asambhav yuddh - Tenali Rama Story In Hindi
asambhav yuddh - Tenali Rama Story In Hindi

Tenali Rama Story In Hindi : कृष्णदेव राय पालतू जानवर रखने के बेहद शौकीन थे। उन्हें प्रसन्न करने व कुछ पाने के लोभ में लोग अक्सर उन्हें तरह-तरह के पशु-पक्षी लाकर देते। उन्हें बदले में योग्य पुरस्कार भी मिलते थे।

एक दिन हाथ में धनुष-बाण थामें, एक शिकारी दरबार में आया। उसने सिर पर रंग-बिरंगे पंखों का मुकुट पहन रखा था। उसने आदर से सिर झुका कर कहा,

“महाराज! मैं आपके लिए नीलगिरि के घने जंगलों से कुछ तीतर लेकर आया हूँ” उसने थैले से नन्हे तीतर निकालते हुए कहा, “यदि इन्हें सही प्रशिक्षण मिले तो ये अच्छे लड़ाकू तीतर बन सकते हैं।”

“महाराज नन्हें पक्षी देख कर बहुत खुश हुए। उन्होंने वह सब खरीद लिए और दरबारियों से कहा, “एक-एक तीतर घर ले जाओ और उसे लड़ना सिखाओ। देखते हैं, किसका तीतर लड़ाई में जीतेगा।” प्रमुख दरबारी आदेश सुनकर हैरान हो गया वह बोला –

“महाराज! एक तीतर अकेले ही लड़ाई में माहिर कैसे हो सकता है।” यह तो नामुमकिन है! दूसरे दरबारियों का भी यही कहना था।

महाराज! मुस्कुरा कर बोले, “मैं यही तो देखना चाहता हूँ। कोई भी अपना पक्षी दूसरे को नहीं देगा।”

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दरबारियों के पास पक्षी घर ले जाने के सिवा कोई उपाय नहीं बचा।

कुछ दिन बीत गए, एक दिन महाराज को अचानक तीतरों की याद आई। उन्होंने दरबारियों से पूछा कि पक्षी लड़ने को तैयार हुए।

सभी दरबारी चुप थे। मुख्य दरबारी ने हिम्मत बटोरकर कहा, महाराज! हमने पूरी कोशिश की पर अकेले तीतर को लड़ना नहीं सिखा पाए।

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अब राजा ने तेनालीराम से पूछा। वे चेहरे पर नटखट मुस्कान लिए कोने में बैठे थे। ‘‘महाराज! मेरे तीतर ने लड़ाई के कई गुर सीख लिए हैं।’’

“यह नहीं हो सकता।” तेनालीराम से जलने वाले दूसरे दरबारी बोले। सच्चाई जानने के लिए राजा ने अगले दिन सभी दरबारियों को अपने पक्षियों के साथ बाग में आने को कहा ।

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वे सभी अपने-अपने तीतर ले आए। लड़ाई शुरू हुई तो सब हैरान रह गए। तेनालीराम का तीतर सारे पैतरे लगाकर पूरी ऊर्जा से दूसरे तीतरों का मुकाबला कर रहा था। उनके तीतर मुँह के बल गिरे।

दरबारी भी हैरान थे कि तेनालीराम ने यह कैसे कर दिखाया। महाराज ने पूछा, “तेनालीराम! तुमने यह किया कैसे?”

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“महाराज! मैं हर रोज इसे शीशे के सामने छोड़ देता। वह गलती से शीशे में अपनी परछाई को दूसरा तीतर समझ कर लड़ने लगा। धीरे-धीरे- इसने लड़ाई के सारे गुर खुद ही सीख लिए।

महाराज उत्तर से बहुत प्रसन्न हुए वे बोले, ‘‘ तुम सभी दरबारियों में चतुर हो।’’ उन्होंने उन्हें सोने के सिक्कों से भरी थैली इनाम में दी। ईर्ष्यालु दरबारी एक-दूसरे को कनखियों से देखते रह गए।

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