प्रेमचंद

जब मैं ससुराल आयी, तो बिलकुल फूहड़ थी। न पहनने-ओढ़ने का सलीका, न बातचीत करने का ढंग। सिर उठाकर किसी से बातचीत न कर सकती थी। आंखें अपने-आप झपक जाती थीं। किसी के सामने जाते शर्म आती, स्त्रियों तक के सामने बिना घूंघट के झिझक होती थी। मैं कुछ हिन्दी पढ़ी हुई थी, पर उपन्यास, […]

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बड़े भाई साहब – मुंशी प्रेमचंद

मेरे भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढ़ना शुरू किया था, जब मैंने शुरू किया; लेकिन शिक्षा जैसे महत्त्व के मामले में वह जल्दीबाजी से काम लेना पसंद न करते थे। इस भवन की नींव खूब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल […]

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बेटों वाली विधवा – मुंशी प्रेमचंद

पण्डित अयोध्यानाथ का देहान्त हुआ तो सबने कहा, ईश्वर आदमी को ऐसी ही मौत दे। चार जवान बेटे थे, एक लड़की थी। चारों लड़कों के विवाह हो चुके थे, केवल लड़की कुंवारी थी। सम्पत्ति भी काफी छोड़ी थी। एक पक्का मकान, दो बगीचे, कई हजार के गहने और बीस हजार नकद। विधवा फूलमती को शोक […]

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मां – मुंशी प्रेमचंद

आज बंदी छूटकर घर आ रहा है। करुणा ने एक दिन पहले ही घर लीप-पोत रखा था। इन तीन वर्षों में उसने करीब तपस्या करके जो दस-पाँच रुपये जमा कर रखे थे, वह तब पति के सत्कार और स्वागत की तैयारियों में खर्च कर दिये। पति के लिए धोतियों का नया जोड़ा लायी थीं, नये […]

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ईदगाह – मुंशी प्रेमचंद

रमजान के पूरे तीस रोज़ो के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी […]

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अलग्योझा – मुंशी प्रेमचंद

भोला महतो ने पहली स्त्री के मर जाने के बाद दूसरी सगाई की, तो उसके लड़के रग्घू के लिए बुरे दिन आ गये। रग्घू की उम्र उस समय केवल दस वर्ष की थी। चैन से गाँव में गुल्ली-डंडा खेलता-फिरता था। माँ के आते ही चक्की में जुटना पड़ा। पन्ना रूपवती स्त्री थी। और रूप और […]