13 दिन बाद क्यों की जाती है तेरहवीं? जानें इसके धार्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व: Terahvi Sanskar
Terahvi Sanskar

Terahvi Sanskar: तेरहवीं, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अवसर है जो मृत्यु के बाद आता है। इस अवधि में, परिजन और अन्य सम्बंधित व्यक्तियों के लिए शोक और अनुशासन का समय होता है। यहां तक कि इसके अनुसार विशेष रीति-रिवाज भी मान्य होते हैं, जिसमें तेरहवें दिन ब्राह्मण भोज आयोजित किया जाता है ताकि मृतक की आत्मा को शांति प्राप्त हो सके। इस परंपरा के महत्व को समझने के लिए ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ. राधाकांत वत्स से हम जान सकते हैं कि यह समय आध्यात्मिक उन्नति और मृतक के आत्मिक शुद्धि के लिए क्यों महत्वपूर्ण है।

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तेरहवीं का धार्मिक महत्व

हिन्दू धर्म में तेरहवीं को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस अवधि में मान्यता है कि मृतक की आत्मा अपने पापों से मुक्ति प्राप्त कर भगवान के धाम को प्राप्त होती है। इस दौरान ब्राह्मण भोज का आयोजन किया जाता है, जिससे कि सभी आवश्यक संस्कार और क्रियाएँ सम्पन्न हों। यदि इसे न किया जाए, तो मान्यता है कि मृतक की आत्मा को आगामी जन्म में कष्ट भुगतना पड़ सकता है। इसलिए तेरहवीं को धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, जो मृतक की आत्मा को शांति और मुक्ति की प्राप्ति में सहायक होता है।

मृतक की आत्मा तेरह दिनों तक अपने परिवार के पास रहती है

हिन्दू धर्म में तेरहवीं का धार्मिक महत्व विशेष रूप से मृत्यु के बाद आत्मिक शांति और परिवारिक सम्बन्धों को समझाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, मृतक की आत्मा तेरह दिनों तक अपने परिवार के पास रहती है और उनके किए जाने वाले धार्मिक कार्यों को ध्यान से देखती है। इसका मान्यता से चिता देने वाले को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा जाता है, ताकि मृतक की आत्मा को शांति मिले।

तेरहवें दिन के दौरान विशेष प्रकार के संस्कार आयोजित किए जाते हैं, जैसे ब्राह्मण भोज और पिंडदान। इन कार्यों के माध्यम से मृतक की आत्मा को शांति प्रदान की जाती है और उसे भगवान के धाम में स्थान प्राप्त होने की कामना की जाती है। तेरहवें दिन एक महत्वपूर्ण अवसर है जो धार्मिक संस्कारों के माध्यम से परिवारिक समृद्धि और शांति को संरक्षित करता है।

तेरहवीं का वैज्ञानिक महत्व

तेरहवीं का वैज्ञानिक महत्व समझने के लिए, हमें यह समझना होगा कि डिप्रेशन और मानसिक स्वास्थ्य के बीच कैसा संबंध है। जब किसी के पास अपने प्रियजन की मृत्यु का दुख होता है, तो उसका मानसिक संतुलन भंग हो सकता है। इस दौरान व्यक्ति अकेलापन और उदासीनता महसूस कर सकता है, जो डिप्रेशन के लिए एक प्रेरणास्पद कारक हो सकता है। तेरहवीं के दौरान, परिवार और समाज द्वारा साझा की जाने वाली बातचीत और सहानुभूति का समय होता है। इस अवसर पर, व्यक्ति को अपने भावनाओं को साझा करने और उन्हें समझने का मौका मिलता है। यह मदद कर सकता है कि उनका मानसिक संतुलन बना रहे और वे समाज में पुनः समाहित हो सकें।

मैं आयुषी जैन हूं, एक अनुभवी कंटेंट राइटर, जिसने बीते 6 वर्षों में मीडिया इंडस्ट्री के हर पहलू को करीब से जाना और लिखा है। मैंने एम.ए. इन एडवर्टाइजिंग और पब्लिक रिलेशन्स में मास्टर्स किया है, और तभी से मेरी कलम ने वेब स्टोरीज़, ब्रांड...