रिवार्ड-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Reward Story
Reward

Reward Story: फोन की घंटी लगातार बज रही थी। सुधा ने देखा तो जल्दी से उठा लिया। फोन विनायक का था । विनायक यानी उसका बेटा! सुधा के हेलो कहते ही विनायक ने कहना शुरू किया “माँ, आपके आशीर्वाद से आज सिटी हॉस्पिटल में मेरी नौकरी लग गई । मैंने अपने इंटरव्यू निकाल लिया । बस मैं घर पहुंच रहा हूं फिर हम दोनों मिलकर सेलिब्रेट करेंगे !” यह सुनते ही सुधा की आंखों से आंसू बहने लगे। उसका स्वर भर्रा गया। वह कुछ भी नहीं बोल पा रही थी। उसे मौन देखकर विनायक ने फिर से कहा “माँ, कुछ तो बोलो !आशीर्वाद नहीं दोगी!” ” जीते रहो मेरे लाल !”उसने इतना तो बोला लेकिन उसके बाद सारे शब्द उसकी सिसकियों में गुम हो गई। विनायक अपनी मां की जज्बात को समझता था। उसने कहा ” माँ मैं बस दो घंटे में घर पहुंच रहा हूं । पहले यहां की सारी फॉरमिलिटिज पूरी कर दूँ। मैनेजमेंट ने कहा है कल से ही ज्वाइन करना है, तो आज पक्का हम दोनों का सेलिब्रेशन!” ” हाँ,!” सुधा ने फोन रख दिया। इतने दिनों की अथक मेहनत के बाद आज विनायक में उसे पंख दे दिए थे ,हजारों सपने देखने के लिए ! वह चाहती थी कि जल्दी से रसोई में जाए और विनायक की पसंद की मिठाई बना ले लेकिन उसका मन काबू में नहीं था। अभी वह विचारों में घूम ही थी कि कमरे की खिड़कियों के पल्ले अचानक खुलने लगे । वह खिड़की पर आकर खड़ी हो गई ।
बाहर तेज हवा बह रही थी । हवाओं के साथ उसके विचार भी उतनी ही तेजी से पीछे की तरफ भाग रहे थे। “मालती… मालती…!, जब उसके पिता उस दिन उसकी माँ को आवाज देते हुए घर में घुसे थे। “क्या है जी..!” “मालती हम सुधा का रिश्ता तय कर आए हैं। बहुत ही अच्छा लड़का मिला है। बहुत बड़े अस्पताल में डॉक्टर है। छोटा परिवार है…,शादी में कोई डिमांड नहीं है। हमारी बेटी तो सुखी रखेगी!” सुधा ने बड़ी शक्ति लगाकर अपनी शादी का विरोध किया था । “पापा, अपने पैरों पर खड़ी होउंगी , उसके बाद ही शादी ब्याह के बारे में सोचूंगी।”

