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Motivational Story: बड़े घर का होना आखिर क्या होता है,क्या बड़ा घर मात्र पैसों की प्रचुरता से बड़ा होता है या सँस्कार की निधि से मैंने अपने स्वर में बहुत संयत रखकर उत्तर दिया था।
जब मेरी पत्नी सुरभि ने अपनी माँ के टेस्ट और स्टेट्स के लिये मेरे साथ यह घटिया चाल चली थी,
इसकी शुरुआत भी उसी की ज़रूरत से हुई थी ।
जब उसने कहा था,”विकास….. मां को बुला लो अब मुझे परेशानी बढ़ने लगी है”
“ठीक है ,मैं उन्हें खुद ले आऊँगा ”  मैंने उत्तर दिया।
“पर मैं अकेली कैसे रहूँगी?
तो तुम ऐसा करो अपनी मम्मी को बुला लो, फिर मैं मां को लेने चला जाऊँगा।
ठीक है, मैं बात करती हूँ।
सुरभि ने अपनी माँ मन्जूजी को फोन लगाया,
हैलो……मम्मी ,
हाँ सुरभि कैसी है
ये माँ को लेने बनारस जाएंगे ,तो क्या आप मेरे पास रुक जाएँगी।अब डिलीवरी डेट भी नज़दीक आने वाली है।
पर मुझे तो जयपुर निकलना है मेरी सहेली अनुराधा की शादी की पच्चीसवीं एनिवर्सरी है, वैसे भी ये तेरी सास की ज़िम्मेदारी है ।
खानदान उनका बढ़ेगा कि मेरा, अच्छा अब रखती हूँ ।
पर मम्मी आपने तो मुझे कुछ नहीँ बताया दिन में चार बार तो बात होती है हमारी …
  नहीं याद रहा अब रखो।
विकास” मम्मी तो बिज़ी हैं ,अब तुम मां को ही किसी तरह यहाँ ले आओ।”उसने बड़ी मायूसी से कहा।
“ठीक है मै पापा से बात करता हूँ ,उनका खाना तो रिया और चाची भी  देख लेंगी ,पर मम्मीजी को थोड़ा तो एडजस्ट करना चाहिये था तुम्हारे साथ
तो सुरभि झल्लाहट से बोली ,
उनके पास दस मसले होते हैं बिजी रहने के ,बिजनेस करने वाले फुर्सत में रहते हैं क्या?
“पर बिजनेस तो पापाजी करते हैं विकास” हैरत से बोला ?
इस पर सुरभि गड़बड़ा कर बात बदलते हुए बोली ,” मल्टीपल हेल्थ इश्यूज के चलते मम्मी बाहर जा रही हैं चेकअप के लिये।”
यूँ भी मैं बड़े घर की नखरीली सुरभि  के परिवार से कम ही मतलब रखता था ,
सामान्य घर के बेटे से सुरभि की  शादी का  बस एकमात्र  कारण था मेरी उच्च प्रशासनिक पद की नौकरी।
दोपहर को लंच टाइम में  अपने  घर फ़ोन किया तो पापा ने ही फोन उठाया हैलो…पापा ,प्रणाम ..
रघुनाथ जी-कैसा है मुन्ना?
ठीक हूँ पापा |
“अच्छा ,बहू कैसी है ?”
