Daslakshan Parv 2022 : दिगंबर जैन समाज के अनुयायियों द्वारा मनाया जाने वाला दसलक्षण पर्व एक बेहद ही पवित्र पर्व माना जाता है, जिसे दस दिनों तक मनाया जाता है। यह एक ऐसा पर्व है, जो आत्मा की शुद्धि पर जोर देता है। ऐसा माना जाता है कि अगर व्यक्ति अपने जीवन में इन दस लक्षणों का सही तरह से पालन करता है, उसे इस संसार व संसार के समस्त दुखों से मुक्ति मिल जाती है। हालांकि, सांसारिक जीवन में रहते हुए इन दस लक्षणों का पालन करना बेहद मुश्किल होता है, क्योंकि व्यक्ति का कहीं ना कहीं अशुभ कर्मों से भी सम्बन्ध हो जाता है। ऐसे में अगर व्यक्ति मन व वचन की शुद्धि के लिए इन दस दिनों में दस लक्षणों का पालन करे तो उसे विशेष लाभ प्राप्त होता है। तो चलिए जानते हैं इस दसलक्षण पर्व के बारे में-
बेहद महत्वपूर्ण है दसलक्षण पर्व (Daslakshan Parv 2022)
दसलक्षण पर्व इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह पर्व किसी आडंबर में विश्वास नहीं करता है, बल्कि व्यक्ति को मन व वचन की शुद्धि करने पर जोर देता है। इस साल यह 10 दिवसीय दसलक्षण पर्व 31 अगस्त 2022 से बुधवार से शुरू हो गया है, जो अनंत चतुर्दशी तक चलेगा। आमतौर पर, लोग दसलक्षण पर्व और पर्यूषण पर्व को एक ही समझते हैं। जबकि इन दोनों पर्व में कुछ भिन्नता है। पर्यूषण पर्व जैन धर्म के श्वेताम्बर संप्रदाय द्वारा मनाया जाता है, जो 8 दिन तक चलते हैं। 8 वें दिन जैन धर्म के लोगों का महत्वपूर्ण त्यौहार संवत्सरी महापर्व मनाया जाता है। उसके बाद दिगंबर संप्रदाय के लोग 10 दिन तक पर्यूषण मनाते हैं जिसे दशलक्षण पर्व कहा जाता है। इन दस दिनों में जैन धर्म के अनुयायी दस लक्षण उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम अकिंचन्य, उत्तम ब्रहमचर्य का पालन करते हैं।
चूंकि, यह दस दिन जैन धर्म के अनुयायियों के लिए बेहद ही पावन होते हैं, इसलिए लोग इन दिनों में व्रत रखते हैं। वह एक टाइम भोजन करते हैं या जो लोग व्रत नहीं भी रखते हैं, वह भी सूर्यास्त से पहले भोजन अवश्य करते हैं।
दसलक्षण पर्व का पहला दिन है उत्तम क्षमा

यह जैन ग्रन्थ के तत्त्वार्थ सूत्र में वर्णित 10 धर्मों में पहला है। जिसमें हम उन लोगों से क्षमा मांगते हैं जिनके साथ हमने जाने-अनजाने में बुरा व्यवहार किया हो या फिर जिनका हमने दिल दुखाया हो। इतना ही नहीं, हम उन्हें क्षमा करते हैं जिन्होंने हमारे साथ बुरा व्यवहार किया हो। जब आप दूसरों से क्षमा मांगते हैं या फिर दूसरों को क्षमा करते हैं तो इससे व्यक्ति की आत्मा को सही राह खोजने में मदद मिलती है, जिससे सम्यक दर्शन प्राप्त होता है। सम्यक दर्शन वास्तव में परम आनंद मोक्ष को पाने का प्रथम मार्ग है।
दसलक्षण पर्व का दूसरा दिन है उत्तम मार्दव

