Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

नैराश्य – मुंशी प्रेमचंद

बाज आदमी अपनी स्त्री से इसलिए नाराज रहते हैं कि उसके लड़कियाँ ही क्यों होती हैं, लड़के क्यों नहीं होते। वह जानते हैं कि इसमें स्त्री का दोष नहीं है, या है तो उतना ही जितना मेरा, फिर भी जब देखिए, स्त्री से रूठे रहते हैं, उसे अभागिनी कहते हैं और सदैव उसका दिल दुखाया […]

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तेंतर – मुंशी प्रेमचंद

आखिर वही हुआ, जिसकी आशंका थी, जिसकी चिंता में घर के सभी लोग और विशेषतः प्रसूता पड़ी हुई थी। तीन पुत्रों के पश्चात् कन्या का जन्म हुआ। माता सौर में सूख गई, पिता बाहर आंगन में सूख गए और पिता की वृद्धा माता सौर-द्वार पर सूख गई। अनर्थ, महा-अनर्थ! भगवान ही कुशल करें तो हो। […]

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परीक्षा – मुंशी प्रेमचंद

जब रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सुजानसिंह बूढ़े हुए तो परमात्मा की याद आयी। जा कर महाराज से विनय की कि दीनबंधु ! दास ने श्रीमान् की सेवा चालीस साल तक की, अब मेरी अवस्था भी ढल गयी, राज-काज सँभालने की शक्ति नहीं रही। कहीं भूल-चूक हो जाय तो बुढ़ापे में दाग लगे। सारी जिंदगी […]

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माता का हृदय – मुंशी प्रेमचंद

माधवी की आँखों में सारा संसार अँधेरा हो रहा था। कोई अपना मददगार न दिखाई देता था। कहीं आशा की झलक न थी। उस निर्धन घर में यह अकेली पड़ी रोती थी और कोई आँसू पोंछने वाला न था। उसके पति को मरे हुए 22 वर्ष हो गए थे। घर में कोई सम्पत्ति न थी। […]

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एक आंच की कसर – मुंशी प्रेमचंद

सारे नगर में महाशय यशोदानंद का बयान हो रहा था। नगर ही में नहीं, समस्त प्रान्त में उनकी कीर्ति गायी जाती थी, समाचार पत्रों में टिप्पणियाँ हो रही थीं, मित्रों के प्रशंसापूर्ण पत्रों का ताँता लगा हुआ था। समाज-सेवा इसको कहते हैं। उन्नत विचार के लोग ऐसा ही करते हैं। महाशय जी ने शिक्षित समुदाय […]

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आधार – मुंशी प्रेमचंद

सारे गाँव में मथुरा का-सा गठीला जवान न था। कोई बीस बरस की उमर थी। मसें भींग रही थीं। गाएं चराता, दूध पीता, कसरत करता, कुश्ती लड़ता और सारे दिन बाँसुरी बजाता हाट में विचरता था। ब्याह हो गया था, पर अभी कोई बाल- बच्चा न था। घर में कई हल की खेती थी, कई […]

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स्वर्ग की देवी – मुंशी प्रेमचंद

भाग्य की बात! शादी-विवाह में आदमी का क्या अख्तियार। जिससे ईश्वर ने, या उसके नायबों-ब्राह्मणों-ने तय कर दी, उससे हो गई। बाबू भारतदास ने लीला के लिए सुयोग्य वर खोजने में कोई कसर नहीं उठा रखी। लेकिन जैसा घर-वर चाहते थे, वैसा न पा सके। वह लड़की को सुखी देखना चाहते थे, जैसा हर एक […]

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कौशल – मुंशी प्रेमचंद

पंडित बालक राम शास्त्री की धर्मपत्नी माया को बहुत दिनों से एक हार की लालसा थी और वह सैकड़ों ही बार पंडितजी से उसका आग्रह कर चुकी थी किन्तु पंडितजी हीला-हवाला करते रहते थे। यह तो साफ-साफ न कहते थे कि मेरे पास रुपये नहीं हैं- इससे उनके पराक्रम में बट्टा लगता था- तर्कनाओं की […]

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नैराश्य-लीला – मुंशी प्रेमचंद

पंडित हृदयनाथ अयोध्या के एक सम्मानित पुरुष थे। धनवान तो नहीं, लेकिन खाने-पीने से खुश थे। कई मकान थे, उन्हीं के किराये पर गुजर होता था। इधर किराए बढ़ गए थे, जिससे उन्होंने अपनी सवारी भी रख ली थी। बहुत विचारशील आदमी थे, अच्छी शिक्षा पायी थी, संसार का काफी तर्जुबा था, पर क्रियात्मक शक्ति […]

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निर्वासन – मुंशी प्रेमचंद

परशुराम- वहीं-वहीं, वहीं दालान में ठहरो! मर्यादा- क्यों, क्या मुझमें कुछ छूत लग गई? परशुराम-पहले यह बताओ कि तुम इतने दिनों कहां रहीं, किसके साथ रहीं, किस तरह रहीं और फिर यहाँ किसके साथ आयीं? तब, तब विचार देखी जायेगी! मर्यादा- क्या इन बातों के पूछने का यही वक्त है, फिर अवसर न मिलेगा? परशुराम- […]