इसीलिए तो फ़ोन किया है, मुझे छुट्टी नहीँ मिल रही अगर  आप मां को ट्रेन में बिठा देंगे मैं उन्हें स्टेशन पर उतार लूँगा ,मैंने कहा।
मुझे ऑफिस से छुट्टी  नही मिल रही ,और इधर आपकी बहू भी अकेली रह जाएगी ,
बेटा चिंता मत कर ,आज तक अकेले सफर नहीं किया तेरी मां ने ।तू समय पर पहुँच जाना वरना जानता है अकेले घबरा जाती हैं तेरी मां।

पापा ने शाम को टिकट कन्फर्म कर मां को गाड़ी में बिठाने की खबर दे दी अब सुरभि निश्चिंत थी।
दोपहर में जब ऑफिस से  माँ को लेने स्टेशन पहुँच गया,वो घबराई तो लग रहीं थीं पर  मुझे देखकर जैसे पूरी थकान भूल गयीं।
घर पहुंच कर उन्होंने  ने जैसे  ही जिलाधिकारी विकास शर्मा की नेमप्लेट देखी उनकी आँखें खुशी से छलछला गयीं ।
अभी तक तो बस वो अपने मुन्ना को ही जानती थी इस दिन के लिये कितनी तपस्या की थी उन्होंने।
माँ ने सब कुछ सम्भाल लिया, बाकी उनके सहयोग के लिये मेड सुधा थी घर में।
मैं अब सुरभि  की हर चिंता से मुक्त था लगभग एक महीने बाद उसने  चाँद से बेटे को ऑपरेशन से  जन्म दिया ।
माँ सब अच्छे से ध्यान रख रहीँ थीं सुरभि की माँ का भी कई बार फोन आता ।
उसी शहर में होने के बाद भी उनका हस्तक्षेप हमेशा की तरह जारी रहता।बिट्टू एक महीने का  हो गया था सेवा  माँकरतीं और नुक्ताचीनी सुरभि की माँ।
वह हर समय माँ के साथ चिपका रहता उनकी देखभाल से जल्दी ही सुरभि और बिट्टू पनपने लगे थे।
अब  उसकी मातृत्व अवकाश की छुट्टियां भी खत्म होनें को थी।सुरभि अब अपनी माँ से मेसेज में ज्यादा बात करने लगी थी।
अब उसने ऑफिस जाना शुरू कर दिया था।माँ दिन भर घर के अन्दर ही कैद होकर रह जातीं अब उनका मन कभी कभी ऊबने भी लगता ।
हालाँकि  मैं  उन्हें कभी-कभी  बाहर घुमाने भी ले जाता था।
एक दिन पापा ने फ़ोन कर दिया कि बेटा तेरी चाची  सीढियों से गिर गईं है रिया अकेले नही सम्भाल पाएगी अब तुम अपनी मां का रिज़र्वेशन करवा दो।
मां की एडियों में दर्द भी काफी रहता  था सोचा  मां के बाजार जाकर उनके लिये कुछ उपहार और अच्छी चप्पलें ले लूँगा।
“विकास मैं और बिट्टू भी चलें” सुरभि ने पूंछा?
“ओके चलो”
मॉल में मुझसे  सेल्समैन ने कहा,” सर ये डॉक्टर सोल  माता जी के लिए बहुत अच्छी रहेंगी “इतने में बिट्टू ने रोना शुरू  कर दिया।
मैं शॉपिंग सुरभि के हवाले कर बिट्टू को गोद मे उठा कर बाहर आ गया ।
कि मेरी नज़र सामने टँगी एक सुंदर  सिल्क की गुलाबी साड़ी पर  पड़ी ,ये तो मां का फेवरेट कलर है नानी  ने आखिरी बार  माँ को दी थी जो बुआ ले गयी थीं ।
तब से वो ये कलर खरीद ही न पाईं, इसे पैक कर दो ।साड़ी लेते समय सुरभि ने पूछा ,मैं भी मम्मी के लिये एक साड़ी ले लूँ  ,हाँ क्यों नहीं?
