जिन वीर तुर्कों के प्रखर प्रताप से ईसाई-दुनिया कांप रही थी, उन्हीं का रक्त आज कुस्तुंतुनिया की गलियों में बह रहा है। वही कुस्तुंतुनिया जो सौ साल पहले तुर्कों के आतंक से आहत हो रहा था, आज उनके गर्म रक्त से अपना कलेजा ठण्डा हो रहा है। सत्तर हजार तुर्क योद्धाओं की लाशें बास-फरस की लहरों पर तैर रही हैं और तुर्की सेनापति एक लाख सिपाहियों के साथ तैमूरी तेज के सामने अपनी किस्मत का फैसला सुनने के लिए खड़ा है।
तैमूर ने विजय से भरी आंखें उठायी और सेनापति यज़दानी की ओर देख कर सिंह के समान गरजा- ‘क्या चाहते हो, जिन्दगी या मौत?’
यजदानी ने गर्व से सिर उठाकर कहा- ‘इज्जत की जिन्दगी मिले तो जिंदगी वरना मौत।’
तैमूर का क्रोध प्रचंड हो उठा। उसने बड़े-बड़े अभिमानियों का सिर नीचा कर दिया था। वह जवाब इस अवसर पर सुनने की उसे ताव न थी। इन एक लाख आदमियों की जान उसकी मुट्ठी में है। इन्हें यह एक क्षण में मसल सकता है। उस पर भी इतना अभिमान! इज्जत की जिंदगी! इसका यही तो अर्थ है कि गरीबों का जीवन अमीरों के भोग-विलास पर बलिदान किया जाय। वही शराब की मजलिसे, वही अरमीनियाँ और काफ की परियाँ। नहीं, तैमूर ने खलीफा बायजीद का घमंड इसलिए नहीं तोड़ा है कि तुर्कों को फिर उसी मदांध स्वाधीनता में इस्लाम का नाम डुबाने को छोड़ दे। तब उसे इतना रक्त बहाने की क्या जरूरत थी? मानव रक्त का प्रवाह संगीत का प्रवाह नहीं-एक वीभत्स दृश्य है, जिसे देखकर आँखें मुँह फेर लेती हैं, दृश्य सिर झुका लेता है। तैमूर हिंसक पशु नहीं है, जो यह दृश्य देखने के लिए अपने जीवन की बाजी लगा दे।
वह अपने शब्दों में धिक्कार भरकर बोला- ‘जिसे तुम इज्जत की जिंदगी कहते हो, वह गुनाह और जहन्नुम की जिंदगी है।’
यजदानी को तैमूर से दया या क्षमा की आशा न थी। उसकी या उसके योद्धाओं की जान किसी तरह नहीं बच सकती। फिर वह क्यों दबे और क्यों न जान पर खेलकर तैमूर के प्रति उसके मन में जो घृणा है, उसे प्रकट कर दे? उसने एक बार कातर नेत्रों से उस रूपवान युवक की ओर देखा, जो उसके पीछे खड़ा, जैसे अपनी जवानी की लगाम खींच रहा था। सान पर चढ़े हुए. इस्पात के समान उसके अंग-अंग से अतुल क्रोध की चिनगारियाँ निकल रही थी। यजदानी ने उसकी सूरत देखी और जैसे अपनी खींची हुई तलवार म्यान में कर ली और खून के घूंट पीकर बोला- ‘जहांपनाह इस वक्त फतहमंद हैं, लेकिन अपराध क्षमा हो तो कह दूँ कि अपने जीवन के विषय में तुर्कों को तातारियों से उपदेश लेने की जरूरत नहीं पड़ी। पर जहाँ खुदा ने नेमतों की वर्षा की हो, यहाँ उन नेमतों का भोग न करना नाशुक्री है। अगर तलवार ही सभ्यता की सनद होती, तो गाल कौम रोमनों से कहीं ज्यादा सभ्य होती।
तैमूर जोर से हँसा और उसके सिपाहियों ने तलवारों पर हाथ रख लिए। तैमूर का ठहाका मौत का ठहाका था या गिरनेवाले वज्र का तड़ाका।
‘तातारवाले पशु हैं, क्यों?’
