मोक्ष—गृहलक्ष्मी की कहानियां: Moksh Hindi Story
Moksh

Hindi Story: “विनायक सर, आपको क्या हुआ?आप ठीक तो है!”

डॉ विनायक को उन्हीं के टेबल पर सिर झुका कर बैठे हुए देखकर उनके कंपाउंडर विनीत ने कहा।

“हां ठीक है!, बड़ी मुश्किल से विनायक ने सीधा होते हुए कहा।

“पर मुझे लग रहा है कि आपकी तबीयत ठीक नहीं है?”

” नहीं नहीं मैं ठीक हूं!,विनायक ने विनीत की बात काटते हुए कहा।

तुम ड्राइवर को बोलो गाड़ी निकाल लाए…। अब कोई पेशेंट नहीं आएगा। आएगा तो मना कर देना।… 9:00 बजने वाले हैं!”विनायक ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा।

” जी सर!, विनीत ने कहा फिर उसने विनायक के ड्राइवर को फोन कर गाड़ी लाने के लिए बोल दिया।

थोड़ी देर में डॉ विनायक अपने घर के लिए रवाना हो गए विनीत को क्लीनिक बंद करने के लिए बोलकर।

9:00 बज चुके थे। क्लीनिक बंद होने का समय हो ही चुका था लेकिन ऐसा पहली बार हुआ था की क्लीनिक खुली थी और डॉ विनायक घर जा चुके थे।

“पता नहीं माजरा क्या है?” विनीत ने सोचा और फिर क्लीनिक बंद करने की तैयारी करने लगा। उसने स्विच ऑफ किया। अलमारी में ताले लगाए। क्लीनिक रूम को लॉक किया और फिर शटर डाउन कर अपने घर के लिए निकल गया।

आज वह डॉक्टर विनायक के लिए बहुत ही ज्यादा चिंतित था।

डॉ विनायक खुद भी बहुत ज्यादा चिंतित थे। पहली बार पूरी जिंदगी में ऐसा अनुभव आया था जो उन्हें हिला कर रख दिया था। घर पहुंचने के बाद भी वह नॉर्मल नहीं हो पाए।

उन्होंने अपने रसोईये से कहा

” मैं नीचे हॉल में खाने नहीं आऊंगा। मेरा खाना ऊपर ही पहुंचा देना।” यह बोलकर वह अपने कमरे में सीधे चले गए।

वह ज्यादातर थक हार कर लौटते थे। घर में कभी कभार ही उनकी पत्नी और बच्चों से रात में मुलाकात होती थी।
वह ज्यादातर अकेले खाना खाते थे और थोड़ा टहलने के बाद वह दवा लेकर सो जाया करते थे।

आज उनकी दिनचर्या बिल्कुल ही बिगड़ी हुई थी।

विनायक अपने कमरे में आने के बाद कपड़े बदलकर अपने बेड पर लेट कर टीवी ऑन कर दिया।

लगातार कई चैनल बदलने के बाद उनकी नजर एक टीवी सीरियल पर रुक गई। यहां गौतम बुद्ध की कहानी दिखाई जा रही थी।
गौतम बुद्ध के तत्व मीमांसा में विनायक दो पल के लिए खो से गए। उनके ज्ञान मीमांसा को सुनकर मन की आंखों से अविरल आंसुओं की धारा बहने लगी।

उधर विनीत में से रहा नहीं गया। उसने रचना यानी डॉ विनायक की पत्नी को फोन कर सारी बातें बत दिया।

उसने फोन कर कहा
” साहब की तबीयत ठीक नहीं है!आज वह खोए हुए से थे।”

रचना को यह पता नहीं था। वह हैरान रह गई। उसने कहा
” मैं पूछ कर आती हूं!”
वह दूसरे कमरे में टीवी देख रही थी। रचना विनायक के कमरे में आई।

उसने देखा विनायक टीवी को देख रहे हैं और उनकी आंखों से आंसू बहते जा रहे हैं।

रचना को कुछ समझ नहीं आया.. आखिर हुआ क्या है !!

वह विनायक के बगल में आकर बैठ गई। उसने लाइट ऑन किया और विनायक के हाथ पकड़ कर बोली

” क्या बात है डॉक्टर साहब?आपकी आंखों से आंसू क्यों आए?”

विनायक संभल नहीं पाए। अपनी पत्नी का स्नेहिल स्पर्श पाकर भरभरा कर रोने लगे।
उन्होने कहा
“रचना वह लोग मुझे मार डालेंगे!!”

“क्या हुआ डॉक्टर साहब?कौन आपको कौन लोग मार डालेंगे? आप किससे,.. क्यों परेशान हो रहे हैं… बताइए ….क्या बात है?” उनके बालों पर हाथ फिराते हुए बोली।

विनायक थोड़ा घबराते हुए बोले
“रचना तुम्हें याद है करीब 4 दिन पहले कुछ लोग घर पर आए थे?”

“हां हां मुझे याद है वह लोग कह रहे थे कि कुछ जरूरी काम है..?”

“वह लोग चाहते हैं कि मेरे अस्पताल में एडमिट गोगाजी को मैं स्लो प्वाइजनिंग देते जाऊं..!”

