जिज्ञासु मन-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Jigyasu Man Story
Jigyasu Man

Jigyasu Man Story: बाहर से खूबसूरत सा दिखता घर, दरवाजे के अंदर आते ही बड़ा सा हॉल जिसके एक तरफ रसोई की आधी दीवार दिखती हैं झाँकने पर रसोई का हाल देखा जा सकता है।
हॉल में हल्के नीले रंग के पर्दे लगे हैं, लगभग हॉल के बीच बैठने के लिए पर्दों से मैच खाते रंग के सोफ़े पड़े हैं सामने टी टेबल, वही पास में एक छोटे से टेबल पर कुछ मंहगे गुलदस्ते रखे हुए हैं जिनके फ़ूलों की खुशबु से साफ़ जाहिर था फूल अभी कुछ देर पहले बदले गए थे। 
वही पास में कुछ खिलौने बिखरे पड़े हुए थे और एक खिलौने भी कार में सुरभि खेल रही थी, आसपास के टूटे फूटे खिलौने इस तरह बिखरे हुए देख सपना ने फिर से मुह  लटका लिया। 
बेटा फिर से तुमने नया खिलौना तोड़ दिया क्या करूँ मैं तुम्हारे इस इंजीनियर दिमाग का कम से कम दो दिन तो खेल लेते सपना अपनी चार वर्षीय बेटी को समझाने की कोशिश कर रही थी।
सपना व कार्तिक  को बहुत मिन्नतों के बाद एक बेटी के माता-पिता बनने  सौभाग्य मिला था तो दोनों बहुत खुशी खुशी अपनी गुड़िया की हर जिद्द पूरी करते जहाँ भी जाते कुछ ना कुछ खिलौना जरूर ले के आते।

बच्चों की आदत ही ऐसी होती हैं, जो नया खिलौना देखा वह चाहिए किसी भी हाल में !!
सुरभि धीरे-धीरे बैठना सीखी फिर अपने पैरों पर लड़खड़ाते हुए खड़े होना सीखी और फिर चलना।
अब सपना का घर, घर कम खिलोनों की दुकान ज्यादा लगता था हालांकि फर्क़ यह था की एक भी खिलौना सही सलामत नहीं था।

कार्तिक  अपनी नौकरी की वज़ह से दूसरे शहर में सुरभि के जीवन में आने से पहले ही बस चुका था फिर तरक्की हुई तो पत्नी को भी साथ रखने लगा पर कार्तिक की माँ पुष्पा जी को शहर का भागदौड़ वाला माहौल अधिक रास ना आता इसलिए अपने पति के बनाए गांव के घर में ही रहती।

सपना के फोन की घंटी बजती हैं उठाने पर जानी-पहचानी आवाज  सुनाई देती हैं, पुष्पा जी की दूसरी तरफ से आवाज आई मेरी गुड़िया कैसी हैं ?? और तुम दोनों उसका ध्यान रखते हों भी की नहीं।

सपना ने जवाब दिया सब ठीक हैं माँ आपकी नटखट गुड़िया खेल रही हैं सुरभि तोतली बोलने लगी थी तो सपना ने  फोन स्पीकर पर कर के सुरभि को बोला बेटा देखो दादी आपसे बात कर रही हैं।

सुरभि दादी की आवाज सुनते ही  खिलौने वही छोड़ कर दादी दादी कहते हुए सपना के पास आई और दादी से बातें करने लगी।

“दादी मम्मा डाटे खिलौना क्यूँ तोड़ा बोले ” बोल कर दादी से माँ की शिकायत करने लगी।
दादी पोती की बात हो जाने पर सपना ने पुष्पा जी से कहा माँ आप कुछ दिनों के लिए ही आ जाओ ना हमें बहुत खुशी होगी और सुरभि को तो अभी देखा आपने कितनी खुश होती हैं आपका नाम सुनने भर  से।

पुष्पा जी बोली मेरा भी मन ऊब गया हैं यहाँ, वही सोच रही थी कुछ दिन मेरी गुड़िया के पास रह आऊ।
तब ठीक हैं मैं कल की ही टिकट करती हूँ आपकी, ये स्टेशन पर लेने आ जाएगे आप पैकिंग कीजिए – सपना की आवाज में उत्साह के साथ खुशी झलक रही थीं।

दूसरे दिन पुष्पा जी अपनी गुड़िया को देख के गले लगा लेती हैं। अब रोज का रूटीन हो गया है दादी पोती मिल के पता नहीं क्या- क्या खेलते रहते हैं पुष्पा जी भी सुरभि के साथ बच्ची बन गई ऐसा प्रतीत होता हैं।

सपना सुरभि के खिलौने समेटते हुए पुष्पा जी को बोली  देखिए ना माँ क्या करूँ इसके लिए कितना भी महंगा खिलौना ले आओ तोड़ फोड़ के यह हाल कर देती हैं,
सपना टूटी हुई कार दिखाती हैं।

पुष्पा जी ने सपना को समझाते हुए कहा- बेटा बच्चों का मन हर चीज़ को जाँचने परखने के लिए लालायित रहता हैं वह खिलौने इस लिए नहीं तोड़ते की उन्हें पसंद नहीं बल्कि उनका उत्सुक मन उनसे यह करवाता हैं।

बच्चों का  यह नन्हा सा  जिज्ञासु मन जानना चाहता है उसके अंदर क्या हैं ?  कैसे हैं ?

बच्चे जब भी कुछ पूछते हैं तो बड़ो का कर्तव्य होता है की बच्चों की जिज्ञासा को शांत करे उनके प्रश्नों का उत्तर दे। इस से बच्चों में खोज की, जानने समझने की जिज्ञासा बढ़ती हैं जो उन्हें जीवन में अग्रसर होने के सही मार्गदर्शन में सहायक हैं। तुम इसे अभी से अपनी विचारशीलता बढ़ाने की छूट दो तभी तो बड़ी हो कर आसमाँ को छूने के पंख लगा पाएगी। 

सपना –  सही कहा माँ आपने मैं पता नहीं कैसे इस तरह सोच ही नहीं पाई।

सास बहू सुरभि की तरफ देखती हैं तो सुरभि टाॅय ट्रेन को  चलते हुए बड़े ध्यान से देख रही थीं जैसे ही उसे आभास हुआ  की दादी मम्मा उसे देख रहे हैं, वह बोली मम्मा यह कैसे चलती हैं??
सुरभि का प्रश्न सुन पुष्पा जी और सपना एक दूसरे की तरफ मुस्कराती हैं और फिर सुरभि के पास बैठ कर उसे बताती हैं।

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