‘मैं यह नहीं कहता।’
‘तुम कहते हो, खुदा ने तुम्हें ऐश करने के लिए पैदा किया है। मैं कहता हूँ, यह कुफ्र है। खुदा ने इनसान को जिंदगी के लिए पैदा किया है और इसके खिलाफ जो कोई कुछ करता है, वह काफिर है, जहन्नुमी! रसूलेपाक हमारी जिन्दगी को पाक करने के लिए, हमें सच्चा इनसान बनाने के लिए आये थे, हमें हराम की तालीम देने नहीं। तैमूर दुनिया को इस कुफ्र से पाक कर देने का बीड़ा उठा चुका है। रसूलेपाक के कदमों की कसम, मैं बेरहम नहीं हूँ, जालिम नहीं हूँ खूँखार नहीं हूँ लेकिन कुफ्र की सजा मेरे ईमान में मौत के सिवा कुछ नहीं है।’ उसने तातारी सिपहसालार की तरफ कातिल नजरों से देखा और तत्क्षण एक देव-सा आदमी तलवार खींचकर यजदानी के सिर पर आ पहुँचा। तातार सेना भी तलवारें खींच-खींचकर तुर्की सेना पर टूट पड़ी और दम-के-दम में कितनी ही लाशें जमीन पर फड़कने लगीं।
सहसा वही रूपवान युवक, जो यजदानी से पीछे खड़ा था, आगे बढ़कर तैमूर के सामने आया और जैसे मौत को अपनी बँधी हुई मुट्ठियों में मसलता हुआ बोला- ‘ऐ अपने को मुसलमान कहने वाले बादशाह! क्या यही यह इस्लाम है, जिसकी तबलीग का तूने बीड़ा उठाया है? इस्लाम की यही तालीम है कि तू उन बहादुरों का इस बेदर्दी से खून बहाये, जिन्होंने इसके सिवा कोई गुनाह नहीं किया कि अपने खलीफा और अपने मुल्क की हिमायत की?’
चारों तरफ सन्नाटा छा गया। एक युवक, जिसकी अभी मसें भी न भीगी थीं, तैमूर जैसे तेजस्वी बादशाह का इतने खुले हुए शब्दों में तिरस्कार करे और उसकी जबान तालू से न खिंचवा ली जाय! सभी स्थित हो रहे थे और तैमूर सम्मोहित-सा बैठा, उस युवक की ओर ताक रहा था।
युवक ने तातारी सिपाहियों की तरफ, जिनके चेहरों पर कौतूहलमय प्रोत्साहन झलक रहा था, देखा और बोला- ‘तू इन मुसलमानों को काफ़िर कहता है। और समझता है कि तू इन्हें कत्ल करके खुदा और इस्लाम की खिदमत कर रहा है? मैं तुझसे पूछता हूँ अगर वह लोग, जो खुदा के सिवा और किसी के सामने सिजदा नहीं करते, जो रसूलेपाक को अपना रहबर समझते हैं, मुसलमान नहीं हैं तो कौन मुसलमान है? मैं कहता हूँ हम काफिर सही, लेकिन तेरे कैदी तो हैं? क्या इस्लाम जंजीर में बँधे हुए कैदियों के कत्ल की इजाजत देता है? खुदा ने अगर तुझे ताकत दी है, अख्तियार दिया है, तो क्या इसीलिए कि तू खुदा के बंदों का खून बहाए? क्या गुनहगारों को कत्ल करके तू उन्हें सीधे रास्ते पर ले जायेगा? तूने कितनी बेरहमी से सत्तर हजार बहादुर तुर्कों को धोखा देकर सुरंग से उड़वा दिया और उनके मासूम बच्चों और निरपराध स्त्रियों को अनाथ कर दिया, तुझे कुछ अनुमान है? क्या यही कारनामे हैं, जिन पर तू अपने मुसलमान होने का गर्व करता है? क्या इसी कत्ल, खून और जुल्म की स्याही से तू दुनिया में अपना नाम रोशन करेगा? तूने तुर्कों के खून के बहते दरिया में अपने घोड़ों के सुम नहीं भिगोए हैं, बल्कि इस्लाम को जड़ रो खोदकर फेंक दिया है। यह वीर तुर्कों का ही आत्मोत्सर्ग है, जिसने यूरोप में इस्लाम