Hindi Kahaniya: सुबह-सुबह मोबाइल में रिंग हो रहा था। बबलू भैया ने फोन किया था।
मेरा दिल एक बार धक से कर गया लेकिन फिर भी मैंने हिम्मत कर फोन उठाया और कहा
” प्रणाम बबलू भैया!, कैसे हैं आप?”
” बिल्कुल ठीक हूँ सुरभि। तुम लोग कैसे हो? विनीत कैसे हैं और अपना बिट्टू..!”
सभी का हाल-चाल लेने के बाद उन्होंने बिना किसी दोषारोपण के कहा
” सुरभि, अम्मा की बरसी है प्लीज समय निकाल कर चले आना।”
” अरे हाँ, बिल्कुल भैया मैं जरूर आऊंगी ।
विनीत और बिट्टू को लेकर ही आऊंगी ।”
बबलू भैया ने सब हालचाल ले कर फोन रख दिया।
अभी दिमाग स्थिर भी नहीं हुआ था की आदित्य भैया ने फोन किया और कहा
“सुरभि, अम्मा की बरसी है आ रही हो ना!”
” हां भैया ,अभी बबलू भैया ने फोन किया था मैं शाम को विनीत आएंगे तो उनसे बात कर लेती हूं। आना तो पक्का ही है।”
उन्होंने कहा
“मैं फोन रखता हूं ।”
मुझे ऐसा लगा कि आदित्य भैया को बबलू भैया का नाम लेना अच्छा नहीं लगा।
मेरे दिल में एक अजीब सी टीस उठ गई ।
एक उंगली जख्मी होता है तो पूरा हाथ को भी दर्द होता है ।
पता नहीं यह कैसा समय आ गया है ।किस्से कहानी और फिल्मों में जो कहानियां चलती थी अब वह मेरे मायके में हो रहा था ।
वही पुरानी कहानी- जायदाद का बंटवारा!
अम्मा कहती थी मेरे दो राम लखन !
आज यह दोनों राम लखन एक छोटी सी जमीन को लेकर लड़ने मरने को तैयार थे ।
अम्मा इस दुनिया में नहीं थी। रहती भी तो क्या झगड़ा निपटा सकती थी!
मेरी समझ में नहीं आता, पापा ने घर का बंटवारा दो हिस्सों में पहले ही कर दिया था।
एक छोटा सा अंगना जिसमें फूलों के मौसम में पापा फूल लगाया करते थे और सर्दियों के मौसम में वह साग ,धनिया, लहसुन आदि का उद्गम स्थल बन जाता था ।
ना जाने पापा के दिमाग में क्या आया होगा, उस छोटे से प्लॉट का बंटवारा किया ही नहीं!
पापा ने क्या सोचा होगा यह तो वही जाने !
बबलू भैया से लेकर मेरी शादी, बच्चों की छठी , जन्मदिन यहां तक कि मां, पापा की श्राद्ध और त्रयोदशी का भी वह आंगन ही गवाह रहा है।
उस छोटे से जमीन को लेकर दोनों भाइयों के दिलों तक दरार पहुंच गई।
अब विनीत मेरे मायके में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते थे ।
वह न्यूट्रल ही रहा करते थे ।
इस समय भी वह मेरे साथ चलने को तैयार नहीं थे।
उन्होंने काम का बहाना बनाया और कहा
” सुरभि, तुम्हें अकेले ही चले जाना चाहिए।
मैं ड्राइवर को साथ लगा देता हूं ।”
“ठीक है ।”मैंने भी इतना ही जवाब दिया क्योंकि मैं भी नहीं चाहती थी वहां की आग विनीत तक या उनके परिवार तक पहुंचे ।
अपने ख्यालों में खोए में कब घर पहुंच गई मुझे ख्याल ही नहीं आया।
वही घर जिसे मैं अपना कहती थी।
मायका–यही शब्द, जिस का भरोसा एक व्याहता नारी सबसे ज्यादा समझ सकती है ;आज पराया सा लग रहा था ।
घुसते ही मां पापा की तस्वीर मुंह चिढ़ा रही थी।
मां की बरसी थी तो भाई-भाभी और घर के सारे लोग पूजा पाठ में ही व्यस्त थे।
मेरी तरफ ज्यादा ध्यान किसी का भी नहीं था।
मैं उसी आंगन में उतर कर चली गई जो आज युद्ध का मैदान बना हुआ था ।
वह पहुंचते ही मेरी आंखों में आंसू आ गए ।
अभी भी कोने में सहमे से बेला और सुरमई के फूल लगे हुए थे।
उसी आंगन को गवाह बनाकर मैंने अपने हाथों में सुहाग चूड़ा पहन कर उस घर से विदाई ली थी।
मेरी आंखों में आंसू आ गए। तभी बबलू भैया की नजर मुझ पर पड़ी ।
उन्होंने बड़े प्रेम से मेरा स्वागत किया ।
पूजा पाठ संपन्न होने के बाद रात में जब सब लोग एक साथ बैठे तब बबलू भैया यह कहा
“सुरभि, इस झगड़े की सारी जड़ यह आंगन ही है।
हम दोनों भाइयों ने फैसला किया है कि अब पूरा घर ही हम बिल्डर को दे रहे हैं।
वह यहाँ एक बड़ा सा मार्केटिंग कॉन्प्लेक्स बनाएगा और उससे लगे हुए मल्टी स्टोरी बिल्डिंग।
जिसमें से तीन तीन फ्लैट हमें मिल जाएगा ।
सारी लड़ाई खत्म !”
आदित्य भैया ने भी इस बात का समर्थन किया और दोनों भाभियों मुस्कुराते हुए मौन स्वीकृति दे रही थीं।
मैं क्या कहती, मेरी समझ में नहीं आया क्योंकि लड़कियां तो मायके में पराया धन होती है।
अब वह घर कहां रह गया। एक मायका था, पराया हो गया।
मैंने भी उनकी हां में हां मिलाते हुए कहा
” हां भैया, यह बिल्कुल सही रहेगा।”
लेकिन मेरे अंदर की टीस अब और ज्यादा गहरी हो गई थी।
वहां से लौटते हुए मुझे लगा अब कहां रह गया मायका।
मां पापा की यादें ,अपने बचपन की यादें सबको अपने जेहन में समेट आई हूं…!
विनीत की नजर पड़ने से पहले ही मैंने अपने आँसू पोंछ लिए।