लौट आईं ख़ुशियाँ-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Happiness Story
Laut Aai Khushiyan

Happiness Story: “दद्दा नहीं रहे” फ़ोन पर भैया के ये शब्द सुनते ही दिल अंदर तक दर्द से भर गया, पर तसल्ली थी बीना को कि जब माँ है, तब तक मायका।
घर वापस जाते समय दोनों बहनें अम्मा से वादा करके गईं कि हम लोग बारी-बारी से आते रहेंगे। दोनों बहनें ही समय निकालकर अम्मा की चाह में मायके चली आतीं, भाभी के व्यवहार में फ़र्क़ था तो दो दिन से अधिक न रुकतीं।
पर अब उन्हें कुछ था जो बेहद अजीब लगता| ये बात उसके साथ छोटी बहन गुड्डी ने भी महसूस की थी|
जब दोनों दद्दा को बीमारी के समय देखने आयी थीं, जब भी अम्मा अपनी दोनों बेटियों के साथ होतीं दोनों को अपनी पीठ पर एक जोड़ी आँखें अक्सर घूरती महसूस होतीं।
जब तक दद्दा थे अम्मा की चिट्ठी मार्च से ही आने लगती कि बिटिया आ जाओ और बीना, गुड्डी उत्साह से भर जातीं।
दोनों बहनें हालाँकि बेहद कम दिनों के लिए आतीं और बेहद सम्पन्न था मायका पर दद्दा के जाने के बाद हालात कुछ और ही हो गए थे घर के।
अम्मा के पास योँ तो कोई न बैठता पर जब भी बीना या गुड्डी आ जातीं तो भाभी या उनके बच्चे कोई न कोई मौजूद ज़रूर रहता और दोनों की मन की बात मन मे ही रह जाती।
भाभी भी रूखे व्यवहार के साथ ऐसे जतलातीं जैसे दोनों ननदें कोई डकैती डालने को आ गईं हो।जब कि दोनों ही काफ़ी सम्पन्न थीं।भैया भी बस हालचाल पूछ कर इति श्री कर लेते।
खाना पूछना तो मज़बूरी था और कड़वे बोल के कारण अगले ही दिन वापसी भी हो जाती।अक्सर यही सुनने को मिलता कि घर को धर्मशाला बना रखा है अम्मा ने ,बुढ़ापे में सबसे मिलने का मन चलता है,पर सबको  बनाना खिलाना इसमे भी तो खर्च होता है हमारा।
अगर फ़ोन करतीं तो भी अम्मा बस ठीक हूँ इसके अतिरिक्त कुछ न बोल पातीं।
आये दिन के  ,भाभी भैया के दुर्व्यवहार के चलते गुड्डी ने तो हाथ जोड़ लिए क्योंकि वह बहुत दूर से आती थी पर बीना का शहर ज़्यादा दूर न था।
अक्सर अम्मा  छुपाकर पल्लू में बंधा  बेटियोँ का फ़ोन नम्बर पकड़े वह किसी न किसी से  गुजारिश करतीं और लोग बात करवा भी देते।