दसलक्षण पर्व के दूसरे दिन को उत्तम मार्दव के रूप में मनाया जाता है। यह व्यक्ति के अभिमान को दूर करके उसे व्यवहार में मृदुता लाने के लिए प्रेरित करता है। कई बार व्यक्ति धन, दौलत व पद पाकर अहंकारी और अभिमानी बन जाता है। वह खुद को सर्वोपरि व दूसरों को छोटा समझता है। लेकिन वास्तव में यह सभी चीजें नश्वर हैं और एक दिन आप इन चीजों से दूर हो जाएंगे। ऐसे में इन नश्वर चीजों के पीछे भागने या फिर उनका अहंकार करने के स्थान पर हर किसी से विनम्र भाव से पेश आएं और सब जीवों के प्रति मैत्री भाव रखें।
दसलक्षण पर्व का तीसरा दिन है उत्तम आर्जव

दसलक्षण पर्व का तीसरा दिन उत्तम आर्जव है, जो व्यक्ति की भाव शुद्धता पर जोर देता है। यह हमें बताता है कि छल-कपट से जीवन जीने से व्यक्ति को हमेशा दुख भोगना पड़ता है, इसलिए जितना हो सके सरल स्वभाव रखें। साथ ही, मोह-माया व बूरे कर्म सब छोड़कर सरल स्वभाव के साथ परम आनंद मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।
दसलक्षण पर्व का चौथा दिन है उत्तम शौच

दसलक्षण पर्व का चौथा दिन उत्तम शौच हमें यह सिखाता है कि हमें किसी भी चीज की आसक्ति नहीं करनी चाहिए। जब व्यक्ति का किसी चीज में मोह होता है तो वह इस संसार से मुक्ति नहीं पा सकता है। व्यक्ति को शुद्ध मन से जितना मिला है, उसी में खुश रहने के साथ-साथ परमात्मा का शुक्रिया करना चाहिए। जीवन में संतोष होना ही वास्तवित सुख है। अगर आप भौतिक संसाधनों और धन दौलत में खुशी प्राप्त करने की कोशिश करते हैं तो वास्तव में आप खुद को भ्रमित कर रहे हैं।
दसलक्षण पर्व का पांचवां दिन है उत्तम सत्य

दसलक्षण पर्व का पांचवां दिन उत्तम सत्य है, जो व्यक्ति को सिखाता है कि आत्मा की प्रकृति जानने के लिए सत्य आवश्यक है। जब व्यक्ति अपने मन आत्मा को सरल और शुद्ध बना लेता है, तो सत्य ही उसका जीवन बन जाता है। ध्यान रखें कि झूठ बोलना आपके बुरे कर्मों में बढोतरी करता है, जिसके कारण व्यक्ति के लिए सांसारिक माया से मुक्ति पाना काफी कठिन हो जाता है।
दसलक्षण पर्व का छठा दिन है उत्तम संयम

दसलक्षण पर्व का छठा दिन होता है उत्तम संयम, जिसे धूप दशमी के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन व्यक्ति अपने मन, वचन और शरीर पर संयम रखने के महत्व को समझते हैं। उत्तम संयम के दिन व्यक्ति अपनी-अपनी आत्मा को तरह-तरह के प्रलोभनों से मुक्त करके अपने मन पर संयम रखने का प्रयास करता है।
दसलक्षण पर्व का सातवां दिन है उत्तम तप
दसलक्षण पर्व का सातवां दिन उत्तम तप है। जैन धर्म के तीर्थंकरों जैसी तप साधना करना आज के समय में शायद व्यक्ति के लिए मुमकिन ना हो, लेकिन फिर भी व्यक्ति इसी भाव के साथ दसलक्षण पर्व के दौरान उपवास करते हैं या फिर एक समय भोजन करते हैं। हालांकि, यहां यह समझना चाहिए कि तप का मतलब सिर्फ उपवास करना नहीं, बल्कि अपनी इच्छाओं और ख्वाहिशों को वश में रखना तप है, जो व्यक्ति के अच्छे कर्मों में वृद्धि करते हैं।
दसलक्षण पर्व का आठवां दिन है उत्तम त्याग

