Panchtantra ki kahani-मेरा कलेजा तो पेड़ पर है!

समुद्र के किनारे जामुन का एक खूब बड़ा सा पेड़ था । उस पर एक बंदर रहता था । जिसका मुँह कुछ ललछीहाँ था । इसीलिए उसका नाम पड़ गया रक्तमुख । जिस जामुन के पेड़ पर वह रहता था, उसके फल बहुत मीठे थे । बंदर उन्हें मजे से खाता और वहीं उसने डेरा जमा लिया था ।

एक दिन एक मगरमच्छ समुद्र से निकला और किनारे पर आकर उसी जामुन के पेड़ के नीचे आकर सुस्ताने लगा ।

रक्तमुख बंदर ने सोचा, ‘अपने आप यहां आ गया यह मगरमच्छ मेरे लिए तो किसी मेहमान से कम नहीं है । मैं खुद तो मीठे-मीठे जामुन खाता ही हूं, क्यों न इसे भी खिलाऊँ?’

यह सोचकर बंदर ने पेड़ पर से मीठे-मीठे जामुन गिराने शुरू कर दिए । मगरमच्छ ने उन्हें खाया, तो वे उसे बड़े स्वादिष्ट लगे । उसने ऐसे बढ़िया जामुन पहले कभी नहीं खाए थे । उसने खूब जामुन खाए और कुछ अपनी पत्नी को खिलाने के लिए साथ ले लिए ।

अब तो मगरमच्छ रोज वहाँ आता । खुद भी मीठे-मीठे जामुन खाता, साथ ही अपनी पत्नी के लिए भी ले जाता ।

होते-होते बंदर और मगरमच्छ में खूब पक्की दोस्ती हो गई और दोनों एक-दूसरे से खूब बातें करते । इससे बंदर का अकेलापन और उदासी दूर हो गई । मगरमच्छ को भी बड़ा अच्छा लगा कि एक इतना प्यारा और सच्चा दोस्त उसे मिल गया ।

एक दिन की बात, मगरमच्छ वे मीठे -मीठे जामुन लेकर घर गया । उसकी पत्नी ने उन्हें खाया तो बहुत हैरान हुई । बोली, “तुम ये मीठे-मीठे फल कहाँ से लाते हो? इनमें तो बिल्कुल अमृत जैसा स्वाद है ।”

सुनकर मगरमच्छ ने उसे अपने दोस्त रक्तमुख बंदर के बारे में बताया । बोला, “रक्तमुख बड़ा ही प्यारा बंदर है । उससे मेरी पक्की दोस्ती हो गई है । वही मुझे ये मीठे-मीठे फल देता है ।”

सुनकर मगरमच्छनी बोली, “हे प्रिय, जो बंदर रोज-रोज ऐसे मीठे-मीठे जामुन खाता है, उसका दिल भी कितना मीठा होगा । मैं उसका मीठा दिल खाना चाहती हूँ । आज जब तुम जाओ, तो उसका दिल भी ले आना, मैं उसे खाने के लिए तरस रही हूँ ।”

सुनकर मगरमच्छ अवाक् रह गया । बोला, “तुम यह क्या कह रही हो? वह बंदर तो मेरा पक्का दोस्त बन गया है । दुनिया में किसी सच्चे मित्र का मिलना बड़ा ही मुश्किल है । वह किसी बड़े से बड़े खजाने से भी बढ़कर है और तुम उसे मारने की बात कह रही हो । यह तो बड़ी नीचता है, आगे से ऐसी बात मत कहना ।”

सुनकर मगरमच्छनी को बड़ा गुस्सा आया । वह बिफरकर बोली, “मुझे तो लगता है, वह जरूर कोई बंदरिया है जिससे तुम प्रेम करने लगे हो । तुम मुझसे यह बात छिपा रहे हो । उस बंदरिया से प्रेम के कारण ही तुम मेरी यह छोटी सी इच्छा पूरी नहीं कर रहे हो । वरना आज तक तुमने मेरी कोई बात नहीं टाली ।”

कहकर मगरमच्छनी जोर-जोर से रोती हुई आँसू बहाने लगी ।

अब मगरमच्छ भला क्या कहता । दुखी होकर उसने कहा, “ठीक है, तुम नहीं मानती तो कल मैं जरूर बंदर को अपने साथ ले आऊँगा तब तुम उसका दिल निकालकर खा लेना ।”

अगले दिन मगरमच्छ समुद्र के किनारे आकर उस जामुन के पेड़ के पास गया तो उसका चेहरा एकदम बुझा हुआ था । उस पर अजब सी उदासी थी । उसे देखकर बंदर ने पूछा, “भाई क्या बात है, आज तुम बड़े दुखी लग रहे हो ।” इस पर मगरमच्छ बात बदलकर बोला, “अरे मित्र, असली बात यह है कि मगरमच्छनी तुमसे मिलना चाहती है । उसने मुझसे कहा है कि अपने प्यारे मित्र को एक दिन जरूर मुझसे मिलवाने लाना । पता नहीं, तुम मेरे साथ चलोगे कि नहीं, यही सोचकर मैं दुखी हूँ ।”

बंदर बोला, “तो इसमें इतना परेशान होने की क्या जरूरत है? कल भाभी को यहाँ ले आना । मैं उनसे यहीं मिल लूँगा । उनसे दो-चार बातें कर लूँगा और मीठे-मीठे जामुन भी खिलाऊँगा ।”

मगरमच्छ बोला, “नहीं भई वह तो अपने घर में ही तुम्हारा स्वागत- सत्कार करना चाहती है । और रही बात पानी की, तो मेरा घर समुद्र के अंदर एक बढ़िया से टापू पर है । वहाँ तुम मजे से रह लोगे । मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बैठाकर वहाँ ले चलता हूँ ।”

इस पर बंदर खुशी-खुशी राजी हो गया और मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर चल दिया ।

लेकिन समुद्र में काफी दूर जाने के बाद भी टापू नहीं दिखाई दिया, तो बंदर ने पूछा, “मित्र, वह टापू कहाँ है जिस पर तुम्हारा घर है । अभी तक तो दिखाई नहीं दिया!”