“क्या…!,रचना जोर से चीखती हुई बोली…वही गोगाजी ,सोशल वर्कर…!”

“हाँ, वही।”

“मगर क्यों भला?वह तो बहुत ही नेक और सहृदय व्यक्ति हैं!भला उनका कौन दुश्मन बन गया?”

” गोगाजी एक बड़े पेट्रोलियम विभाग के मैनेजर होकर रिटायर हुए थे।उसके बाद उन्होंने घर घर शिक्षा और लड़कियों की शिक्षा के लिए खूब कैंपेन और काम किया था।
इसके बदले उन्हें सरकार से और कई जगहों से खूब डोनेशन मिले।
अब उनके बच्चों की निगाहें उन संपत्ति पर पड़ी हुई हैं।वे लोग चाहते हैं कि गोगाजी चल बसें और उनके सारे फंड ये लोग अपने नाम कर लें…!”

“हाँ, एक बार गोगाजी चल बसे त़ो फिर उन्हें मिले सारे फंड ये लोग पचा लें…!!,छी…छी…!,क्या मानसिकता आ गई है लोगों की।…बाप बीमार होकर अस्पताल में पड़ा है और बच्चों की लालच उन्हें अंधा कर दिया है..!”

विनायक मरे स्वर में बोले”उन लोगों ने मेरे इंकार करने पर मुझे जान से मारने की धमकी दी है…!”

“भला ये भी कोई बात है…!”रचना तैश में बोली।

“रचना, मैं यह कैसे कर सकता हूँ।मुझे नोटों की गड्डियां पकड़ा रहे थे।जब मैंने मना कर दिया तो मुझे अनापशनाप गालियां देकर पुलिस केस में फँसाने की बात कर रहे थे…यहां तक कि मुझे जान से…!

उनकी बात काटते हुए रचना गुस्से में बोलीं
“अरे ऐसे कैसे हो सकता है!एक व्यक्ति अपाहिज होकर अस्पताल में आपके विश्वास पर बेसुध पड़ा है…उसकी जान बचाने की छोड़कर आप उसे जहर दे दीजिएगा!भला ऐसा भी व्याघात कोई कर सकता है.. !
आखिर हमारी भी तो मौत आएगी…तो हम ऊपर जाकर ईश्वर को क्या जवाब देंगे?”

“यही बात रचना, मैं अपनी ही नजरों में गिर गया…मैं ऊपर जाकर अम्मा, बाबूजी…और अपने भगवान को क्या जवाब दूंगा…आज रात में उनलोगों का फोन आएगा।हाँ या ना में जवाब देना है…!”

अभी दोनों पति पत्नी आपस में बातें कर रहे थे तभी विनायक जी का फोन घनघना उठा।

विनायक जी ने फोन उठाते हुए कहा
” उन्हीं लोगों का फोन है।”कहते हुए उन्होंने फोन उठा लिया

उधर से आई बात का जवाब देते हुए विनायक जी ने कहा
“आप लोग पूरी तरह से ही मुझे गलत समझ लिया है।
मैं वैसा व्यक्ति नहीं हूं। मैं अपनी आत्मा को नहीं बेचूंगा।
कभी भी मैं गोगा जी को जहर नहीं दे सकता।
मैं कौन होता हूं किसी की जान लेने वाला… मैं एक डॉक्टर हूँ, प्राणदान देने वाला…!

जब तक मैं रहूंगा तब तक मैं गोगाजी की जान बचाने की कोशिश करूंगा।
यह आप लोग उम्मीद छोड़ दीजिए…मैं आपलोगों के पाप में भागीदारी करूंगा। यदि आप लोग मुझे परेशान करेंगे तो फिर मुझे पुलिस की मदद लेनी होगी!”

गोगाजी के बच्चों ने धमकी देते हुए कहा
“तुम्हें अपनी आत्मा की बड़ी चिंता है? चलो हम तुम्हें तुम्हारी आत्मा को मोक्ष दे देंगे।”

विनायक और रचना जी ने पुलिस को इनफॉर्म किया।

पुलिस ने हर संभव मदद करने की का विश्वास दिलाया।

दूसरे दिन दिन डॉक्टर विनायकअपने क्लीनिक में बैठे थे।
तभी चार नकाबपोश उनके क्लीनिक में घुस आए और धड़ाधड़ उनके ऊपर गोलियों की बौछार शुरू कर दी।

डॉ विनायक मृत होकर गिर पड़े। यह खबर शहर में आग की तरह फैल गई थी।

विनायक और रचना जी ने पुलिस को पहले ही इस खतरे से आगाह कर दिया था इसलिए सभी लोगों को वस्तुस्थिति का पता था।

शहर भर के अखबारों में, न्यूज़ चैनलों में डॉ विनायक के नाम की तारीफें हो रही थीं लेकिन रचना जी सफेद कफन में लिपटे हुए शांत पड़े विनायक जी के शव को आँसू भरी आँखों से निहार रहीं थीं…!
“इस जीवन का कोई भरोसा नहीं…कब मौत आ जाए…! बस यही… मृत्यु ही एकमात्र सत्य है!”