दसलक्षण पर्व का आठवां दिन उत्तम त्याग होता है। त्याग का अर्थ है इच्छाओं और भावनाओं का त्याग करना और संतोष की भावना विकसित करना। जब व्यक्ति त्याग की भावना को खुद में विकसित कर पाता है, तो वह अपनी आत्मा को शुद्ध बनाता है। इच्छाओं का त्याग करने से व्यक्ति कई तरह के बुरे कर्मों को करने से बच जाता है और उसके कई बुरे कर्मों का नाश भी होता है। जैन धर्म में त्याग का विशेष महत्व है। जैन मुनि सिर्फ अपना घर या सांसारिक मोह-माया ही नहीं, बल्कि अपने कपड़ों तक का भी त्याग कर देते हैं और पूरा जीवन दिगंबर मुद्रा धारण करके व्यतीत करता है।
दसलक्षण पर्व का नौवां दिन है उत्तम आकिंचन्य

दसलक्षण पर्व का नौवां दिन उत्तम आकिंचन्य होता है। उत्तम आकिंचन्य हमें मोह-माया का त्याग करना सिखाता है। हमें किसी भी चीज में ममता नहीं रखनी चाहिए। सभी तरह की मोह-माया व प्रलोभनों का त्याग करके ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है। जब आप मोह का त्याग कर देते हैं तो इससे आत्मा को शुद्ध बनाया जा सकता है। अक्सर लोग उन चीजों के प्रति आसक्ति रखते हैं , जिसके वह बाहरी रूप में मालिक हैं – जैसे-घर, जमीन, धन, चांदी, सोना, कपड़े और संसाधन। यह आसक्ति ही व्यक्ति की आत्मा के भीतर मोह, गुस्सा, घमंड, कपट, लालच, डर, शोक, और वासना जैसी भावनाओं को जन्म देती है। लेकिन अगर व्यक्ति इन सब मोह का त्याग करता है, तो उसके लिए आत्मा को शुद्ध बनाने का रास्ता प्रशस्त होता है।
दसलक्षण पर्व का दसवां दिन है उत्तम ब्रह्मचर्य

दसलक्षण पर्व का दसवां दिन उत्तम ब्रह्मचर्य है। इस दिन को अनंत चतुर्दशी कहते हैं और इस दिन लोग परमात्मा के समक्ष अखंड दिया जलाते हैं। इस दिन लोग खुद में सदभावों व सद्गुणों का पालन करने का संकल्प लेते हैं। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मचर्य का पालन करने से व्यक्ति को ब्रह्मांड का ज्ञान और शक्ति प्राप्त होती है।
दसलक्षण पर्व का इस तरह होता है समापन

अनंत चतुर्दशी के दिन दसलक्षण पर्व का समापन होता है और इस दिन शाम को मंदिर में सभी भक्त जन एक साथ प्रतिक्रमण करते हुए पूरे साल में किये गए पाप और कटू वचन के लिए क्षमा याचना करते हैं। वह हर किसी से दिल से क्षमा मांगते हैं और एक-दूसरे से हाथ जोड कर व गले मिलकर मिच्छामी दूक्कडम कहते हैं, जिसका अर्थ है सबको क्षमा सबसे क्षमा। यहां तक कि उस समय जो लोग उपस्थित नहीं थे, उनसे भी वह दूसरे दिन क्षमा याचना करते हैं। इस तरह दसलक्षण पर्व की समाप्ति होती है।
यूं तो दसलक्षण पर्व को केवल दस दिनों के लिए मनाया जाता है, लेकिन इस पर्व को मनाने के पीछे का मूल उद्देश्य आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए आवश्यक उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना है। इन दस धर्म का पालन व्यक्ति को सिर्फ दस दिनों के लिए ही नहीं करना चाहिए, बल्कि अगर व्यक्ति अपने जीवन में इन धर्म का पालन करने का प्रयास करे तो वह खुद को सांसारिक दुखों से मुक्त करके एक संतोषजनक व सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है।