तुम लोग नीचे आओ ,कहकर ,मैं बिट्टू को  गोद में लेकर पेमेंट काउंटर  की ओर ओर बढ़ गया।घर पहुँच कर सारे पैकेट एक तरफ रख दिये गए सुरभि अपने पैकेट अलमारी के  अंदर रखकर  मां के साथ किचन में चली गयी।
मां अपना सामान रख रहीं थी जब से  घर छोड़ा था तब से इतने दिन बाद मां मेरे साथ रह पाईं थी मैं मां को सरप्राइज देने के लिए उनकी चीज़ों के पैकेट लेने अंदर गया तो सन्न रह गया ।सुरभि ने  सस्ती साड़ी और चप्पलें मां के सामान में रक्खी थी।
अलमारी खोल कर देखा तो मां के लिए खरीदी गयीं चीज़े सुरभि की अपनी अलमारी के अंदर थीं।रिज़र्वेशन के लिये टिकट बुक करने बैठा तो मेरा फोन भी काम नहीं कर रहा था।
सुरभि…. अपना फोन देना..अभी लाई यूँ तो मेरी आदत उसके फोन के मैसेज पढ़ने की न थी पर उसकी अपनी माँ के साथ की  गयी चैटिंग ने जैसे मेरी नींद ही उड़ा दी थी।
टिकट अगले दिन  दोपहर की हो गयी थी मैंने भी अपनी तैयारी कर ली मां  को छोड़ने जाना था।रात को सोने की कोशिश कर रहा था।सोई हुई सुरभि इस समय मुझे दुनिया की सबसे बदसूरत महिला लग रही थी।
कहने को तो मैं एक प्रशासनिक अधिकारी था पर अव्यवस्था मेरी अपनी नाक के नीचे ही थी।कितनी बार माँ अपनी ज़रूरत के लिए रक्खे पैसे मेरे प्रतियोगी परीक्षाओं के ख़र्च पर न्योछावर कर देती थीं।
उसके ज़ेवर भी मेरी महत्वकांक्षा की भेंट चढ़ते चले गये,उफ़्फ़ !मैं कितना लाचार महसूस कर रहा था खुद को।मेरे लिये सब कुछ बिना शर्त करने वाली माँ।
कितनी गैर जरूरी हो गयी थी  मेरी मतलबी जीवनसाथी के लिये,उसकी मेहनत और दुआओं के वृक्ष पर अब फल आने शुरू हुए ही थे और माली बदल चुका था।
पुरुष भी कितना विवश हो सकता है ,घर की शांति के लिए,माँ भी कितनी सरल है ,चुप लगा गयीं,पर अगर आज मैं चुप लगा गया तो अपनी ही नज़रों में गिर जाऊँगा।
माँ के गये वो ज़ेवर तो न लौटा पाऊँगा ,चाहे लाख नये खरीद दूँ,उनकी भावनाएँ नये ज़ेवर में नहीँ जुड़ेंगी ,एक अच्छी साड़ी तो उन्हें उपहार में दे ही सकता था।
बस मैने एक निर्णय लिया पैकेट बदल कर अलमारी के अंदर रख  दिए और सो गया ।दोपहर को बनारस रवाना होते समय बिट्टू मां को छोड़ ही नहीं रह था। मां को  घर छोड़कर,एक दिन घर रुक कर मैं वापस आ गया।
वापस आने पर देखा कि सुरभि का मूड कुछ उखड़ा था।मैं उसकी चालाकियों को समझ जो चुका था।
विकास तुमने मम्मी के सामने मेरी इंसल्ट कर दी मैं उन्हें साड़ी की पिक शेयर कर चुकी थी।
ग्रेट सुरभि मैं तुम्हारी और मम्मी जी की चैटिंग पढ़ चुका था।तुम खुद तो सब ब्रांडेड पसन्द करती हो मेरे रुतबे के हिसाब से।तुम्हारी मम्मी को भी मैं अपने पैकेज की वजह से दामाद बनाने के लायक लगा।
पर तुम दोनों एक बात भूल गयीं कि इस पैकेज तक मुझे तुम्हारी मम्मी और तुमने नहीं ।मेरी माँ के त्याग और मेहनत ने पहुंचाया है।
मेरे पैकेज पर तुमसे भी पहले मेरी माँ का अधिकार है ,जब खर्च मैं कर रहा था तो क्वालिटी का डिसीजन तुमने कैसे लिया ?
मैं ज्यादा खुश होता अगर तुम पक्षपात न करके दोनों  के लिए एक सा व्यवहार रखतीं ।मैंने तुम्हे अपने परिवार की नज़रों में गिरने से बचा लिया।
सुरभि की आँखों मे शर्मिंदगी देखकर मैं बाहर निकल ही रह रहा था कि पापा का फोन आ गया मां की फोटोज शेयर करने के लिये ।
भई वह डी-एम साहब तुम्हारी माँ तो पहचान में ही नहीँ आ रहीँ|
और क्या? बेटे के साथ बहू ने सब पसन्द किया है ,आप को क्यों जलन हो रही है जी।
मां सुरभि को ढेरों आशीर्वाद दिए जा रहीं थी ।
उस बेचारी को क्या पता था कि तुम्हारे  चेहरे पर मैंने पर्दा गिराया था, उसकी सीरत और सूरत दोनोँ की खूबसूरती बनाये रखने के लिये|