रोहित का संकल्प
Rohit Ka Sankalp-Balman ki Kahaniya

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

रोहित की उम्र लगभग दस-बारह साल की होगी। उसका नामांकन जीविका दीदी के सहयोग से गाँव के ही सरकारी विद्यालय में करवाया गया था। उसकी दोस्ती मुहल्ले के कुछ शरारती बालकों से हो गयी थी, जो न तो खुद पढ़ते थे, न ही अपने मित्रों को पढ़ने देते थे। वे अक्सर कक्षा में बस्ता रख, दिन भर किसी बगीचे में गुल्ली-डंडा या कंचे खेलते, तालाब में मछलियां पकड़ते, नहाते या खेत से मटर की छीमियाँ तोड़-तोड़कर खाते। शाम को छुट्टी के समय क्लास के अपने वफादार साथी से बस्ता माँगकर पढ़ाकू बालक बन घर को लौट आते। माँ अक्सर कहती… बबुआ, मैडम जी ने जो सबक दिया है, उसे बना लो। मन से पढ़ो, ताकि इस दु:खदायी जिन्दगी के दलदल से बाहर निकल सको। लेकिन रोहित को ये सब बातें जरा न सुहातीं। यह सब सुन वह झल्ला उठता। सच तो ये था कि वह पढ़ाई के सिवा बाकी के सारे काम दिल लगाकर किया करता था।

एक दिन ऐसा करने से पूर्व उसके मन में अपराध बोध जग गया। वह सोचने लगा… अम्मा दिन भर काम करती है, तरह-तरह के खिलौने और मिठाई लाकर देती है, भगवान से प्रार्थना करती है, लेकिन भगवान तो कान में तेल डाले बैठे हैं। अम्मा की प्रार्थना पर विचार ही नहीं करते। अगर मैं यही करता रहा, तो एक दिन पक्का गंदा बच्चा बन जाऊँगा। जिस दिन अम्मा को पता चलेगा कि मैं स्कूल से गायब रहता हूँ, उस दिन अम्मा पर क्या गुजरेगी? फिर तो अम्मा बहुत रोयेगी न! यह ख्याल आते ही उसकी आँखों के समक्ष माँ का उदास चेहरा आ गया।

वह तत्क्षण बुदबुदाया… मुझे ईश्वर नहीं, खुद ही खुद को बदलना होगा। ईश्वर भी उसी की सहायता करता है, जो अपनी सहायता खुद करता है।

रोहित ने अपने कान पकड़े और जोर से संकल्प को दोहराया… अम्मा मुझे माफ कर दो। अब कभी भी मैं स्कूल से नहीं भागूंगा। अब मैं मन लगाकर पढ़ाई करूँगा।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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