Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

लांछन – मुंशी प्रेमचंद

मुंशी श्यामकिशोर के द्वार पर मुन्नू मेहतर ने झाडू लगायी, गुसलखाना धो-धोकर साफ किया और तब द्वार पर आकर गृहिणी से बोला – ‘मां जी, देख लीजिए, सब साफ कर दिया। आज कुछ खाने को मिल जायें सरकार।’ देवी रानी ने द्वार पर आकर कहा – ‘अभी तो तुम्हें महीना पाये दस दिन भी नहीं […]

Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

अनुभव – मुंशी प्रेमचंद

प्रियतम को एक वर्ष की सजा हो गयी। और अपराध केवल इतना था, कि तीन दिन पहले जेठ की तपती दोपहरी में उन्होंने राष्ट्र के कई सेवकों को शर्बत-पान से सत्कार किया था। मैं उस वक्त अदालत में खड़ी थी। कमरे के बाहर सारे नगर की राजनीतिक चेतना किसी बंदी पशु की भांति खड़ी चीत्कार […]

Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

सुभागी – मुंशी प्रेमचंद

और लोगों के यहाँ चाहे जो होता हो, तुलसी महतो अपनी लड़की सुभागी को लड़के रामू से जौ-भर भी कम प्यार न करते थे। रामू जवान होकर भी कुछ काठ का उल्लू था। सुभागी ग्यारह साल की बालिका होकर भी घर के काम में इतनी चतुर और खेती-बारी के काम में इतनी निपुण थी कि […]

Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

शिकार – मुंशी प्रेमचंद

फटे वस्त्रों वाली मुनिया ने रानी वसुधा के चाँद-से मुखड़े की ओर सम्मान-भरी आँखों से देखकर राजकुमार को गोद में उठाते हुए कहा-हम ग़रीबों का इस तरह कैसे निबाह हो सकता है महारानी! मेरी तो अपने आदमी से एक दिन न पटे। मैं उसे घर में बैठने न दूँ। ऐसी-ऐसी गालियाँ सुनाऊँ कि छठी का […]

Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

कायर – मुंशी प्रेमचंद

युवक का नाम केशव था, युवती का प्रेमा। दोनों एक ही कॉलेज के और एक ही क्लास के विद्यार्थी थे। केशव नये विचारों का युवक था, जात-पाँत के बन्धनों का विरोधी। प्रेमा पुराने संस्कारों की कायल थी, पुरानी मर्यादाओं और प्रथाओं में पूरा विश्वास रखनेवाली; लेकिन फिर भी दोनों में गाढ़ा प्रेम हो गया था […]

Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

धिक्कार – मुंशी प्रेमचंद

अनाथ और विधवा मानी के लिए जीवन में अब रोने के सिवा दूसरा अवलम्ब न था। यह पाँच ही वर्ष की थी, जब पिता का देहांत हो गया। माता ने किसी तरह उसका पालन किया। सोलह वर्ष की अवस्था में मुहल्लेवालों की मदद से उसका विवाह भी हो गया; पर साल के अंदर ही माता […]

Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

दिल की रानी – मुंशी प्रेमचंद

जिन वीर तुर्कों के प्रखर प्रताप से ईसाई-दुनिया कांप रही थी, उन्हीं का रक्त आज कुस्तुंतुनिया की गलियों में बह रहा है। वही कुस्तुंतुनिया जो सौ साल पहले तुर्कों के आतंक से आहत हो रहा था, आज उनके गर्म रक्त से अपना कलेजा ठण्डा हो रहा है। सत्तर हजार तुर्क योद्धाओं की लाशें बास-फरस की […]

Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

ज्योति – मुंशी प्रेमचंद

विधवा हो जाने के बाद बूटी का स्वभाव बहुत कटु हो गया था। जब बहुत जी जलता तो अपने मृत पति को कोसती- आप तो सिधार गये, मेरे लिए यह सारा जंजाल छोड़ गये। जब इतनी जल्दी जाना था, तो ब्याह न जाने किस लिए किया। घर में भूनी भांग नहीं, चले थे ब्याह करने। […]

Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

गुल्ली-डंडा – मुंशी प्रेमचंद

हमारे अंग्रेजी दोस्त मानें, या न मानें मैं तो यही कहूंगा कि गुल्ली-डण्डा सब खेलों का राजा है। अब भी कभी लड़कों को गुल्ली-डण्डा खेलते देखता हूं, तो जी लोट-पोट हो जाता है कि इनके साथ जाकर खेलने लगूं। न लॉन की जरूरत, न कोर्ट की, न नेट की, न थापी की। मजे से किसी […]

Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

झांकी – मुंशी प्रेमचंद

कई दिन से घर में कलह मचा हुआ था। माँ अलग मुँह फुलाये बैठी थी, स्त्री अलग। घर की वायु में जैसे विष भरा हुआ था। रात को भोजन नहीं बना, दिन को मैंने स्टोव पर खिचड़ी डाली; पर खाया किसी ने नहीं। बच्चों को भी आज भूख न थी। छोटी लड़की कभी मेरे पास […]