की तौहीद फैलायी। आज सौफिया के गिरजे में तुझे अल्लाहो-अकबर की सदा सुनाई दे रही है, सारा यूरोप इस्लाम का स्वागत करने को तैयार है। क्या यह कारनामे इसी लायक हैं कि उनका यह इनाम मिले? इस खयाल को दिल से निकाल दे कि लू खूंरेजी से इस्लाम की खिदमत कर रहा है। एक दिन तुझे भी परवरदिगार के सामने कर्मों का जवाब देना पड़ेगा और तेरा कोई उज्र न सुना जाएगा क्योंकि अगर तुझमें अब भी नेक और बद की तमीज बाकी है, तो अपने दिल से पूछ! तूने यह जिहाद खुदा की राह में किया या अपनी हविश के लिए, और मैं जानता हूँ तुझे जो जवाब मिलेगा, वह तेरी गर्दन शर्म से झुका देगा।’
खलीफा अभी सिर झुकाये ही था कि यजदानी ने काँपते हुए शब्दों में अर्ज की- ‘जहांपनाह, यह गुलाम का लड़का है। इसके दिमाग में कुछ फितूर है। हुजूर इसकी गुस्ताखियों को माफ करें। मैं उसकी सजा झेलने को तैयार हूँ।’
तैमूर उस युवक के चेहरे की तरफ स्थिर नेत्रों से देख रहा था। आज जीवन में पहली बार उसे निर्भीक शब्दों को सुनने का अवसर मिला। उसके सामने बड़े- बड़े सेनापतियों, मंत्रियों और बादशाहों की जबान न खुलती थी। वह जो कुछ कहता था, वही कानून था, किसी को उसमें चूं करने की ताकत न थी। उनकी खुशामदों ने उसकी अहम्मन्यता को आसमान पर चढ़ा दिया था। उसे विश्वास हो गया था कि खुदा ने इस्लाम को जगाने और सुधारने के लिए ही उसे दुनिया में भेजा है। उसने पैगम्बरी का दावा तो नहीं किया, पर उसके मन में यह भावना दृढ़ हो गयी थी, इसलिए जब आज एक युवक ने प्राणों का मोह छोड़कर उसकी कीर्ति का पर्दा खोल दिया, तो उसकी चेतना जैसे जाग उठी। उसके मन में क्रोध और हिंसा की जगह श्रद्धा का उदय हुआ। उसकी आंखों का एक इशारा इस युवक की जिंदगी का चिराग गुल कर सकता था! उसकी संसार-विजयिनी शक्ति के सामने दुधमुँहा बालक मानो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से समुद्र के प्रवाह को रोकने के लिए खड़ा हो। कितना हास्यास्पद साहस था। साथ ही कितना आत्मविश्वास से भरा हुआ। तैमूर को ऐसा जान पड़ा कि इस निहत्थे बालक के सामने वह कितना निर्बल है। मनुष्य में ऐसे साहस का एक ही स्रोत हो सकता है, और वह सत्य पर अटल विश्वास है। उसकी आत्मा दौड़कर उस युवक के दामन में चिपट जाने के लिए अधीर हो गयी। वह दार्शनिक न था, जो सत्य में शंका करता है। यह सरल सैनिक था, जो असत्य को भी अपने विश्वास से सत्य बना देता है।
यजदानी ने उसी स्वर में कहा- ‘जहाँपनाह, इसकी बदज़बानी का खयाल न फरमायें।’
तैमूर ने तुरंत तख्त से उठकर यजदानी को गले लगा लिया और बोला- ‘काश, ऐसी गुस्ताख़ियों और बदजबानियों के सुनने का पहले इत्तफाक होता, तो आज इतने बेगुनाहों का खून मेरी गर्दन पर न होता। मुझे इस जवान में किसी फरिश्ते की रूह का जलवा नजर आता है, जो मुझ-जैसे गुमराहों को सच्चा रास्ता दिखाने के लिए भेजी गयी है। मेरे दोस्त, तुम खुशनसीब हो कि ऐसे फरिश्ता सिफ़त बेटे के बाप हो। क्या मैं उसका नाम पूछ सकता हूँ?’
