Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

वेश्या – मुंशी प्रेमचंद

छ: महीने बाद कलकत्ते से घर आने पर दयाकृष्ण ने पहला काम जो किया, वह अपने प्रिय मित्र सिंगारसिंह से मातमपुरसी करने जाना था। सिंगार के पिता का आज तीन महीने हुए देहान्त हो गया था। दयाकृष्ण बहुत व्यस्त रहने के कारण उस समय न आ सका था। मातमपुरसी की रस्म पत्र लिखकर अदा कर […]

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खुदाई फौजदार – मुंशी प्रेमचंद

सेठ नानकचन्द को आज फिर वही लिफाफा मिला और वही लिखावट सामने आयी तो उनका चेहरा पीला पड़ गया। लिफाफा खोलते हुए हाथ और ह्रदय दोनों काँपने लगे। खत में क्या है, यह उन्हें खूब मालूम था। इसी तरह के दो खत पहले पा चुके थे। इस तीसरे खत में भी वही धामकियाँ हैं, इसमें […]

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कुसुम – मुंशी प्रेमचंद

साल-भर की बात है। एक दिन शाम को हवा खाने जा रहा था कि महाशय नवीन से मुलाकात हो गई। मेरे पुराने दोस्त हैं। बड़े बेतकल्लुफ और मनचले। आगरे में मकान है, अच्छे कवि हैं। उनके कवि-समाज में कई बार शरीक हो चुका हूँ। ऐसा कविता का उपासक मैंने नहीं देखा। पेशा तो वकालत है, […]

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कश्मीरी सेब – मुंशी प्रेमचंद

कल शाम को चौक में दो-चार जरूरी चीजें खरीदने गया था। पंजाबी मेवाफरोशों की दूकानें रास्ते ही में पड़ती हैं। एक दूकान पर बहुत अच्छे रंगदार,गुलाबी सेब सजे हुए नजर आये। जी ललचा उठा। आजकल शिक्षित समाज में विटामिन और प्रोटीन के शब्दों में विचार करने की प्रवृत्ति हो गई है। टमाटो को पहले कोई […]

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मनोवृत्ति – मुंशी प्रेमचंद

एक सुंदरी युवती, प्रात:काल गांधी पार्क में बिल्लौर के बेंच पर गहरी नींद में सोई पाई जाए, यह चौंका देनेवाली बात है । सुंदरियाँ पार्कों में हवा खाने आती हैं, हँसती हैं, दौड़ती हैं, फूल-पौधों से खेलती हैं, किसी का उधर ध्यान नहीं जाता; लेकिन कोई युवती रविश के किनारे वाले बेंच पर बेखबर सोए, […]

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रसिक सम्पादक – मुंशी प्रेमचंद

‘नवरस’ के सम्पादक पं. चोखेलाल शर्मा की धर्मपत्नी का जब से देहांत हुआ है, आपको स्त्रियों से विशेष अनुराग हो गया है और रसिकता की मात्रा भी कुछ बढ़ गयी है। पुरुषों के अच्छे-अच्छे लेख रद्दी में डाल दिये जाते हैं, पर देवियों के लेख कैसे भी हों, तुरन्त स्वीकार कर लिये जाते हैं और […]

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गिला – मुंशी प्रेमचंद

जीवन का बड़ा भाग इसी घर में गुजर गया, पर कभी आराम न नसीब हुआ। मेरे पति संसार की दृष्टि में बड़े सज्जन, बड़े शिष्ट, बड़े उदार, बड़े सौम्य होंगे, लेकिन जिस पर गुजरती है, वही जानता है। संसार को तो उन लोगों की प्रशंसा करने में आनंद आता है, जो अपने घर को भाड़ […]

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घासवाली – मुंशी प्रेमचंद

मुलिया हरी-हरी घास का गट्ठा लेकर आयी, तो उसका गेहुंआ रंग कुछ तमतमाया हुआ था और बड़ी-बड़ी मद-भरी आँखों में शंका समायी हुई थी। महावीर ने उसका तमतमाया हुआ चेहरा देखकर पूछा- ‘क्या है मुलिया, आज कैसा जी है?’ मुलिया ने कुछ जवाब न दिया। उसकी आँखें डबडबा गयी। महावीर ने समीप आकर पूछा- ‘क्या […]

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तावान – मुंशी प्रेमचंद

छकौड़ी लाल ने दुकान खोली और कपड़े के थान को निकाल-निकाल रखने लगा कि एक महिला, दो स्वयंसेवकों के साथ उसकी दुकान को छेंकने आ पहुँचीं। छकौड़ी के प्राण निकल गये। महिला ने तिरस्कार करके कहा- क्यों लाला, तुमने सील तोड़ डाली न? अच्छी बात है, देखें तुम कैसे एक गिरह कपड़ा भी बेच लेते […]

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आखिरी हीला – मुंशी प्रेमचंद

यद्यपि मेरी स्मरण-शक्ति पृथ्वी के इतिहास की सारी स्मरणीय तारीखें भूल गयी, वे तारीखें जिन्हें रातों को जागकर और मस्तिष्क को खपाकर याद किया था, मगर विवाह की तिथि समतल भूमि में एक स्तम्भ की भांति अटल है। न भूलता हूँ न भूल सकता हूँ। उससे पहले और पीछे की सारी घटनाएँ दिल से मिट […]