मगरमच्छ ने सोचा, ‘अब तो यह बंदर पानी के अंदर है और पूरी तरह फँस ही चुका है । कहीं भाग तो पाएगा नहीं । तो इसे सही बात क्यों न बता दी जाए ताकि मरने से पहले यह ईश्वर का स्मरण कर ले ।’

इसलिए मगरमच्छ ने कहा, “सुनो मित्र, वह टापू कहीं नहीं है । मैंने तो तुमसे झूठ-मूठ ही कहा था । मेरा घर तो गहरे पानी में ही है । वहीं मेरी पत्नी मगरमच्छनी रहती है जो तुम्हारा दिल खाना चाहती है । इसलिए मैं तुम्हें अपने साथ ले आया हूँ ।”

बंदर समझ गया कि मगरमच्छ ने दोस्ती के नाम पर उसके साथ धोखा किया है । अब तो जान बचानी मुश्किल है । पर फिर उसने सोचा कि संकट के समय बुद्धि से काम लिया जाए तो बड़े से बड़ा संकट भी टल जाता है ।

कुछ सोचकर उसने कहा, “अरे मित्र, तुमने पहले क्यों नहीं बताया? अपना दिल तो मैं उस पेड़ पर ही छोड़ आया हूँ जिस पर मैं रहता हूँ । तुमने पहले बताया होता तो मैं खुशी-खुशी वह दिल साथ लेकर चलता । भला भाभी की यह छोटी सी इच्छा मैं पूरी न कर पाऊँ, तब तो मेरे जीवन को धिक्कार ही है ।”

बंदर की बात सुनकर मगरमच्छ को यकीन नहीं आया । बोला, “यह कैसे हो सकता है? हम सबका दिल तो हमारे अंदर ही होता है । तुम कैसे कह रहे हो कि तुम उसे पेड़ पर टाँग आए हो?”

इस पर बंदर ने हँसते हुए कहा, “हाँ मित्र, यही तो बात है । हम बंदर अपना दिल जहाँ रहते हैं, वहीं टाँग देते हैं । हमारे लंबे जीवन और स्वास्थ्य का यही राज है । अब झटपट चलो, ताकि मैं वह दिल ले आऊँ और जल्दी से जल्दी उसे भाभी को खिला सकूँ ।”

सुनकर मगरमच्छ तेजी से किनारे की ओर चल पड़ा । जैसे ही वह किनारे पर पहुँचा, बंदर ने तेजी से छलाँग लगाई और पेड़ पर जा पहुंचा । अब उसे मगरमच्छ का कोई डर नहीं रहा ।

मगरमच्छ कुछ देर तक बंदर का इंतजार करता रहा । फिर बोला, “जल्दी करो मित्र जल्दी से अपना दिल ले लो, ताकि फिर मैं तुम्हें लेकर झटपट समुद्र में अपने घर जाऊँ । मगरमच्छनी बेचारी भूखी होगी । उसने तो अनशन कर रखा है कि जब तक मैं बंदर का दिल नहीं खाऊँगी, मैं कुछ और खाऊँगी ही नहीं ।”

सुनकर बंदर ने मगरमच्छ को फटकारते हुए कहा, “मैंने तो तुम्हें मित्र समझा था, पर तुम मित्रता के नाम पर कलंक हो, जो अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए मुझे मार डालना चाहते हो । तुमने मेरी दोस्ती के साथ छल और धोखा किया है । अभी इसी वक्त यहाँ से चले जाओ और कभी इधर आने की जुर्रत मत करना, वरना मैं यहीं से पत्थर मार-मारकर तुम्हारी हालत खराब कर दूँगा ।”

सुनकर मगरमच्छ ने पैंतरा बदला । बोला, “अरे मित्र, मैं तो हास-परिहास कर रहा था । तुम इसका बुरा मान गए और इसे क्या सच्ची बात समझ बैठे । असल में दिल-विल खाने की कुछ बात नहीं है । बस, मगरमच्छनी तुमसे एक बार मिलना चाहती है । जल्दी से मेरी पीठ पर बैठो, ताकि मैं तुम्हें अपने घर ले जा सकूँ और वहाँ तुम्हारा स्वागत-सत्कार करूँ । “

इस पर बंदर और अधिक बिगड़कर बोला, “ओ रे धोखेबाज, अब तू कुछ भी कह । मुझे तेरी बातों पर यकीन नहीं आएगा । मैं समझ गया हूँ कि तू नीच है और मित्रता के लायक नहीं है । इसलिए झटपट यहाँ से दफा हो जा । मैं अब तेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहता ।”

मगरमच्छ सिर झुकाए हुए वहाँ से चला गया । और फिर कभी वहाँ लौटकर नहीं आया ।

ही, बंदर मन ही मन अपने भाग्य को सराहता हुआ यह जरूर कहता था, “अगर मैंने भीषण विपत्ति के समय बुद्धि से काम न लिया होता, तो आज शायद मैं जीवित ही न होता ।”