बेटी चाहे जितनी बूढ़ी हो जाये पर माँ की ममता की चाह कभी कम नहीं होती।
कई महीनों बाद फिर अम्मा ने रट लगाई तो बीना  भी आ गयी पर अबकी बार एक सुखद आश्चर्य था कि मां की पहरेदारी नहीं हो रही थी रात भर अम्मा ने बीना से मन के बातें कीं।भाभी और भतीजे भतीजी भी अपना काम कर रहे थे ।
आदत के मुताबिक अगले दिन बीना ने अम्मा से गुड्डी की बात भी करवा दी।वापसी के समय अम्मा बच्चों की तरह बिलख के रोईं कि आ जाया करो जल्दी पता नहीं अबकी बार मैं मिलूँ या नहीं।
जाने क्या था उस दिन उनकी आवाज़ में कि बीना का मन सहम गया।
लगभग बीस दिन बाद खबर मिली कि अम्मा नहीं रहीं,बीना बदहवास दौड़ कर मायके गयी।कहने को तो बीना भी नानी बन चुकी थी पर माँ के मोह में उनकी मृत देह से घण्टों लिपट के भी रोती रहीं।
अम्मा अपनी अँतिम यात्रा पर बढ़ गयीं ,पर बीना को अम्मा की विदाई अच्छी भी लगी कि उन्हें रूखे और ज़िल्लत भरे व्यवहार से मुक्ति मिली तब जब कि अम्मा काफ़ी आत्मनिर्भर थीं।
अम्मा की तेरहवीं के संस्कार के बाद बीना ने मायके का रुख भी न किया गुड्डी का घर तो बरसों पहले ही छूट गया था।
आज तकरीबन तीन  बरस बाद भैया ने फोन किया ,”कि बीना तुम तो हाल चाल भी नहीं लेतीं ,तुम्हारी भाभी भी बात करना चाह रहीं हैं।”
आज भाभी ने भी ज़रूरत से ज़्यादा बात में चाशनी घोलते हुए  कहा ,”कि बिट्टी जब अम्मा थीं तो हर हफ़्ते आ जाती थीं और अब तीन साल हो गए तेरहवीं के बाद देहरी पर पाँव भी नहीं रखा।”
न चाहते हुए भी बीना के ज़ख्म हरे हो कर रिस पड़े|
“बस लालच था तो सिर्फ अम्मा के पास दो दिन गुजारने का वरना अपने घर मे रोटी और जगह की कमी किसी भी औरत को नहीं होती एक माँ ही है जिसके रहते बेटी बड़ी नहीं होती।”
बस एक सब्र है कि भले बेशर्मी देकर आती रही पर अम्मा के मन की सुन ली और अपनी कह ली उनके न रहने पर आती तो सिर्फ स्वाभिमान ही हाथ लगता।अब किसके लिये आऊँ और क्योँ ,जब तक अम्मा थीं तब तक बात और थी।
बस करो बिट्टी हमें अपनी गलती का एहसास है,बहुत बुरा किया है तुम दोनों के साथ हमने, आज जब तुम्हारी भतीजी को देखने को तरसते हैं तो अम्मा की तड़प समझ में आती है, जिन्हें हमने सिर्फ बहू के चश्मे से ही देखा।
अगर दो दिन को भी आ जाओगी तो अच्छा लगेगा,भैया और भाभी के बेहद कहने पर बीना मायके गयी तो भाभी में बड़ा बदलाव पाया।
ये वही भाभी थीं जिनके डर से अम्मा अपने मन की बात भी न कर पातीं।चलते वक़्त भाभी ने बीना को उसके लिए अम्मा की दी हुई कुछ निशानियाँ देकर कहा।
बीना ने विनम्रता से इनकार करते हुए कहा कि भाभी मुझे सिर्फ अम्मा और अपनों का मोह था इन बेजान चीजों का नहीँ।
भाभी आँसूं पोंछकर रुँधे गले से बोलीं,”कि आती रहना बिट्टी बुढ़ापे में ही सही लेकिन ये समझ आ गयी कि इन बेजान चीज़ों की चाह में इतना आगे बढ़ गए हम कि रिश्तों की जान ही छीन ली
बीना ने भाभी के आँसूं पोंछकर कहा कि भाभी दुःखी मत हो ,जो हो गया सो बदल नहीं सकता पर अफ़सोस इसी बात का रह जाता है कि समझ हमेशा इंसान के जाने के बाद ही आती है।
बेटियां कोई कोई ही ऐसी होती हैं जिनको कोई लालच हो, मगर अधिकतर तो बस कुछ समय माँ बाप और भाई बहन के साथ के लालच में मायके आतीं हैं। बस पछतावा यही रह जाता है काश ये बदलाव उनके सामने होता तो वो परलोक तसल्ली के साथ जातीं।
गाड़ी में बैठने के बाद भी बीना ने पलटकर देखा तो भाभी पल्लू से अपनी आँखें बार-बार पोछ रही थीं| आज बरसों बाद मन भर गया था जैसे अम्मा के समय मायका छूटते लगता था। जब घर पहुँचने की खबर भैया को दी, तो वो भी बस इतना ही बोल पाए कि बिट्टी आती रहना।

हाँ भैया, ज़रूर आऊँगी| बरसों बाद मेरा मायका फिर लौटा दिया है आपने।

यह भी देखे-रिश्तों की ठिठुरन-गृहलक्ष्मी की कहानियां