Overview: पर्युषण पर्व 2025 कब से शुरू होगा?
पर्युषण जैन धर्म का सबसे पवित्र पर्व है, जो आत्मनिरीक्षण, संयम और क्षमा का प्रतीक है। 2025 में श्वेतांबर पर्युषण 21 से 28 अगस्त तक, और दिगंबर दशलक्षण पर्व 28 अगस्त से 6 सितंबर तक मनाएंगे। यह पर्व जीवन को नई दिशा देता है और आत्मा की शुद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
Paryushan Parv 2025: भारत एक ऐसा देश है जहां धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। जैसे हिंदू धर्म में नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा की पूजा और व्रत में बिताए जाते हैं, वैसे ही जैन धर्म में पर्युषण पर्व को तप, ध्यान और क्षमा के साथ मनाया जाता है। यह आत्म-शुद्धि और आत्मनिरीक्षण का सबसे पवित्र अवसर माना जाता है। यह पर्व हमें अपनी गलतियों का एहसास करने, उन्हें सुधारने और सभी से क्षमा माँगने का अवसर देता है।
पर्युषण पर्व 2025 कब से शुरू होगा?
पर्युषण पर्व की तिथियां हर साल चंद्र पंचांग के अनुसार बदलती हैं।
श्वेतांबर संप्रदाय में यह पर्व 8 दिन तक मनाया जाता है और 2025 में 21 अगस्त से 28 अगस्त तक मनाया जाएगा।
वहीं दिगंबर संप्रदाय में इसे दशलक्षण पर्व के रूप में 10 दिन तक मनाया जाता है और यह 28 अगस्त से 6 सितंबर 2025 तक चलेगा।
श्वेतांबर और दिगंबर संप्रदाय की मान्यताएं
श्वेतांबर जैन इस पर्व में कल्पसूत्र, भगवान महावीर के जीवन चरित्र और उनके उपदेशों का वाचन करते हैं। मंदिरों में प्रवचन, ध्यान और उपवास का विशेष महत्व होता है।
दिगंबर जैन इस पर्व को दस दिवसीय दशलक्षण पर्व के रूप में मनाते हैं, जिसमें हर दिन एक विशेष धर्म पर ध्यान दिया जाता है : क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य।
इन दसों धर्मों का अभ्यास आत्मा को विकारों से मुक्त करता है।
क्या होता है पर्युषण में?
पर्युषण का मतलब है : अपने भीतर प्रविष्ट होना, आत्मनिरीक्षण करना और बुराइयों से मुक्त होना।
इस दौरान जैन अनुयायी:
उपवास या एक समय भोजन करते हैं
संयमित जीवन जीते हैं
गुस्से, लोभ, लालच पर नियंत्रण रखते हैं
दूसरों से क्षमा मांगते हैं
प्रवचन सुनते हैं और धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं
अपने कर्तव्यों और जीवनशैली की समीक्षा करते हैं
यह पर्व केवल कर्मों का हिसाब-किताब नहीं है, बल्कि एक नई शुरुआत का मौका है।
मिच्छामि दुक्कड़म्: क्षमा मांगने की परंपरा
पर्युषण का अंतिम दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है, जब हर जैन अनुयायी अपने घर, समाज और दुनिया के हर व्यक्ति से कहता है, “मिच्छामि दुक्कड़म्”, यानी “मेरे द्वारा यदि जाने-अनजाने में कोई गलती या अपराध हुआ हो तो कृपया मुझे क्षमा करें।”
यह एक मानवता की सबसे खूबसूरत परंपरा है, जो सिखाती है कि क्षमा केवल देना नहीं, मांगना भी उतना ही पुण्य का काम है।
उपवास का आध्यात्मिक अर्थ
पर्युषण में उपवास का उद्देश्य केवल भूखा रहना नहीं, बल्कि आत्मा को विकारों से मुक्त करना होता है। कुछ लोग पूरे 8 या 10 दिन तक उपवास करते हैं, कुछ केवल उबला हुआ पानी लेते हैं। यह आत्म-संयम और आत्म-नियंत्रण का श्रेष्ठ उदाहरण है।
आज के युग में पर्युषण का महत्व
जब हमारी जिंदगी भागदौड़ से भरी है, तब पर्युषण हमें ठहरने और भीतर झाँकने का समय देता है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि:
माफ करना कमजोरी नहीं, ताकत है
संयम कोई सज़ा नहीं, बल्कि एक वरदान है
धर्म कोई दिखावा नहीं, बल्कि आचरण है
समापन: चलिए भीतर की यात्रा पर निकलें
पर्युषण केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा की पुनरावृत्ति का उत्सव है। यह हमें याद दिलाता है कि हम केवल शरीर नहीं हैं, हम आत्मा हैं : शुद्ध, शांत और शक्तिशाली।
इस पर्युषण 2025 में आइए हम भी अपनी आत्मा को साफ करें क्रोध, ईर्ष्या, घृणा से।
किसी से मनमुटाव हो तो “मिच्छामि दुक्कड़म्” कहें।
जिनसे जुड़ाव है, उन्हें और गहराई से महसूस करें।
और खुद से मिलें उस रूप में, जैसा भगवान ने हमें बनाया।
