Moral Story: शिवाली का आज काम करने का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था। उसके सिर में भी दर्द था और शरीर भी थोड़ा बहुत तप रहा था इसीलिए शायद उसे आज बहुत थकान महसूस हो रही थी । उसने कुछ खाया पिया भी नहीं था। पूरा घर बिखरा पड़ा था, बैड पर बिछी चादर सिलवटों में लिपटी थी। रसोई में बर्तन पड़े थे। घर का सारा सामान जहां—तहां पड़ा था और प्रताप को तो बिखरा पड़ा घर बिल्कुल भी पसंद नहीं था। लेकिन फिर भी शिवाली ने अपनी हालत के चलते सोचा —” कर लूंगी प्रताप के आने से पहले” और वह बैड पर लेट गई। लेटते ही न जाने कब उसे इतनी गहरी नींद आ गई जैसे वो न जाने कितने दिनों से सोई ही नहीं हो। अचानक दरवाजे की घंटी बजी तो शिवाली की नींद खुली और जैसे ही उसकी नजर दीवार पर टंगी घड़ी पर पड़ी तो वह यह देखकर कर घबरा गई सन्न रह गई शाम के सात बज चुके थे। लगभग यही समय तो प्रताप के आने का होता है यह सोचकर वह दौड़कर दरवाजा खोलने गई। देखा तो प्रताप आ चुके थे । घर कि हालत के बारे में सोचकर शिवाली की तो जैसे जान ही अटक गई ।
प्रताप अंदर आते ही रोज की तरह हाथ मुंह धोने बाथरूम में चले गए।
शिवाली प्रताप से कुछ कह नहीं पा रही थी लेकिन फिर भी उसने प्रताप के बाहर आते ही चाय के लिए पूछा ।
प्रताप ने चाय के लिए हां कह दी शिवाली झट से चाय बना लाई और बोली —”प्रताप आज घर सब बिखरा पड़ा है मैं ….।” उसकी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि प्रताप बोल पड़ा, “कोई बात नहीं शिवाली, मैं जानता हूं तुम्हें इस घर की मुझसे ज्यादा चिंता रहती है। तुम्हें खुद साफ सफाई करके रहने की आदत है। जरूर तुम्हें कोई परेशानी हुई होगी या तुम्हारी तबियत ठीक नहीं होगी इसीलिए तुम आज घर का काम नहीं कर पाई होगी। कोई बात नहीं।”
इतना सुनते ही शिवाली को यकीन नहीं हुआ कि प्रताप ऐसा कह रहे हैं, उसके लिए इतना सोचते हैं उसे इतना समझते हैं।
कुछ बातें कोई बिना कहे समझ जाता है तो कितना अच्छा लगता है और शिवाली की तो मानो सारी थकान ही उतर गई। तबियत ही सही हो गई।