परंतु उसके पिता ने उसकी बात काटते हुए कहा “किस्मत से इतना अच्छा लड़का मिला है।
इतना बड़ा डॉक्टर है। उसके आगे तुम काम क्या करोगी? आराम से जिंदगी भर एश करते रहना ।बस जितनी डिग्री है इतनी काफी है।” और फिर विकास की दुल्हन बन कर उसकी घर गृहस्थी बसाने उसके घर आ गई । एक बहुत ही बड़े अस्पताल में विकास डॉक्टर था। विकास ने अपने पिता के दबाव में आकर उससे शादी किया था । मन से कभी भी उसने सुधा को अपनी पत्नी नहीं माना था । पहले ही दिन से वह उसके साथ बदसलूकी करता और उखड़ा उखड़ा रहता था। लगभग एक साल बाद उस दिन सुधा को याद है एक ऑफिस में टूर के बाद विकास घर लौटा था। सुधा प्रेग्नेंट थी वह बड़ी खुशी के साथ अपने प्रेगनेंसी के बारे में बताने के लिए तैयार खड़ी थी। जैसे ही विकास घर में आया कमरे में आया उसने बड़ी खुशी से उससे लिपट कर उसे अपनी खुशी जाहिर किया। यह सुनते ही विकास ने उसे जोरों से धक्का दे दिया और कहा “अपनी गंवार वाली हरकत से तुम बाज नहीं आओगी! मैंने कहा था अभी 3 साल तक कोई बच्चा नहीं चाहिए मुझे। तुम मेरे साथ कहीं जाने के लायक ही नहीं हो और ना साथ रहने के काबिल ! अच्छा होगा कि हम दोनों अलग हो जाएं! तुम अपने रास्ते चलो और मैं अपने रास्ते! मुझे यह बच्चा नहीं चाहिए। यदि तुम्हें चाहिए तो तुम यहां से चली जाओ, मैं तुम्हारा खर्चा दे दूंगा और यदि मेरे साथ रहना है तो तुम्हें यह बच्चा गिराना होगा।” विकास एक नंबर का सनकी था और बहुत ही ज्यादा एरोगेंट। उसे अपने प्रोफेशन पर बहुत ही घमंड था। एक मध्यम वर्गीय परिवार की एक आम लड़की थी। उसे जरा भी तवज्जो नहीं देना चाहता था। सुधा आश्चर्य चकित होकर उसका चेहरा देखने लगी। उसने रोते हुए कहा ” विकास, आखिर बात क्या है, मैंने तो तुम्हें एक खुशखबरी सुनाई थी!” विकास में उसी तरह एरोगेंसी से बोलते हुए कहा “सुधा,मैंने पहले ही कहा था कि तीन साल तक मुझे कोई बच्चा नहीं चाहिए । मैं अपनी हाई सोसाइटी में गंवारों की तरह हरकत नहीं कर सकता। लोग मेरे ऊपर हँसेंगे।” सुधा हतप्रभ हो गई। उसने कहा “मैं बच्चा नहीं गिरा सकती!”

विकास –“तो फिर अलग हो जाओ!” सुधा ने भी अपने स्वाभिमान को साथ लेकर विनायक को अपनी कोख में लेकर घर से बाहर निकल आई । एक मिडिल क्लास फैमिली में एक लड़की बोझ ही होती है , फिर एक ब्याहता महिला और वह भी एक अजन्मे बच्चे के साथ यदि मायके की दहलीज में आ जाए , यह किसी के गले नहीं उतर पा रही थी। सुधा को इस बात का एहसास था। उसने अपनी डिग्री को इस्तेमाल किया ।वह सिंपल ग्रेजुएट महिला थी। उसके बहुत सारे सपने थे जो कुचल चुके थे। पहले उसके ट्यूशन पढ़ाया। ट्यूशन के साथ उसकी सारी पढ़ाई की रिवीजन होती गई । फिर उसने प्री प्राइमरी स्कूल ज्वाइन किया। वहां से उसने टीचर्स ट्रेनिंग की डिग्री और फिर बाकायदा टीजीटी और पीजीटी करने के बाद एक अच्छे स्कूल में पढ़ाने लगी। तब तक स्कूल प्रशासन की मदद से और परिवार वालों की मदद से विनायक उसने जन्म भी दिया। उसने ठान लिया था कि विनायक को वह हर हाल में एक सफल डॉक्टर ही बनाएगी ,चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े ! विकास उसके दिल में एक गहरी टीस बनकर बैठा हुआ था ।

खिड़की के पल्ले खुल रहे थे और बंद हो रहे थे! सुधा अपने ख्यालों में खोई हुई थी। विनायक घर पहुंच चुका था। दरवाजा खुला था। वह कमरे में अंदर आया उसने अपनी मां को देखा कि वह खोई हुई है। उसने उसे कंधे से पकड़कर हिलाया। सामने विनायक को देखकर सुधा की !”रुलाई फूट पड़ी । उसने उसे गले से लगा लिया और बिलख उठी। “आज तुम्हारे पापा के दिए दंश से मैं उबर गई बेटा…!, इतने बड़े अस्पताल में तुम्हें नौकरी मिल गई तेरे अहंकारी पिता को मेरा जवाब मिल गया होगा!”