Annaprashan Sanskar
Annaprashan Sanskar

Annaprashan Sanskar: हिन्दू धर्म में कुल 16 संस्कार होते हैं और इसमें अन्नप्राशन संस्कार सातवां संस्कार होता है। यह संस्कार मनुष्य में जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। यह उस समय किया जाता है जब शिशु पहली बार अन्न ग्रहण करता है। दरअसल जन्म के बाद से पहले छह महीनों तक शिशु अपनी माँ के दूध पर ही निर्भर रहता है। लेकिन जब वह छह महीनों का हो जाता है तब उसकी पाचन शक्ति विकसित होने लगती है, तब उसे धीरे-धीरे अन्न देना शुरू किया जाता है। अन्न शुरू करने की इसी प्रक्रिया को धार्मिक और पारंपरिक तरीके से करने को अन्नप्राशन संस्कार कहा जाता है। आइए अन्नप्राशन संस्कार के बारे में विस्तार से जानते हैं।

Annaprashan Sanskar
What is Annaprashan Sanskar?

अन्नप्राशन संस्कार जीवन में केवल एक रस्म नहीं है, बल्कि यह बच्चे के मानसिक, शारीरिक और आत्मिक विकास की शुरुआत है। इस संस्कार के बाद से ही बच्चा पोषणयुक्त और आसानी से पचने वाली चीजें खाना शुरू करता है।

Annaprashan Sanskar important
Why is Annaprashan Sanskar important?

दरअसल अन्नप्राशन संस्कार शिशु के जीवन में एक महत्वपूर्ण पड़ाव होता है। इस संस्कार से उसकी मानसिक और शारीरिक वृद्धि  की शुरुआत होने लगती है। इस संस्कार के बाद ही शिशु पोषणयुक्त आहार खाना शुरू करता है, जो उसके विकास के लिए बहुत जरूरी होता है। साथ ही इससे उसका जीवन सकारात्मकता से भर जाता है।

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What is the importance of Annaprashan Sanskar

‘अन्न’ को प्राणियों का प्राण कहा जाता है। भगवद गीता के अनुसार अन्न से केवल शरीर को पोषण ही नहीं प्राप्त होता है, बल्कि इससे मन, बुद्धि और आत्मा को भी पोषण मिलता है। आहार से तन और मन दोनों ही शुद्ध होते हैं और शरीर में सत्वगुण की वृद्धि होती है। इसलिए अन्नप्राशन संस्कार के जरिए शिशु में शुद्ध, सात्विक और पौष्टिक अन्न ग्रहण करने की शुरुआत की जाती है, ताकि उसके अन्दर सकारात्मक विचार और भावनाएं पैदा हो सके।

Annaprashan Sanskar
When and how is Annaprashan Sanskar performed?

अन्नप्राशन संस्कार शिशु के जन्म के छह या फिर सात महीने पूरे होने के बाद विधि-विधान के साथ किया जाता है। इस संस्कार को विधिपूर्वक संपन्न करने के लिए कुछ खास जरूरी बातों का पालन किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले एक शुभ तिथि और मुहूर्त का चुनाव किया जाता है। इसके बाद अन्नप्राशन संस्कार के दिन शिशु के माता-पिता घर के देवताओं की पूजा करते हैं। इस पूजा में भगवान विष्णु और देवी अन्नपूर्णा की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दिन पारंपरिक रूप से चावल की खीर बनाई जाती है और इसे शुद्ध चांदी या फिर सोने के बर्तन में रखा जाता है और इसे भगवान को भोग लगाया जाता है। जब पूजा संपन्न हो जाती है तो इसके बाद चम्मच की सहायता से शिशु को खीर चटाई जाती है। इस दौरान कुछ खास तरह के मन्त्रों का जाप भी किया जाता है। विधि-विधान से अन्नप्राशन संस्कार हो जाने के बाद एक-एक करके परिवार के सदस्य और रिश्तेदार बच्चे को आशीर्वाद देते हैं और उसकी लम्बी व स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं।

ए अंकिता को मीडिया इंडस्ट्री में 9 वर्षों का अनुभव है। इन्होंने अपने करियर की शुरुआत प्रिंट मीडिया से की और खास तौर पर लाइफस्टाइल और एंटरटेनमेंट बीट में रुचि रखती हैं। लेखन के अलावा वेब सीरीज़ देखना, घूमना, संगीत सुनना और फोटोग्राफी...