Hindi Motivational Story: रात के ग्यारह बजे रहे थे कमल अभी तक ऑफिस से नहीं आया था।शुक्ला जी हर आहट पर बाहर निकल आते।उन्होंने दरवाजे को धीरे से धकेला सड़क पर सन्नाटा पसरा हुआ था। अब तो उनके साथ-साथ उस दरवाजे को भी आदत पड़ गई थी कमल का इंतजार करने की। जैसे-जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती उनकी घबराहट बढ़ती जाती।तभी एक गाड़ी अंधेरे को चीरते हुए तेज आवाज के साथ गली से गुजरी शुक्ला जी की छड़ी उस आवाज को सुन ठिठक गई।
“भौं-भौं!”
गली कुत्तों की आवाज़ से भर गई ।कुत्तों ने उस गाड़ी का दूर तक पीछा किया और गाड़ी को गली के मोड़ तक छोड़कर वापस आ गए। इन कुत्तों को भी न जाने आती-जाती कारों से क्या दुश्मनी होती है। सम्भवतः कार के आवागमन से उनकी नींद में ख़लल पड़ता था या फिर उनकी तेज़ रफ़्तार उनके जीवन की जटिलताओं को और उभार देती थी और वह मन की तसल्ली के लिए दौड़ा कर अपनी नजरों से दूर करने का प्रयास करते पर कहते हैं आँखें मूंद भर लेने से समस्या हल नहीं हो जाती हैं।
शुक्ला जी ने गहरी सांस ली।न जाने कितनी ही रातें कितने ही पल उन्होंने कमल के इंतज़ार करने में इस तरह से बिताई थीं।तभी एक तेज़ रौशनी घर की दीवार पर पड़ी और धीरे-धीरे लंबी होती चली गई गाड़ी के रुकने की आवाज से शुक्ला जी अपनी छड़ी को टेकते-टेकते गेट तक आ गए।
सफेद शर्ट पर नीली पेंट पहना हुआ कमल कितना थका हुआ महसूस हो रहा था। टाई गले में झूल रही थी उसके जीवन के ख्वाहिशों और सपनों की ही तरह…कितनी बार समझाया था उन्होंने कमल को!
“ख्वाहिशों और सपनों के पीछे इतना न भागो वरना जिंदगी तुम्हें पूरी उम्र भगाती रहेगी।”
सच ही तो कहते थे वो उसकी जिन्दगी ख्वाहिशों और सपनों के पीछे भागते-भागते पेंडुलम ही बन कर रह गई थी।
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बचपन में अपनी माँ के आँचल को पकड़े-पकड़े पूरे घर में घूमने वाला कमल अंधेरे से इतना डरता था कि बाथरूम भी अकेले नहीं जाता था।आज वही कमल ऑफिस से आधी रात को आता था।ख्वाहिशों और सपनों के घनघोर अंधेरों ने उसे चारों तरफ से घेर रखा था और उसके मजबूत पंजों ने अपने चंगुल में दबा लिया था।हर दूसरे साल थोड़े और कि चाहत में वह कम्पनी बदल देता।उसकी ख्वाहिशों ने थकना और रुकना कहाँ सीखा था।
कमल ने बैग कंधे पर लादा और कार को बंद करके जैसे ही आगे बढ़ा सामने शुक्ला जी खड़े थे।
“क्या हुआ कमल आज बहुत देर कर दी?”
“पापा मार्च चल रहा है ऑफिस में इस वक्त बहुत काम है पर आप क्यों जाग रहे हैं।”
कार के हॉर्न की आवाज सुन निधि भी घर से बाहर निकल आई थी। शुक्ला जी को समझ में नहीं आ रहा था कि वह कमल की बात का क्या जवाब दें।
“तुझे बड़ी देर हो गई थी मुझे चिंता से नींद नहीं आ रही थी…”
शुक्ला जी की बात सुन कमल चिढ़ गया और हत्थे से उखड़ गया।
“आप भी न पापा रोज तो इतने बजे आता हूँ कितनी बार कहा है सो जाइए,आप क्यों परेशान होते हैं। निधि है न…आप बिल्कुल अम्मा की तरह होते जा रहे हैं, वो भी इसी तरह दरवाजे पर बैठकर इंतज़ार करती रहती थी।
बुढ़ापे में नींद न आना तो आम बात है पर आपके दरवाजे पर बैठने से मैं कोई उड़कर थोड़ी न आ जाऊँगा।”
कमल शुक्ला जी के जवाब का इंतज़ार किए बिना घर के भीतर चला गया। शुक्ला जी ने सोचा,”सच ही तो कह रहा है कमल वो आखिर क्यों परेशान होते हैं निधि है न…”
आज शुक्ला जी को शुक्लाइन की बहुत याद आ रही थी,जब तक कमल न आ जाये वो भी बेचारी कहाँ सो पाती थी,कितनी बार तो अपने लाल का इंतज़ार करते-करते यही दरवाजे पर ही लुढ़क जाती। शुक्ला जी ने कितनी बार कहा था,”अब उसकी शादी हो गई है, उसकी चिंता करने वाले घर आ चुकी है। तुम क्यों चिंता करती हो।” पर उसकी चिंता कभी खत्म नहीं हुई।
कमल की गाड़ी गेट पर रुकी,दरवाजे के बाहर बहुत भीड़ लगी थी,किसी अनहोनी की आशंका से कमल तेजी से भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ा।निधि एक ओर खड़ी सुबक रही थी।शुक्ला जी वहीं दरवाजे पर टेक लगाए बैठे हुए था,न जाने कब उनके प्राण-पखेरू हो चुके थे।कमल ने आज सचमुच बहुत देर कर दी थी।शुक्ला जी का चेहरा शांत था।बेटा लौटा कि नहीं अब यह चिंता शुक्ला जी की मृत्य के साथ ही समाप्त हो चुकी थी।वह एक गहरी नींद में सो रहे थे ऐसी नींद जो अब कभी नहीं टूटेगी। सुकून की नींद…