यजदानी पहले आतशपरस्त था, पीछे मुसलमान हो गया था, पर अभी तक कभी-कभी उसके मन में शंकाएँ उठती रहती थी कि उसने क्यों इस्लाम कबूल किया। जो कैदी फाँसी के तख्ते पर खड़ा सूखा जा रहा था कि एक क्षण में रस्सी उसकी गर्दन में पड़ेगी और वह लटकता रह जाएगा, उसे जैसे किसी फरिश्ते ने गोद में ले लिया। वह गदगद कंठ से बोला- ‘उसे हबीब कहते हैं।’
तैमूर ने युवक के सामने जाकर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे आँखों से लगाता हुआ बोला- ‘मेरे जवान दोस्त, तुम सचमुच खुदा के हबीब हो। मैं वह गुनहगार हूँ जिसने अपनी जहालत में हमेशा अपने गुनाहों को सबाब समझा, इसलिए कि मुझसे कहा जाता था, तेरी जात बे ऐब है। आज मुझे मालूम हुआ कि मेरे हाथों इस्लाम को कितना नुकसान पहुँचा। आज से मैं तुम्हारा ही दामन पकड़ता हूँ। तुम्हीं मेरे छिड़, तुम्हीं मेरे खिज्ऱ हो। तुम्हीं मेरे रहनुमा हो। मुझे यकीन हो गया कि तुम्हारे ही वसीले से मैं खुदा की दरगाह तक पहुँच सकता हूँ।’
यह कहते हुए उसने युवक के चेहरे पर नजर डाली, तो उस पर शर्म की लाली छायी हुई थी। उस कठोरता की जगह मधुर संकोच झलक रहा था।
युवक ने सिर झुकाकर कहा- ‘यह हुजूर की कद्रदानी है, वरना मेरी क्या हस्ती है।’
तैमूर ने उसे खींचकर अपनी बगल में तख्त पर बिठा दिया और अपने सेनापति को हुक्म दिया, ‘सारे तुर्क कैदी छोड़ दिये जाएँ उनके हथियार वापस कर दिये जाएँ और जो माल लूटा गया है, वह सिपाहियों में बराबर बाँट दिया जाये।’ वजीर तो उधर इस हुक्म की तामील करने लगा, इधर तैमूर हबीब का हाथ पकड़े हुए अपने खेमे में गया और दोनों मेहमानों की दावत का प्रबंध करने लगा। और जब भोजन समाप्त हो गया, तो उसने अपने जीवन की सारी कथा रो-रोकर कह सुनायी, जो आदि से अंत तक मिश्रित पशुता और बर्बरता के कृत्यों से भरी हुई थी। और उसने यह सब कुछ इस भ्रम में किया कि वह ईश्वरीय आदेश का पालन कर रहा है। वह खुदा को कौन मुँह दिखाएगा? रोते-रोते उसकी हिचकियाँ बँध गयीं।
अंत में उसने हबीब से कहा- ‘मेरे जवान दोस्त, अब मेरा बेड़ा आप ही पार लगा सकते हैं । आपने राह दिखायी है तो मंजिल पर पहुंचाइये । मेरी बादशाहत को अब आप ही संभाल सकते हैं। मुझे आज मालूम हो गया कि मैं उसे तबाही के रास्ते पर लिए जाता था। मेरी आपसे यही इल्तमस (प्रार्थना) है कि आप उसकी वज़ारत कबूल करें। देखिए, खुदा के लिए इनकार न कीजिएगा, वरना मैं कहीं का न रहूँगा। यजदानी ने अर्ज़ की- हुजूर इतनी कदरदानी फरमाते हैं, यह आपकी इनायत है, लेकिन अभी इस लड़के की उम्र ही क्या है। वज़ारत की खिदमत यह क्या अंजाम दे सकेगा। अभी तो इसकी तालीम के दिन हैं।
इधर से इनकार होता रहा और उधर तैमूर आग्रह करता रहा। यजदानी इनकार तो कर रहे थे, पर छाती फूली जाती थी। मूसा आग लेने गये थे, पैगम्बरी मिल गयी। कहीं मौत के मुँह में जा रहे थे, वज़ारत मिल गयी, लेकिन यह शंका भी थी कि ऐसे अस्थिर-चित्त आदमी का क्या ठिकाना? आज खुश हुए, वज़ारत देने को तैयार हैं, कल नाराज हो गये, तो जान की खैरियत नहीं। उन्हें हबीब की लियाकत पर भरोसा था, फिर भी जी डरता था कि बिराने देश में न जाने कैसी पड़े, कैसी न पड़े। दरबारवालों में षड्यंत्र होते ही रहते हैं । हबीब नेक है, समझदार है, अवसर पहचानता है, लेकिन वह तर्जुबा कहाँ से लायेगा, जो उम्र ही से आता है। उन्होंने इस प्रश्न का विचार करने के लिए एक दिन की मोहलत माँगी और रुख़सत हुए।
